शनिवार, 6 अप्रैल 2024

।।स्रग्धरा छन्द हिन्दी एवं संस्कृत में।

।।स्रग्धरा छन्द।।
छन्द का नामकरण
स्रग्धरा का अर्थ माला को धारण करने वाली है। इस छन्द में कवि अपनी बात को 'स्रक्' अर्थात् 'माला' रुप में विस्तार के साथ कहता है। यह एक ऐसा विशिष्ट छन्द है, जिसके इक्कीस अक्षरों का विभाजन यति की दृष्टि से
सात-सात अक्षरों में बराबर किया गया है और इस तरह सात-सात अक्षरों की समानाकार वाली तीन मालाएँ बन जाती है।
छन्द का लक्षण— 
गंगादास छन्दोमंजरी में स्रग्धरा का लक्षण देते हुए कहा है कि- 
'म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम्' 
छन्द सूत्र में स्रग्धरा का लक्षण देते हुए कहा है कि-
"स्रग्धरा म्-रौभ् -नौ यौ य् त्रिः सप्तकाः।" 
लक्षणों की व्याख्या-
जिस छंद के प्रत्येक  चरणों में मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण के क्रम में वर्ण हो और "त्रिमुनियतियुता"मुनियों के क्रम से तीन बार यति हो उसे  स्रग्धरा छंद के नाम से जाना जाता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सप्तर्षि की उत्पत्ति इस सृष्टि पर संतुलन बनाने के लिए हुई। उनका काम धर्म और मर्यादा की रक्षा करना और संसार के सभी कामों को सुचारू रूप से होने देना है। सप्तर्षि अपनी तपस्या से संसार में सुख और शांति कायम करते हैं।सप्त ऋषियों के नाम हैं- कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज।इन सात ऋषियों को सप्तर्षि कहा जाता है। इस प्रकार यह छंद एक बहुत ही मर्यादित छंद है जिसके द्वारा मर्यादापूर्ण बातों की अभिव्यक्ति की जाती है।त्रिः सप्तकाः का भी यही अर्थ है की सात-सात वर्णों पर हर चरण में तीन-तीन बार यति होता है।प्रत्येक चरणों में इक्कीस वर्णों वाला यह एकल छंद है।यह अति छंद परिवार का प्रकृति छंद है।सच बात तो यह है कि जो अर्थ मालिनी और स्रग्विणी का है, वही अर्थ स्रग्धरा का भी है। केवल प्रकृति और प्रत्यय का अन्तर है। स्रग्धरा में दो शब्द है 'स्रक' एवं 'धरा' जिसमें स्रक का अर्थ है 'माला' और धरा का अर्थ है 'धारण करने वाली' । स्रग्धरा छन्द में जब कवि को ढेर सारा अभिप्राय या बहुत लम्बे वृतांत का वर्णन करना होता है या प्रभुत अर्थ को परस्पर समेटना होता है तब वह प्रायः इस छन्द का प्रयोग होता है।दीर्घ छन्दों में ओजभाव को प्रकाशित करने वाला छन्द स्रग्धरा है। 
परिभाषा :- 
जिस छंद के प्रत्येक चरणों में मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण के क्रम में अर्थात् S S S, S I S, S I I, I I I, I S S, I S S, I S S  के क्रम में वर्ण हो और सात-सात वर्णों पर हर चरण में तीन-तीन बार यति हो उसे स्रग्धरा छंद कहते है।
छन्द का उदाहरण-1-
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहतिविधिहुतं या हविर्या च होत्री,
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S   I S S  I S S
येद्वेकालंविधत्तः श्रुतिविषयगुणा यास्थिताव्याप्य विश्वम्।
S S S   S I S   S I I   I I I  I S S  I S S   I S S
यामाहुः सर्वबीज - प्रकृतिरितियया प्राणिनः प्राणवन्तः,
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः।।
उदाहरण-2-
S S S S I S S I I I I I I S S I S S I S S
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम् ।
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
 मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
 वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम् ॥
उदाहरण-3-
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
  शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
  पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं
S S S  S I S  S I I  I I I  I S S  I S S  I S S
  नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥
हिन्दी:- 

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण, परिभाषा एवम् विवरण संस्कृत की तरह ही है।
उदाहरण :-
काशी के आप वासी, शुभ यह नगरी, मोक्ष की है प्रदायी।
दैत्यों के नाशकारी, त्रिपुर वध किये, घोर जो आततायी।।
देवों की पीड़ हारी, भयद गरल को, कंठ में आप धारे।
देवों के देव हो के, परम पद गहा, सृष्टि में नाथ न्यारे।।
।।धन्यवाद।।


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