बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

,फेसबुक

खुद छिप ,जानना पर को 
पर पर काट ,सेफ स्व को !
ऐसी हरकत ,न भा मित्र को 
बदनाम कर ,फेसबुक को !!

होनी अनहोनी

होनी क्या होकर रहती हैया हो जाने के बाद को होनी कहते है !
अनहोनी जब होती नहीं तो उसे अनहोनी क्यों सब कहते है !!
विषय विचारे हम सब मिल फिर भावी किसको कह सकते है !
जब पूर्व नियोजित है सब तब निनानबे के फेर में हम क्यों पड़ते है !

सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!

हे केशव बृजबिहारी ,है आप सदा निष्काम !
भाल बिशाल अमिय ,मोहै देखी ललाम !!
मोरपंख शिर वैसे ,शशि सोहै जू शिवधाम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!१!!
हे वंशीधर नंदलाल ,तेरी छबि वारे कोटि काम !
रक्षक हर पल ,करे भक्षको का काम तमाम !!
तन मन धन सब अर्पित ,हे जन के सुखधाम !
सुआस करो पूरी , हर जन की हे पूरनधाम !!२!!
हे माधव मदन मुरारी ,कहू क्या हे कान्तिधाम !
 जनम जनम सुख पावे ,जन  ले ले तेरा नाम !!
गल माल सुवासित ,बाजूबंद बिराजे बाजूधाम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!३!!
हे मधुसूदन राधेश्याम ,हरे कृष्ण हरे राम !
हरते हर पापियों को,करते भक्त के हर काम !!
भक्त का कुछ हर न सके कोई ,हे त्राहि माम !
सुआस करो पूरी ,हर जन की हे पूरनधाम !!४!!

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

सुर ,स्वर या संगीत

सुर सनेही  स्वजन हित,दुर्जन होय बेसुध !
कोयल कागला का क्या ,भावे न पावे सुध !!१ !!
कोयल सुर सुध जगावे ,काग मान भगावे !
ये सुर से ही जगत में ,अलग हो जश पावे !!२ !!
जग जाग भोर में गावे ,सुंदर सुर सुनावे !
मन्दिर मस्जिद गिरजाघर ,देवो को जगावे !!३ !!
राजावो का तान सुर ,देवो का गान सुर !
तानसेन का जान सुर ,गायक का मान सुर !!४ !!
बिना गति लय ताल स्वर ,पा जाता अपमान !
समय संग सोभित सुर ,करे सबका सम्मान !!५ !!
जन जनेश जो सुर रत ,बनाये राहु सा गत !
अति से जो जन हो बिरत ,सुधारे उसकी लत !!६ !!
बिना सुर सामने खड़ा ,असुर हो या हो सुर !
जब हो सरल सादा सुर ,कर दे मान चुर -चुर !!७ !!
सुर सुर अथवा असुर सुर ,लोकत्रय हित सही !
जनतन्त्र की गरिमा में ,नेता सुर हो सही !!८!
बे सिर पैर सुर प्रयोग ,लाता है कुयोग !
बनती बात बिगाड़ता ,सोचे बिना प्रयोग !!९!!
सुर सम्राट सुर सम्राज्ञी ,बनना है अधिकार !
ऐसे प्रयोग से बचे ,जहा हो प्रतिकार !!१० !!
सुरेन्द्र भी जब डूबते ,सुर में है आकण्ठ !
तब पाते कष्ट अद्भुत ,गाते सभी सुकंठ !!११ !!
स्वविवेक सुर साधना ,सुचरित्र से सज्जन !
सुरच्युत स्वजन भी हो ,जाता कोपभाजन !!१२ !

रविवार, 30 दिसंबर 2012

हनुमान वन्दना

जय जय जय हे राम भक्त बजरंग बली!
सदगति दायक कष्टनिवारक फैली है बात गली-गली!!
मनमोहक तन कंचन वरन वामकाध उपनयन धरी!
सुमिरत ही जन हो सनाथ जय जय जय हे गदाधरी!!
रुद्र अंश कपि रुप ले हरि सेवा दे सेवा ज्ञान भरी!
सुर रक्षक असुर विनाशक मुग्धकारी रुप धरी!!
योगी-यती पा साथ होते सनाथ थली-थली!!१!!जय------
छूटपन से ही मातु-पिता जन सेवा पावे खरी-खरी!
गुरु घर सब हित है निशाचरी माया हर पल हरी!!
ज्ञान पिपासु नवनिधि दायक लेवे सूर्य ज्ञान खरी-खरी!
सूर्य-शनी से जनहित में वरदान कोटिक है प्राप्त करी !!
सुमिरत ही नाथ तुम्हे कोटिन की है विपदा टली!!२!!जय------
विनती हमारी हर पल हरे हर भक्त की रोग व्याधि सगरी!
ध्यान धरे तेरा जो उसके परिजनो की है हर विपदा टरी !!
धन-मान बढे जन का नित हीजो है प्रभु की भक्ति करी !
हारी बाजी जीते ही वह जिसने है आस आप से करी!!
तोङते घमंड पल मे हर प्रिय का होवे जब अहंकार बली!!३!!जय------
धर्महित भीम भाई सारथी हरि के रथी का थामा ध्वज!
लो सौप दिया तुमको मैने भी है अपना युग ध्वज!!
पावे न मात ले ज्ञान संस्कार होवे आदर्श ये कुल ध्वज!
राष्ट्र हित रत सर्वदा फैलाये गर्व से राष्ट्रध्वज!!
राज्य प्रान्त शहर गाव सङक गली मे हो न कोई खलबली!!४!!जय------
                        

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

!!कथनी करनी!!


कथनी करनी देखो जग के,
पल-पल, छिन-छिन,नव-नव रुपों में!
एक हो जिनकी दोनो उनकी गणना मूर्खों में,
बदले दोनो पल-पल वो होशियार चालाको में!
भय रखना ही होगा परा शक्ति का अपने अपने मन में,
क्योकि शुभ नही ऐसी कथनी करनी कभी सभ्य समाजो में!
सोच बनी इसके प्रति अच्छी है जिनके जिनके मन में,
नहीं डरते वे किसी से किसी भांति इस जग में!
मूर्खों ने अच्छो को मूर्ख मान लिया है स्व मन में,
क्षणिक शान्ति सुख लाभ तुष्टि पाते पल-पल में!
ऐसो की स्थायित्व खोज पूर्ण न हो इस जग में,
पूर्ण होगी जो दोनो को एक करेगा तन- मन में!! 

!! शिव सोच !!

                                       शिव सोच की हो न कभी कमी,
                                       सकारात्मक नकारात्मक के बीच जो जमी!
                                      शिव अशिव शव सा हैसोच की है लत,
                                      जानते सब है सदा क्या सही क्या गलत!
                                      मान बढे बढाये बढ जाये इस जग में,
                                      जिनकी सोच सही हो निज तन में!
                                      दूषित दुर्गति दुर्निवार दोगली सोच,
                                      लाती है निश्चित जीवन मेंअकाट्य मोच!
                                      सत जानकर भी लाते क्यो मन में लोच,
                                     हर हाल हर हर हर सा कर लो शिव सोच!