सोमवार, 23 सितंबर 2024

✓सहसबाहु सन परी लराई

श्री हनुमानजी रावण से कहते है कि तुम पूछते हो कि मैंने तुम्हारा नाम और यश सुना है कि नहीं, उसपर मेरा उत्तर यह है कि तुम्हारी प्रभुता सुननेकी तो बात ही क्या है, मैं तो उसे भलीभाँति जानता भी हूँ कि वह कैसी है। उस प्रभुताको जानकर मैंने यह सब किया है।  'सहसबाहु सन परी लराई' अर्थात् तुम लड़ने गये, पर कुछ लड़ाई न हुई; उसने तुमको दौड़कर पकड़ लिया। सहस्रबाहुसे हारना कहकर जनाया कि तू सहस्रार्जुनसे हारा, वह परशुरामसे हारा और परशुराम श्रीरामजीसे हारे । प्रमाण देखें 'एक बहोरि सहसभुज देखा । धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा ॥ कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाड़छोड़ावा॥'  (इसमें अंगदजीने सहस्रार्जुनसे रावणका पराजय कहा है और) 'सहसबाहु भुज गहन अपारा।दहन अनल सम जासु कुठारा ॥ जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा । तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा। ( इसमें सहस्रार्जुन का परशुरामजी द्वारा पराजय भुजछेदन और वध कहकरपरशुरामजीका बिना युद्ध ही श्रीरामजीके सम्मुख गर्व चूर हो जाना कहा है। इस प्रकार जनाया कि तब तू किस बलपर घमण्डकर उन श्रीरामजीसे विरोध कर रहा है ? उनके आगे तू क्या चीज है जब कि  वे तो तेरे जीतनेवाले के जीतने वाले भी है। श्री परशुरामजी ने तो उनको देखते ही उनसे  हार मान गये। 'परी लराई' में भाव यह भी है कि लड़ाईका अवसर आया था, तुम लड़ने गये थे, परथोड़ी ही लड़ाई में तुम हार गये। इसमें ऊपरसे प्रशंसा यह है कि बीस ही भुज होनेपर भी हजार भुजवालेसे लड़ाई ठानी थी और व्यंगसे अपयश होना प्रकट किया है। आइए हम सहस्रबाहु और रावणकी कथा सुनते हैं।सहस्रार्जुन कृतवीर्यका पुत्र और माहिष्मतीका राजा था। भगवान् दत्तात्रेयके आशीर्वादसे इसे, जब यहचाहता, हजार भुजाएँ हो जाती थीं। एक बार जब यह नर्मदामें अपनी स्त्रियोंके साथ जलविहार कर रहाथा, संयोगसे उसी समय रावण भी उसी स्थानके निकट जो यहाँसे दो कोसपर था, वहां आया और नर्मदामेंस्नान करके शिवजीका पूजन करने लगा। उधर सहस्रबाहुने अपनी भुजाओंसे नदीका बहाव रोक दिया,जिससे नदीमें बाढ़ आ गयी और जल उलटा बहने लगा। शिवपूजनके लिये जो पुष्पोंका ढेर रावणकेअनुचरोंने तटपर लगा रखा, वह तथा सब पूजनसामग्री बह गयी। बाढ़ के कारणका पता लगाकर औरपूजनसामग्रीके बह जानेसे क्रुद्ध होकर रावण सहस्रार्जुनसे युद्ध करनेको गया । उसने कार्तवीर्यकी सारी सेनाकानाश किया। समाचार पाकर राजा सहस्रार्जुनने आकर राक्षसोंका संहार करना प्रारम्भ किया । प्रहस्तके गिरतेही निशाचर सेना भगी तब रावणसे गदायुद्ध होने लगा। यह युद्ध बड़ा ही रोमहर्षण अर्थात् रोंगटे खड़ाकर देनेवाला भयंकर युद्ध हुआ । अन्तमें सहस्रार्जुनने ऐसी जोरसे गदा चलायी कि उसके प्रहारसे वह धनुषभर पीछे हट गया और चोटसे अत्यन्त पीड़ित हो वह अपने चार हाथोंके सहारे बैठ गया  रावण की यह दशा देख इसीबीच मेंसहस्रार्जुन  ने उसे अपनी भुजाओंसे इस तरह पकड़ लिया जैसे गरुड़ सर्पको पकड़ लेता है और फिर उसे इस तरह बाँध लिया जैसे भगवान्ने बलिको बाँधा था। रावणके बँध जानेपर प्रहस्त आदि उसे छुड़ानेके लियेलड़े, पर कुछ कर न सके, भागते ही बना । तब सहस्रार्जुन रावणको पकड़े हुए अपने नगरमें आया । अन्तमेंश्रीपुलस्त्यमुनिने जाकर उसे छुड़ाया और मित्रता करा दी ।  ' एक बहोरि सहसभुज देखा।धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा।  इस कथाके अनुसार यह भी व्यंगसे जनाते हैं कि तू वही तो है जिस, सहस्रबाहुके कारागारमें बँधे पड़े हुएकोतेरे पितामह पुलस्त्यजी दीन होकर भिक्षा माँग लाये थे । जय श्री राम जय हनुमान

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