बूंदी नरेश महाराज यशवन्त सिंह जी शाही दरबार में
रहते थे एक दिन बादशाह ने अपनी सभा में प्रश्न किया कि
आज कल वह जमाना गर्त हो रहा है कि स्त्री भी दुराचारिणी हो गई हैं । पतिव्रत धर्म को ग्रहण करने वाली स्त्री पृथ्वी पर नहीं हैं और न होंगी क्योंकि समय बड़ा बलवान है । यह सुन कर सारे सभासद चुप हो गये परन्तु वीर क्षत्री बूंदी नरेश को नहीं रहा गया और क्रोध पूर्वक सभा में खड़े हो कर बोले कि हे बादशाह आगे की तो मैं कह नहीं सकता हूं लेकिन इस वक्त तो मेरी स्त्री पूर्ण पतिव्रत धर्म को ग्रहण करने वाली है ।
यह सुन कर बादशाह चुप हो गये परन्तु एक शेरखां नामी
मुसलमान बोला कि आपकी स्त्री पतिव्रता नहीं है । बाद में
तर्क वितर्क से यह निश्चय हुआ कि एक माह की मुहलत में मैं आपको जसवन्तसिंह की पत्नी का पतिव्रत धर्म दिखला दूँगा । इस पर बादशाह ने कहा कि दोनों में से जो झूट
निकलेगा उसी को फांसी लगवा दी जावेगी और दूसरे को
इनाम मिलेगा । शेरखां यह सुन कर बहुत खुश हुआ । और अपने महल में दो दूती बुलाया और दोनों से पूछा कि तुम क्या क्या काम कर सकती हो। तब एक ने कहा कि मैं बादल फाड़ सकती हूं और दसरी ने कहा कि मैं बादल फाड़ कर सीं सकती हूं। यह सुन कर शेरखां ने दूसरी को पसन्द किया । और उससे कहा कि बूंदी नरेश की पत्नी पतिव्रता है इस कारण तू, उसके पतिव्रत धर्म को छल से डिगादे तो राजा तुझे पाँच गांव इनाम में देगें।इस बात को सुन कर वह प्रसन्न हो गई। उसे पालकी से बूंदी पहुंची।
जब वह बूंदी नरेश के यहां पहुंची तो उस बूंदी नरेश की पतिव्रता नारी ने उसका आदर सत्कार किया ।
क्योंकि वह बूंदी नरेश की बुआ बनकर गई थी
और रानी ने बुआ को कभी देखा नहीं था इसलिये
रानी ने उसे महाराज की बुआ ही समझा ।
दो दिन पश्चात दूती ने रानी से कहा कि चलो स्नान
कर ले।
रानी ने कहा बुआ जी मैं पीछे स्नान करूंगी।
आप स्नान कर लीजिए ।
दूती यह सुनकर कोधित हुई और बनावटी भय
दिखलाने लगी कि मैं जसवन्तसिंह से तेरी शिकायत करूंगी।रानी बेचारी को डर गई क्योंकि रानी उसको ठीक से जानती नहीं थीं। इस कारण विश्वास करके उसके सामने स्नान करने लगी , तो उस दूती ने उनके अंग को देखा तो रानी की जंघा पर लहसन दिखाई दिया, स्नान करने के पश्चान दूती ने भोजन किया । अन्त में दूसरे दिन दूती ने कहा कि अब तो मैं जाती हैं और वहां पर एक रखी हुई कटार को देख कर उसे मांगने लगी ।
रानी ने हाथ जोड़े कर कहा कि हे बुआजी यह तो
कटार मेरे पतिव्रत धर्म की है। महाराज जी ने मुझको दे रखी है । दूती ने कटार को बार बार मांगा परन्तु रानी ने कटार नहीं दिया ।
अन्त में दती ने क्रोधित हो कर कहा कि मैं तुझे जस-
वन्तसिंह से कह कर निकलवा दूंगी। तब तू अपने धर्म की
किस प्रकार रक्षा करेगी । तू ने मेरा इस छोटी सी कटार पर
इस तरह अनादर किया। रानी ने उसके कोध से भयभीत हो कर कटार को दे दिया । दूतो प्रसन्न होकर वहां से चल दी और शेरखां को कटार दे दिया और जंघा ले निशान को बता दिया । अब शेर खां शेर बन गया और वह इनाम
जो कि पांच गांव राजा ने रखे थे उनके लेने के लिए वह
शाही दरबार में गया और कटार बादशाह के आगे रख कर कहा कि बादशाह मैं इस कटार को लेकर और रानी के जंघा पर लहसन का निशान देख कर अभी चला आ रहा हूँ । जसवन्तसिंह इस बात को सुनकर हतप्रद । अब तो जसवन्त सिंह को फाँसी का हुक्म हो ही गया और शेरखां को इनाम भी मिल गया। लेकिन जसवंतसिह को एक बार अपनी पत्नी से मिलने बूंदी भेजा गया और फांसी की तारीख मुकर्रर हो गई।दूसरे दिन जसवन्तसिंह घोड़े पर सवार होकर बूंदी पहुंचे रानी महाराज का आगमन सुनकर दरवाजे पर गंगाजल लेकर आई परन्तु जसवन्तसिंह रानीको देख कर लौट गए । रानी ने अपने पति को क्रोधित जान कर शोक किया कि हे दैव मैंने एसा क्या दुष्कर्म किया जिससे महाराज मुझसे कुछ भी न कहकर लौट गए । अन्त में इस पतिव्रत नारी को सारा वृतान्त मालूम हुआ तब वह क्रोधित होकर अपनी पांच सहेलियों के साथ दिल्ली को गई और नाचना
प्रारम्भ किया । बादशाह को नाच दिखाकर गाना इस तरह सुनाया कि बादशाह सुनकर प्रसन्न होगया । ईश्वर की प्रार्थना जो कि रानी ने गाई थी बादशाह अपने
ऊपर घटित करके बहुत प्रसन्न हुआ और कहा कि तुम्हारी
जो कुछ इच्छा हो सो मांगो । रानी ने तीन वचन भरवा कर कहा कि हे बादशाह ! शेरखां पर मेरा पांच लाख का कर्जा है सो आप उनको दिलवा दीजिए ।
बादशाह ने शेरखां को रुपयों की बाबत पूछा तो वह
रानी के मुंह को ताक कर बोला कि मैं खुदा की कसम खाता हूँ कि मैंने तो इसका कभी मुह तक भी नहीं देखा है मुझ पर इसका कर्जा क्योंकर है। रानी ने यह सुनकर वादशाह से कहा कि यदि मेरा मुख भी नहीं देखा था तो यह वह कटार कैसे लाया और लहसन का निशान तृने किस तरह बतला दिया । यह सुनकर
शेरखां के होश उड़ गए और उसको अपनी सारी कहानी बादशाह को बतानी पड़ी ।अब जसवन्तसिंह के बजाय शेरखां को फांसी का दण्ड मिला क्योंकि रानी ने बादशाह से दूती का सत्र हाल बयान कर दिया था ।
भावार्थ-
इससे यह शिक्षा मिली कि पतिव्रत धर्म के प्रताप से
सारे कठिन से कठिन काम तुच्छ दिखाई देते हैं ।
बिन्दा पतिव्रत धर्म के ही कारण तुलसी बनकर
भगवान की प्राणप्यारी बनी क्योंकि इसके बिना भगवान छप्पन भोगों को भी नहीं मानते । सीता जी ने भी राम से कहा है कि-
जहँ लगिनाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते॥
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी।तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी ।।सारांश यह कि स्त्री के लिए पति ही सर्वस्व है और यदि वह पतिव्रता है तो उसके पति और उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।ईश्वर की कृपा सदा उन पर बनी ही रहती है।
जय श्री राम जय हनुमान
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