मालिनी
मालिनी शब्द का अर्थ माला धारण करने वाली
रमणी है।यह वृत्त अर्थात् छंद "अतिशक्वती"
परिवार का भाग है।
लक्षण-
“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोंकैः ।
व्याख्याः-
ननमयययुतेयं अर्थात् यह छंद दो नगण,
एक भगण,दो यगण से युक्त होता है। दूसरे शब्दों
में जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में क्रमश:
नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के क्रम में
वर्ण हो उस श्लोक/ पद्य में मालिनी छंद होता है।
अब प्रश्न उठता है कि विराम कब तो
उत्तर है 'भोगिलोकैः' अर्थात् भोगि और लोकै:
के बाद।
अब समझते है भोगि और लोकै: को।
भोगि शब्द बना है भोग से,भोग कहते है
साँप की कुण्डली को और भोग से युक्त होने के
कारण साँप का एक नाम है ‘भोगि'।इस प्रकार
भोगि शब्द का अर्थ सर्प या नाग होता है। हमारे
धर्मग्रंथों के आधार पर संस्कृत साहित्य में सर्पोंं
अर्थात् नागों की संख्या 8 बतायी गई है जो
निम्न हैं:
अनंत(शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म,शंख और कुलिक अतः स्पष्ट है पहला
विराम भोगि अर्थात् आठवें अक्षर के बाद आयेगा।
इसके पश्चात् दूसरा विराम लोकै:अर्थात्
लोक के पश्चात् आयेगा विष्णु पुराण के अनुसार
अतल, वितल, सुतल, रसातल,तलातल, महातल
और पाताल नाम के 7 लोक हैं।अतः स्पष्ट है कि
दूसरा विराम सातवें अक्षर के बाद होगा।
इस प्रकार इस वृत/ छंद में आठवें एवं
सातवें अक्षर के बाद यति होती है।यह समवृत्त
है अत: चारों चरणों में समान लक्षण होते हैं।
प्रत्येक चरण में 15 अक्षर होते हैं अतः चारों
चरणों में 60 अक्षर हुवे।
परिभाषा:
जिस समवृत्त छंद के प्रत्येक चरणों में
क्रमश: नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के
क्रम में वर्ण हो तथा आठवें एवं सातवें अक्षर के
बाद यति हो उसे मालिनी छंद कहते हैं।
उदाहरण.
इस प्रसिद्ध श्री हनुमान वंदना को आप
उदाहरण के रूप में जरूर देखें, समझें
और याद करें...
I I I I I I S S S I S S I S S
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
I I I I I I S S S I S S I S S
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
I I I I I I S S S I S S I S S
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
I I I I I I S S S I S S I S ( I/S)
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
यहाँ नमामि में मि को देखें यह स्पष्ट
लघु दिख रहा है लेकिन:
सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा ॥
के पादान्तगोऽपि वा के अनुसार किसी भी छंद
के किसी भी चरण का अन्तिम वर्ण लघु होते
हुवे भी छंद की आवश्यकता के अनुसार विकल्प
से हमेशा गुरू माना लिया जाता है।
अतः यहाँ मि गुरु वर्ण माना जा रहा है और
इस श्लोक के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है।
हिन्दी...
हिन्दी में भी मालिनी छंद के लक्षण
एवं परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।
उदाहरण-
I I I I I I S S S I S S I S S
प्रिय-पति वह मेरा , प्राणप्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना ,का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा ,नेत्र-तारा कहाँ है॥
इस पद्य के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है।
।। धन्यवाद।।
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