साधारण वार्णिक छंद का यह प्रथम
भेद है। इसका अन्य नाम: प्रमाणी,
निगालिका और नगस्वरूपिणी है।
प्रमाणिका एक अष्टाक्षरी छंद है।
इसके बारे में कहा भी गया है..
अष्टाक्षरी प्रमाणिका,
छंद अकेला भाय।
गेय छंद यही अद्भुत,
लघु गुरु बना सुहाय।।
लक्षण=
ज़रा लगा प्रमाणिका।
या
प्रमाणिका जरौ लगौ।
व्याख्या..
जरा या जरौ का अर्थ है जगण और रगण
अर्थात् I S I तथा S I S और लगा या लगौ
का अर्थ है लघु गुरू I S इस प्रकार प्रमाणिका
छंद में I S I S I S I S के क्रम में प्रत्येक
चरणों में 8-8 वर्ण होते हैं।
परिभाषा=
जब श्लोक या पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण
रगण लघु गुरू के क्रम में 8×4=32 वर्ण हो
तब प्रमाणिका छंद होता है।
उदाहरण :
I S I S I S I S I S I S I S I S
नमामि भक्तवत्सलं, कृपालुशीलकोमलम्।
I S I S I S I S I S I S I S I S
भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्वधामदम्॥
महर्षि अत्रि कृत संपूर्ण स्तुति इस प्रकार है जो नगस्वरूपिणी अर्थात् प्रमाणिका छंद का अद्भुत उदाहरण है।
नमामि भक्त वत्सलं ।
कृपालु शील कोमलं ॥
भजामि ते पदांबुजं ।
अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम सुंदरं ।
भवाम्बुनाथ मंदरं ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं ।
मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं ।
प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥
निषंग चाप सायकं ।
धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं ।
महेश चाप खंडनं ॥
मुनींद्र संत रंजनं ।
सुरारि वृन्द भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं ।
अजादि देव सेवितं ॥
विशुद्ध बोध विग्रहं ।
समस्त दूषणापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं ।
सुखाकरं सतां गतिं ॥
भजे सशक्ति सानुजं ।
शची पति प्रियानुजं ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः ।
भजंति हीन मत्सराः ॥
पतंति नो भवार्णवे ।
वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा ।
भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं ।
प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमद्भुतं प्रभुं ।
निरीहमीश्वरं विभुं ॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं ।
तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं ।
कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं ।
समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं ।
नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते ।
पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं ।
नरादरेण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं ।
त्वदीय भक्ति संयुताः
यहाँ हम देखते हैं कि
I S I S I S I S के क्रम में इस छंद के प्रत्येक चरणों
में 8-8 वर्ण हैं। अतः यहाँ नगस्वरूपिणी अर्थात् प्रमाणिका छंद ही है और यह एक अद्भुत रामस्तुति भी है।
हिन्दी:
हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं परिभाषा
संस्कृत की तरह ही हैं।
उदाहरण=
I S I S I S I S I S I S I S I S
1.सही-सही उषा रहे , सही-सही दिशा रहे ।
I S I S I S I S I S I S I S I S
नयी-नयी हवा बहे, भली-भली कथा कहे।।
2.जगो उठो चलो बढ़ो, सभी यहीं मिलो खिलो।
न गाँव को कभी तजो, न देव गैर का भजो ।।
छायावादी कवि जय शंकर प्रसाद जी की
यह रचना प्रमाणिका छंद का अद्भुत उदाहरण है ..
3.हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती॥
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,रुको न शूर साहसी॥
अराति सैन्य सिन्धु में, सुबाड़वाग्नि से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
।।धन्यवाद।।
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