मानस चर्चा
सुजन समाज सकल गुन खानी। करौं प्रनाम सप्रेम सुबानी ।। समस्त गुणोंकी खानि सज्जन समाजको मैं प्रेमसहित सुन्दर वाणीसे प्रणाम करता हूँ ॥ सुजन कौन होता है,सुजन के क्या-क्या गुण होते हैं एवं सुजन की अन्य सभी बातों को जानते हैं आज इस मानस चर्चा में।
'सुजन समाज' यहाँ 'सुजन' शब्द 'साधु', 'सन्त' के लिए
कहा गया है।
''सकल गुन खानी' से तात्पर्य है---
वे सब गुण जो मानस में दिये हैं उन सभी की खान हैं सुजन।
तो अब हम उन गुणों को देखें मानस में ---
सुजन/सज्जन के गुणों को: देखें --
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥
अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥
सुजन / संत (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर- इन) छह विकारों (दोषों) पर विजय पाए हुए, पापरहित, कामनारहित, निश्चल (स्थिरबुद्धि), अकिंचन (सर्वत्यागी), बाहर-भीतर से पवित्र, सुख के धाम, असीम ज्ञानवान, इच्छारहित, मिताहारी, सत्यनिष्ठ, कवि, विद्वान, योगी और---++
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना।।
गुनागार संसार दु:ख रहित बिगत संदेह।
तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥
निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं॥
सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहि सन प्रीति॥
जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा॥
श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया॥
बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना॥
दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग पाऊ॥
गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला॥
मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सादर श्रुति तेते॥
ये तो अरण्यकाण्ड के संत गुन हैं।'
अब उत्तरकाण्ड में ' आए संतन्ह
के लच्छन सुनते हैं :
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता।।
संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी॥
काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई॥
ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड।
अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड॥
बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दु:ख दुख सुख सुख देखे पर॥
सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥
कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया॥
सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।
बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन॥
सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री॥
ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर॥
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4॥
निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज।
ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज॥
गुणखानि कहनेका भाव यह है कि जैसे खानिसे सोना, चाँदी, मणि, माणिक्य आदि निकलते हैं, वैसे ही शुभगुण सुजन समाज में ही होते हैं, अन्यत्र नहीं। जो इनका सङ्ग करे उसीको शुभ गुण प्राप्त हो सकते हैं। पुनः, 'खानी' कहकर यह भी जनाया कि इनके गुणों का अन्त नहीं, अनन्त हैं, कितने हैं कोई कह नहीं सकता। यथा-'
'मुनि सुनु साधुन्हके गुन जेते। कहि न सकहिं सारद श्रुति तेते ॥'
सुजन समाज सकल गुन खानी। करौं प्रनाम सप्रेम सुबानी।।
यहां सुजन को मन, वचन और कर्म तीनों से प्रणाम सूचित किया।
'सप्रेम' से मन, 'सुबानी' से वचन और करौ' से कर्मपूर्वक प्रणाम जनाया गया है।
केवल मानस की ही क्यों योगीराज भर्तृहरि की भी सुनें
'जाड्य धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्ति
सत्संगतिः कथय किन्न करोति पुंसाम् ।। ।।'
अर्थात् सज्जनोंकी सङ्गति बुद्धिकी जड़ता (अज्ञान) को नाश करती है, वाणीको सत्यसे सींचती है, मानकी उन्नति करती है, पाप नष्ट करती है, चित्तको प्रसन्न करती है और दिशाओंमें कीर्तिको फैलाती है । कहिये तो वह मनुष्योंके लिये क्या-क्या नहीं करती? ऐसे सुजन समाज को हम मन कर्म वचन से सादर प्रणाम करते हैं और विनय पूर्वक प्रार्थना करते हैं कि वे संपूर्ण मानवता पर अपनी कृपा बनाए रखें।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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