लाखों वर्ष पहले रावण ने अद्भुत विस्मयकारी रक्षा व्यवस्था कर रखा था। सिंहिका और लंकिनी तो रडार थे। स्टार वाली रक्षा प्रणाली तो अशोक वाटिका में दिखती है। जब श्री हनुमानजी अशोक वाटिका में फल खाने जाते हैं तो देखते हैं कि भट अर्थात दो स्टार वाले रखवाले वहां बहुत हैं
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
तो इनके लिए हनुमानजी को गरजने की भी जरूरत नही थी बिना गरजे ,बिना वृक्ष लिए ही उनकी हालत पतली
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥ कुछ मारे गए और कुछ रावण से पुकार करने जाते हैं
नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥ यह सुनते ही रावण ने
सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥
नाना भट को भेजा , अब श्री हनुमानजी गर्जे और सबका ही संहार कर दिया ,कुछ अधमरे ही रावण तक पुकार करने जा पाते हैं तब रावण
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥
अब तीसरी बार हनुमानजी वृक्ष लेकर तरजते है और इन तीन स्टार वालों को मारकर महाधुनि करते हुवे गरजते हैं फिर
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥
अब बारी है पांच स्टार और चार स्टार वालों का, पांच स्टार वाला मेघनाद सरदार है चार स्टार वालों का, देखें
चला इंद्रजित अतुलित जोधा।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥
अति बिसाल तरु एक उपारा।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा।
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥
पांच स्टार वाले दारूनभट के लिए श्री हनुमानजी कटकटा कर गरजते हैं और एक विशाल पेड़ के वार से उसे विरथ कर जमीन पर ला देते हैं और चार स्टार वालों को
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई।
ताहि एक छन मुरुछा आई॥
एकल पांच स्टार वाला दारूनभट ही है जो भीड़ सका लेकिन वह भी मात्र एक ही मुष्टिका में मुरुक्षित हो गया। इस प्रकार श्री हनुमान जी ने रावण की इन सभी रक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया। आगे की कथा क्रमशः
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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