देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥
जो कुछ विधाता ने भाग्य में लिख दिया है वह होकर
ही रहता है, चाहे कोई कितना ही परिश्रम करे परन्तु जैसा
प्रारब्ध में लिखा है वैसा ही रहेगा, प्रारख्ध न बढ़ती है और न घटती है ।
एक पुरुष अपनी स्त्रो सहित कहीं जा रहा था और
साथ उसका पुत्र भी था। मार्ग में उसे भगवान शंकर और
पार्वतीजी मिले | पार्वती जी को उनकी दशा देख कर दया
आ गई और उन्होंने महादेव जी से कहा कि हे नाथ इन पर दया करनी चाहिए । महादेव जी ने कहा कि, ये तोनों कम नसीव के हैं। मेरी दया से इनको लाभ नहीं होगा । पार्वती जी ने बार बार आग्रह पूर्वक कहा तव महादेव जी ने उनसे कहा कि तुम तीनों एक २ चीज मुझसे माँग लो वह तुरन्त मिल जायगी । तव औरत ने सुन्दर स्वरूप मांगा वह तुरन्त रूपवती हो गई । एक राजा उसे देख कर हाथी पर चढ़ा ले चला । जब उसके पति ने देखा कि मेरी स्त्री तो हाथ से गई तो वह महादेवजी से कहा कि इस औरत का रूप सूअर के समान हो जायं सो उसी क्षण होगई । अव जो राजा हाथो पर चढ़ा उसे ले जा रहा था।उसके रूप से घृणा करके छोड़ दिया । अब पुत्र ने अपनी माता
को बदसूरत जान कर यह मांगा कि मेरी माता पहिले जैसी थी वैसी ही हो जाय वह तुरन्त वैसी ही हो गई । मतलब यह है कि तीनों को कुछ न मिला । तब महादेवजी ने पार्वती से कहा कि विधाता ने जो प्रारब्ध में लिखा है वही मिलता है । तभी तो देवर्षि नारद जी ने यह बात कहा है।
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें