शनिवार, 9 मार्च 2024

।।प्रमाणिका छंद ।।

प्रमाणिका  छंद 
साधारण वार्णिक छंद का यह प्रथम 
भेद है। इसका अन्य नाम: प्रमाणी, 
निगालिका और नागस्वरूपिणी है। 
प्रमाणिका एक अष्टाक्षरी छंद है।
इसके बारे में कहा भी गया है..

अष्टाक्षरी प्रमाणिका,
छंद अकेला भाय।
गेय छंद यही अद्भुत,
लघु गुरु बना सुहाय।।

लक्षण=
ज़रा लगा प्रमाणिका। 
       या
प्रमाणिका जरौ लगौ।
व्याख्या..
जरा या जरौ का अर्थ है जगण और रगण 
अर्थात् I S I तथा  S I S और लगा या लगौ 
का अर्थ है लघु गुरू I S इस प्रकार प्रमाणिका 
छंद में I S I S I S I S के क्रम में प्रत्येक 
चरणों में 8-8 वर्ण होते हैं।

परिभाषा=

जब श्लोक या पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण
रगण लघु गुरू के क्रम में 8×4=32 वर्ण हो
तब प्रमाणिका छंद होता है।
उदाहरण :
I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
नमामि भक्तवत्सलं, कृपालुशीलकोमलम्।
I  S I   S  I S I  S     I S I S    I S I S
भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्वधामदम्॥

यहाँ हम देखते हैं कि 
I S I S I S I S के  क्रम में प्रत्येक चरणों
में 8-8 वर्ण हैं। अतः यहाँ प्रमाणिका छंद है।

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं परिभाषा 
संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण=
   I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
1.सही-सही उषा रहे , सही-सही दिशा रहे ।
   I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
 नयी-नयी हवा बहे,  भली-भली कथा कहे।। 

2.जगो उठो चलो बढ़ो, सभी यहीं मिलो खिलो। 
 न गाँव को कभी तजो,  न देव गैर का भजो ।।

छायावादी कवि जय शंकर प्रसाद जी की
यह रचना प्रमाणिका छंद का अद्भुत उदाहरण है ..

3.हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
 स्वयंप्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती॥
 अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है,  बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,रुको न शूर साहसी॥
अराति सैन्य सिन्धु में, सुबाड़वाग्नि से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
      ।।धन्यवाद।।

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