बुधवार, 14 जनवरी 2015

रचना

होती है सारी बात साथ कब।
पूछो देखो समझो जानो अब।
कैसे किसे कहाँ क्या कहू तब।
रचना अद्भुत कल्याणी सब।।1।।
मात-पिता पोषित पालित हम।
अचर सचर चर सब हम सम।
सादर सत चित आनंद वन्दन।
रचना कण कण केशर चन्दन।।2।।
नहीं हंस नर नीर क्षीर विवेकी।
नहीं नाहर नर नरेन्द्र मामेकी।
तमसावृत हटा हो आलोकित।
रचना सूर तम हार विमोचित ।।3।।
मम सम सब अन्यतम हैजानो।
अनूठा अनुपम हर कृति मानो।
उपयोगी बन उपासीन  सबके।
रचना प्रेम रमन रमा रे झटके।।4।।

रविवार, 11 जनवरी 2015

स्वामी विवेकानंद नरेन्द्र नाथ दत्त

स्वाभिमानी देशप्रेमी युवा नरेन्द्र नाथ दत्त।
वाकपटु भारतीय नव जागरण के अग्रदूत।
मीनक महान देदीप्यमान शशांक सदृश्य।
विधु सा प्रगटे बन माँ भुवनेश्वरी के सपूत।
वेगवान हिन्दू भारत भाल पे गौरव तिलक।
काम को लजा हर मन से भगाये भय भूत।
आनन आफ़ताब से अमेरिकी चकाचौध।
नयन विशाल देखे सफलआयाम नित नूत।
दया सागर सागर पार लहराये नव परचम।
नर नाहर थे विश्वनाथ जनक के प्रिय पूत।
दर दर दूर देश तक शाश्वत सत्य वाहक।
नाथ नाथ की खोज त्यागे कामना अकूत।
दत्त आनन्द देने को पाने से माने माकूल।
जन मान नव चेतन हित पहने केशर सूत।
मन्त्र कठोपनिषद का बना जीवन आधार।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत छूत।
अराइज अवेक एंड स्टाप नाट अन्टिल।
द गोल इज रिचड बोले अंग्रेजी में खूब।
उठो जागो और तब तक ना रुको तुम।
जब तक लक्ष्य ना पकड़ो अपना मजबूत।

जग जग जाग जाग जन जाना।

पग पग पाहन पीयूष पान पाते।
नित नेम नियम नम हो निभाते।।
जग जगत सुत मान नवल पाते।
बिसतंतु बन मानस हंस लुभाते।।
पग पग जरत रहत करम साना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।1।।
आस पे विश्वास नास हो जाता।
विश्वास डोर तोड़ सुख को पाता।।
सच सच ही है जो जग में भाता ।
तोड़ दे जग सदा असत से नाता।।
पाहन पय बना कर्मरती सुहाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।2।।
देख दुःख दूसरे बिसरो न भाई।
आती काम काम की कर कमाई।।
अमल धवल हिम ने गाथा गाई।
पर हित रत पाते नित ही मिताई।।
पीयूष बन दे दुखियो को प्राना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।3।।
शोषक-तोषक वृत्ति बन आचरन।
पूजती पूजाती नित नव विधानन।।
कल्पनातीत दुःख सुख देवे धन।
मान मनीषी ले लेते ये माने मन ।।
पान पाते हर थल ले दिल स्थाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।4।।

सोमवार, 5 जनवरी 2015

स्थान

दन्त नख केश सा छूटे मूल सब जाय। मणि माणिक मुक्ता सा छूटे मूल सब पाय ।।दुनिया की ही रीत गीत सी जब हो जाय। तब सब स्थान हर का घर हो जाय ।।

मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

दो हजार पन्द्रह सोलह कला कान्ति दे सुख शान्ति दे।

नव किसलय नव वर्ष लहरे जन शिखा पर हरदम।गुरु गुरुतर ज्ञान मान धन धान्य भरे बन करदम।।1।।दो हजार पन्द्रह सोलह कला कान्ति दे सुख शान्ति दे।मन मलिनता तन कलुषता हटा हृदय दूरी पाट दे ।।2।।प्रण करना सहज कठिन है निभाना के संज्ञान से ।सद संकल्प नित निभाने की लालसा हो सम्मान से ।।3।।सहज बयर बिसराय राय मणि माणिक मुक्ता सी ।जन्म कर्म मुक्त ज्ञान रश्मि माहताब आफताब सी ।।4।।इच्छित रक्षित फ़लै फ़ुलै अनुराग वन मन में ।फैले प्रेम पराग सौदामिनी सा चमके जन जन में ।।5।।

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

महासंत

देव दनुज नर नाग करते भागम भाग !
सदा सदरत सुजन विरत हो जप जाग !!
घर में पा जाते दशरथ सा अपूर्व भाग !
विस्वामित्र सा जपी भी करता विराग !!१!!
आदि अद्य अंत आता अपना अरिहंत !
पर पर पर काटन से कौन कहाये संत !!
पतझड़ पर छा जाए जो बनकर बसंत !
नर नरेश वही जन पूजित जो महासंत !!२!!

रविवार, 9 मार्च 2014

हम

हम है कौन मौन सदा इस पर रहते !
हम है क्या मायामय मय मय करते !!
हम ऐसे वैसे नहीं कि जैसे तैसे कह देते !
हम हम है हम हरदम हम क्यों न रहते !!१!!
हम मै होकर अलग थलग हैं कर जाते !
जाति पाति के बंधन बध क्रंदन करते !!
बध एक माला में हम कैसे सहज जाते !
धर्म क्षेत्र भाषा पर जब सब एका हो पाते !!२!!
अनेक से एक हम तब जग जग भगाते !
सूर्य बन धरा से त्रास तिमिर तोड़ जाते !!
पर हम है कैसे जैसे होते यन्त्र मंत्र तंत्र !
स्ववश नहीं है परवश या हैं हम परतंत्र !!३!!
स्वतन्त्र देश वासी मक्का सेवे या काशी !
पर पर की इच्छा नाचे क्यों भारतवासी !!
रिमोट से क्यों हो जाते हैं हम संचालित !
वोट की राजनीति से क्यों हो हम बाधित !!
विकास वहाँ कहा नित नए घोटाले जहां !
पर्दानसीन कोई नहीं बे पर्दा हैं सब यहाँ !!४!!
किसको कहें क्यों कहें कैसे कहें क्या कहें !
जमीर बेच जरुरत छोड़ ख्वायिशो में बहे !!
सिगूफा छोड़ तोड़ ताड का मोड़ माड़ महे !
ताली पीट जन बीच कह कहे में रत रहे !!५!!