✓।।तपसे भी बड़ा सत्सङ्ग है।।
एक वार मुनि विश्वामित्र और वशिष्ठ में बाद विबाद
हुआ । विश्वामित्रजी कहते थे कि तप बड़ा है प्रौर वशिष्ठ जी कहते थे कि सत्सङ्ग बड़ा है । बाद विवाद तर्क बितर्क में बदल गया। समस्या को हल कराने दोनों शेष जी के पास गये । और सारा वृतान्त कह सुनाया ।शेषजी ने कहा कि तुम मेरे महिभार को धारण करो मैं न्याय करू' । तव विश्वामित्र जी ने सारा तपस्या का बल लगा दिया परंतु वे महि के भार को न उठा सके तब फिर वशिष्ठ जी ने थोड़े से सत्सङ्ग के बल से पृथ्वी को उठा लिया। जिसके कारण विश्वामित्र को शरमिंदा होना पड़ा। इस प्रकार शेषजी ने बहुत ही सुन्दर निर्णय दिया कि तप से भी बड़ा सत्सङ्ग ही है। इसीलिए कहा गया है कि सत्सङ्गति की महिमा 'छिपी हुई नहीं है | सत्सङ्गति के ही प्रभाव से बाल्मिकीजी,नारदजी तथा घटयोनिजी(अगस्त्यजी) ने महर्षि पद प्राप्त किया | सत्सङ्गति का ऐसा प्रभाव है कि दुष्ट आदमी भी सज्जन और विद्वान बन जाता है। गोस्वामीजी ने मानस में कहा है
“सत्संगति मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥”
सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥
बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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