अन्य नाम: नराच, नागराज
पञ्चचामर एक सोलह अक्षरी छंद है।
इसमें 8/8 या 4/4 वर्णों पर यति
होती है।यह प्रमाणिका का दोगुना
होता है,जैसा कि कहा भी गया है...
प्रमाणिका- पदद्वयं वदन्ति पंचचामरम्'।
लक्षण:
जरौजरौततौजगौचपंचचामरंवदेत_।
परिभाषा=
जब किसी श्लोक या पद्य के प्रत्येक
चरण में जगण(ISI), रगण(SIS),
जगण(ISI), रगण(SIS), जगण(ISI)
और गुरु(S) के क्रम में 16×4=64,
वर्ण हों तब पञ्चचामर छंद होता है।
इस प्रकार हम पाते है कि इस छंद
के प्रत्येक चरणों में लघु गुरू लघु
गुरू के क्रम में 16×4=64 वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
रावण कृत शिवतांडव स्त्रोत्र इसका
सर्व श्रेष्ठ उदाहरण है।
आइए इसका प्रथम श्लोक देखते हैं..
I S I S I S I S I S I S I S I S
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले,
I S I S I S I S I S I S I S I S
गलेऽवलम्ब्यलम्बितांभुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
I S I S I S I S I S I S I S I S
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
I S I S I S I S I S I S I S I S
चकारचण्डताण्डवंतनोतुनःशिवःशिवम्॥
हिन्दी:
हिन्दी में भी इस छंद के
लक्षण एवं परिभाषा संस्कृत
की तरह ही हैं।
उदाहरण=
1.जु रोज रोज गोप तीय कृष्ण संग धावतीं।
सु गीति नाथ पाँव सों लगाय चित्त गावतीं।।
कवौं खवाय दूध औ दही हरी रिझावतीं।
सुधन्य छाँड़ि लाज पंच चामरै डुलावतीं।। '
2.तजो न लाज शर्म ही, न माँगना दहेज़ रे,
करो सुकर्म धर्म ही, भविष्य लो सहेज रे।
सुनो न बोल-बात ही, मिटे अँधेर रात भी,
करो न द्वेष घात ही, उगे नया प्रभात भी।।
।। धन्यवाद ।।
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