✓राम के नाम की बड़ी महिमा है
समुद्र-मंथन से जब कालकूट विषाग्नि के रूप में हला-हल जहर निकला तब सभी जलचर छटपटाने लगे। समुद्र में खलबली मच गई। देवता घबड़ा गए, अरे ये क्या हुआ। प्रभु बोले मत घबड़ाओ शान्ति रखो। बिखरे हुए विष को एकत्र करके प्रभु भोलेनाथ शंकर की शरण में पहुँचे और निवेदन किया---
देवाधिदेव भोलेनाथ ! तीनों लोकों को जलाने वाले इस हलाहल विष से हमारी रक्षा करो। भोलेनाथ भवानी से मुसकुराते हुए बोले- हे देवी ! ये सब विष पीने के लिए हाथ-पैर जोड़ रहे हैं। बताइए मैं क्या करूँ? भवानी दुविधा में पड़ गई, फिर विचार करने के बाद बोलीं— भगवान ! आप वही कीजिए जिसमें सबका कल्याण हो। भोलेनाथ ने पूछा मतलब हम विष पी जाएँ। भवानी ने कहा— ये मैं नहीं कहती, कौन पतिव्रता नारी अपने पति से कहेगी कि तुम विष पियो। माँ पार्वती तो भगवान शंकर के प्रभाव को जानती ही थीं। इसीलिए उन्होंने परोक्ष रूप से अनुमोदन कर दिया।
प्रभावज्ञान्वमोदत।
भोलेनाथ समझ गए बोले- लाओ कहाँ है?
तत: करतलीकृत्यव्याप्य हालाहलं विषम ।
अभक्षयन् महादेव: कृपया भूत भावन: ॥
अंजलि बांधकर शंकर जी ने प्रभु का नाम लेकर तुरंत हलाहल विष पान किया। शिवजी जानते हैं कि यदि विष भीतर गया तो हमारे हृदय में श्रीराम का निवास है, उन्हें कष्ट पहुंचेगा और यदि वमन किया तो सम्पूर्ण श्रीष्टि जलकर नष्ट हो जाएगी। क्या करें। शंकर जी ने राम नाम का आश्रय लिया। रा कहने से मुंह खुल जाता है और म कहने से बंद हो जाता है। राम नाम के बीच में सारा विष गले में अटका लिया। न बाहर न भीतर। शिवजी ने स्वयं विष पी लिया और देवताओं को अमृत पान कराया, इसीलिए तो वे महादेव हैं।
गोस्वामीजी कहते हैं ------
जरत सकाल सुर वृंद, विषम गरल जेहिं पान किय
तेहि न भजसि मन मंद, को कृपाल संकर सरिस ॥ और
नाम प्रभाव जान शिव नीको।
कालकूट फल दीन्ह अमी को।
वास्तव में राम नाम महिमा अनन्त है।
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥
एक बार कौशल्याजी, अंजनी माता और अगस्त्य ऋषि की पत्नी हर्षलोमा साथ साथ में बैठी थीं। कौशल्याजी ने अपने बेटे राम की बड़ाई करते हुए कहा बहन ! मेरा बेटा राम कितना महान है उसने इतने बड़े समुन्दर पर पुल बाँध दिया। यह सुनकर अंजनी माँ से नहीं रहा गया उन्होंने कहा बहन! अगर बुरा न मानो तो मैं भी कुछ कहूँ। मेरा बेटा हनुमान तो एक छलांग में ही समुद्र पार कर दिया था। अब तुम ही विचार करो वह कितना बड़ा पराक्रमी है। अब अगस्त्य ऋषि की पत्नी हर्षलोमा से नहीं रहा गया। मेरे पतिदेव ने तो तीन आचमन में ही समुद्र को ही पी लिया था। यह सुनकर कौशल्या उदास हो गईं। मेरा बेटा राम तो तीसरे स्थान पर चला गया। माँ को उदास देखकर राम ने पूछा- क्या बात है माँ ? माता कौशल्या ने सभी बातें दुखी होकर राम को सुनाया ,सब सुनने के बाद राम ने पूछा- अच्छा माँ ! ये तो बताओ, किसका नाम लेकर हनुमान ने समुद्र पार किया और अगस्त्य ऋषि ने किसका नाम लेकर समुद्र का पान किया ? मां वह है तेरे बेटे का नाम।
प्रभु राम ने माता श्री को यह भी बताया कि सेतुबंध के समय मैंने एक पत्थर उठाकर समुद्र में डाला वह पत्थर डूब गया। मैंने हनुमान से पूछा– क्या बात है हनुमान ! यह पत्थर क्यों डूब गया ? हनुमान जी ने बड़े ही सहजता से समझाया- प्रभु ! आप से बढ़कर आपका नाम है।फिर मेरा नाम राम लिखकर उसने पत्थर समुद्र में छोड़ा वह तैरने लगा। अब माता तू ही बता कौन बड़ा हैं। मां ने कहा कि
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥
राम से बढ़कर राम का नाम है।
नाम तुम्हारा तारनहारा............
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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