कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा।।
एक बार एक ब्राह्मण देवता अपनी ब्राह्मणी सहित मार्ग में चले जा रहे थे। कुछ दूर पर चार ठग मिले और
ब्राह्मणी के आभूषणों को देख कर कपट से मधुर वचन कहने लगे कि, हे महाशय आपने कहाँ के लिए प्रस्थान किया है ब्राह्मण ने अपने पहुंचने का निर्दिष्ट स्थान उनको बतला दिया । तब ठग बोले कि, हे महाराज जी हमको भी वहीं पहुंचना है जहां पर कि, आपने गमन किया है। अस्तु हम और आप साथ साथ चलें तो बहुत अच्छा है ।यह सुन ब्राह्मण ने विचार किया कि, एकला चलिये न घाट, अस्तु यह सोच कर ब्राह्मण ने उनसे कहा कि चलिये हमारे लिये तो लाभ ही है क्योंकि आप इस मार्ग से पूर्ण
परिचित होंगे और साथ साथ मार्ग भी अच्छी भांति तय हो जायगा। ऐसा कह कर ब्राह्मण, ब्राह्मणी और चारों ठग साथ हो लिये । आगे एक सघन बन में जाकर ठगों ने मार्ग को छोड़ कर एक पगदंडी पकड़ लिया । यह देख ब्राह्मण के हृदय में कुछ भय उत्पन्न हुआ और ठगों का साथ छोड़कर वे अलग खड़े हों गये तव चारों ठग ब्राह्मण से कहने लगे कि, महाशय आप हमारे साथ क्यों नहीं चलते हैं यदि हम आपके साथ दुष्कर्म करें तो हमारे और आपके बीच में रमापति राम साक्षी है । यह सुन कर ब्राह्मण को विश्वास हो गया और वे ठगी के साथ पुनः चल दिये। अब आगे जाकर जब झाड़ियों के मध्य में प्रवेश किया तब ठगों ने ब्राह्मण के मारने के लिए तलवार निकाल लिया ।यह देख कर ब्राह्मण ब्राह्मणी कहने लगे कि हे ठगों जो तुमको लेना हो सो हमसे माँगो परन्तु हमारे प्राणों को न लो । यह सुन कर ठग वोले कि, हे ब्राह्मण हम विना प्राण हरण किये किसी व्यक्ति का धन नहीं लेते यह हमारा आदि सनातन धर्म है ।यह सुनते ही दीन हीन ब्राह्मण ब्राह्मणी दोनों रोने लगे।और भगवान से कहने लगे कि, हे चराचर के स्वामी, भक्तवत्सल, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान आप हमारे और इनके मध्य में साक्षी थे यदि आज आप ने आकर न्याय न किया तो फिर आपको मर्यादा पुरुषोत्तम, घटघट वासी, करुणानिधान, भुवनेश्वर, दया के समुद्र और कल्याणकारी कहना वृथा है । यदि आज न्याय न किया तो यह पृथ्वी रसातल को चली जायेगी। इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है।
उनके के इन वचनों को सुनकर बैकुंठ निवासी घट घट वासी भगवान सुदर्शन चक्र धारण किये वहीं प्रगट हो गए और तुरन्त ही चारों डाकुओं को मार डाले और ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी को दर्शन दे अंतर्धान हो गए । यह कथा हमें बताती है कि भगवान पर विश्वास रख कर कठिन से कठिन कार्य की भी सिद्धि होती ही है । इस विषय में एक कवि ने लिखा है ।
जो जन जाये हरि निकट, धरि मन में विश्वास ।
कोई न खाली फिर गयौं, पूरि लियों निज आस।।
और गोस्वामीजी ने तो मानस में घोषणा ही कर दिया है कि
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥
जय श्री राम जय हनुमान
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