शनिवार, 9 मार्च 2024

।।मालिनी छंद संस्कृत एवं हिन्दी में।।

मालिनी

   मालिनी शब्द का अर्थ माला धारण करने वाली
रमणी है।यह वृत्त अर्थात् छंद "अतिशक्वती" 
परिवार का भाग है।
लक्षण-
“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोंकैः ।
व्याख्याः-
        ननमयययुतेयं अर्थात् यह छंद दो नगण, 
एक भगण,दो यगण से युक्त होता है। दूसरे शब्दों
में जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में क्रमश: 
नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के क्रम में
वर्ण हो उस श्लोक/ पद्य में मालिनी छंद होता है।
             अब प्रश्न उठता है कि विराम कब तो 
उत्तर है 'भोगिलोकैः' अर्थात् भोगि और लोकै: 
के बाद।
अब समझते है भोगि और लोकै: को।
        भोगि  शब्द बना है भोग से,भोग कहते है 
साँप की कुण्डली को और भोग से युक्त होने के 
कारण साँप का एक नाम है ‘भोगि'।इस प्रकार 
भोगि शब्द का अर्थ सर्प या नाग होता है। हमारे 
धर्मग्रंथों के आधार पर संस्कृत साहित्य में सर्पोंं 
अर्थात् नागों की संख्या 8  बतायी गई है जो
 निम्न हैं: 
अनंत(शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म,शंख और कुलिक अतः स्पष्ट है पहला
विराम भोगि अर्थात् आठवें अक्षर के बाद आयेगा।
          इसके पश्चात् दूसरा विराम लोकै:अर्थात् 
लोक के पश्चात् आयेगा विष्णु पुराण के अनुसार
अतल, वितल, सुतल, रसातल,तलातल, महातल 
और पाताल नाम के 7 लोक हैं।अतः स्पष्ट है कि 
दूसरा विराम सातवें अक्षर के बाद होगा।
         इस प्रकार इस वृत/ छंद  में आठवें एवं 
सातवें अक्षर के बाद यति होती है।यह समवृत्त 
है अत: चारों चरणों में समान लक्षण होते हैं। 
प्रत्येक चरण में 15 अक्षर होते हैं अतः चारों 
चरणों में 60 अक्षर हुवे।
परिभाषा:
         जिस  समवृत्त छंद के प्रत्येक चरणों में 
क्रमश: नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के 
क्रम में वर्ण हो तथा आठवें एवं सातवें अक्षर के 
बाद यति हो उसे मालिनी छंद कहते हैं।
उदाहरण. 
इस प्रसिद्ध श्री हनुमान वंदना को आप
उदाहरण के रूप में जरूर देखें, समझें 
और याद करें...
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S S
  अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
  I I I   I I I  S S S  I S S  I S S
  दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S S
  सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S ( I/S)
  रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
        यहाँ नमामि में मि को देखें यह स्पष्ट 
लघु दिख रहा है लेकिन:
 सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा ॥
के पादान्तगोऽपि वा के अनुसार किसी भी छंद 
के किसी भी चरण का अन्तिम वर्ण लघु होते
हुवे भी छंद की आवश्यकता के अनुसार विकल्प 
से हमेशा गुरू माना लिया जाता है। 
    अतः यहाँ मि गुरु वर्ण माना जा रहा है और
 इस श्लोक के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
 अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण 
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें 
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात 
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है। 

हिन्दी...

हिन्दी में भी मालिनी छंद के लक्षण
एवं परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण-
 I I I    I I I    S S S   I S S   I S S
प्रिय-पति वह मेरा , प्राणप्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना ,का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा ,नेत्र-तारा कहाँ है॥
      इस पद्य के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण 
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें 
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात 
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है। 
।। धन्यवाद।।

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

✓।।तालाब के पर्यायवाची शब्द।।

।।तालाब के पर्यायवाची शब्द।।
दो दोहों में बाईस पर्यायवाची शब्द:
तालाब तलैया ताल,वापिका वापी सर।
सरसी पोखरा पोखर,जलयोजन सरोवर।।1।।
तड़ाग गड़ही जलाशय,बावड़ी पद्माकर।
मानसरोवर जलवान,हृद जोहड़ दह पुकर (पुष्कर)।।2।। 

✓।।आम के पर्यायवाची शब्द।।

 ।।आम के पर्यायवाची शब्द।।
 एक दोहे में बारह पर्यायवाची शब्द:
आम्र आंबा अतिसौरभ,अंब आम अमृतफल।
पिकबंधु कैरी सौरभ, च्युत(च्यूत)सहकार रसाल।।

✓।।घोड़ा के पर्यायवाची शब्द।।

।।घोड़ा के पर्यायवाची शब्द।।
दो दोहों में तेरह पर्यायवाची शब्द:
आशुविमानक तुरग हय, गति से देते खेत।
रविसुत तुरंगम तुरंग, सवार सदा सचेत।।1।।
घोटक घोड़ा बाजि (वाजि)हरि ,रखते शक्ति अनूप।
रविपुत्र सैंधव अश्व च, दिखते बहु स्वरूप।।2।

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

।।तोटक छंद हिन्दी और संस्कृत में।।

।।तोटक छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
तोटक को त्रोटक भी कहा जाता है।
यह जगती परिवार का प्रत्येक चरण
में 12 वर्ण × 4 चरण अर्थात् =
48 वर्णों का समवर्ण वृत्त छंद है।
यह "जगतीजातीय" परिवार का छंद
 है।इस छंद को बहुत धीमी गति
अर्थात् मन्द गति से पढ़ा जाता है। 
यह प्रमुख गयात्मक छन्द है
जो मुख्य रूप से नीति, भक्ति एवं
आदर्श पूरक रचनाओं
के लिये प्रयुक्त किया जाता है।

लक्षण:-

गंगादास छन्दोमंजरी में इस वृत्त
का लक्षण इस प्रकार दिया गया
है –   
वद तोटकमब्धिसकारयुतम्।
और वृत्तरत्नाकर में तोटक छन्द का
लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है -

"इह तोटकमम्बुधिसैः प्रथितम् ।
अर्थात् सनातन धर्म की मान्यता के
अनुसार चार अंबुधि हैं।तोटकमम्बुधिसैः
का अर्थ हो रहा है तोटक चार सगण से
उक्त छंद है।
परिभाषा:
जिस छन्द के चारों चरणों में
चार-चार सगण हों उसे तोटक
छन्द कहते हैं । 
उदाहरण –
 I I S   I I S   I I S।   I I S
1-शशिना च निशा निशया च शशी,
  शशिना निशया च विभाति नभः।
    पयसा कमलं कमलेन पयः ,
   पयसा कमलेन विभाति सरः ॥

2-=मणिना वलयं वलयेन मणिर् ,
  मणिना वलयेन विभाति करः ।
   कविना च विभुर्विभुना च कविः, 
   कविना विभुना च विभाति सभा ॥

3-रवि रुद्र पितामह विष्णुनुतं,
  हरि चन्दन कुंकुम पंकयुतम्।
  मुनि वृन्द गणेन्द्र समानयुतम्,
  तव नौमि सरस्वती पादयुगम् ।।

4-कर कंकण केश जटा मुकुटम्,
  मणि माणिक मौक्तिक आभरणम्।
  गज नील गजेन्द्र गणादि पथिम्,
  मम तुष्ट विनायक हस्त मुखम् ॥

5-त्यज-तोटकमर्थं नियोगकरं,
  प्रमदादिकृतं व्यसनोपहतं।
  उपधाभिर्शुद्धमतिं सचिवं,
 नरनायक-भीरुकमायुदिकम् ॥

6-जय राम सदा सुख धाम हरे। 
  रघुनायक सायक चाप धरे।।
  भव बारन दारन सिंह प्रभो।
  गुन सागर नागर नाथ बिभो।।

7-अधरं मधुरं वदनं मधुरं
  नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
  हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
  मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।।

उक्त सभी उदाहरणों के प्रत्येक
पक्तियों में प्रथम पक्ति की ही
तरह चार सगण अर्थात्
 I I S I I S I I S I I S 
के क्रम वर्ण हैं अर्थात् तोटक छंद है।

हिन्दी:- 
हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण, 
परिभाषा एवम् विवरण संस्कृत की
तरह ही है।जैसे:

जब द्वादशवर्ण समासस हो।
तब तोटक पावन छन्दस हो।।

समासस का अर्थ चार सगण-
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ । । ऽ । । ऽ अर्थात् 
जब किसी भी पद्य के चारों चरणों में
चार सगण-।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ । । ऽ । । ऽ  
के क्रम में वर्ण हों तो उस पद्य में
तोटक छंद होता है।
उदाहरण:
कलियुग का यह यथार्थ चित्रण 
तोटक का अद्भुत उदाहरण है:
1-बहु दाम सँवारहिं धाम जती। 
  बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती।।
  तपसी धनवंत दरिद्र गृही।
  कलि कौतुक तात न जात कही।।
  कुलवंति निकारहिं नारि सती। 
  गृह आनिहिं चेरी निबेरि गती।।
  सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। 
  अबलानन दीख नहीं जब लौं।।
  ससुरारि पिआरि लगी जब तें।
  रिपरूप कुटुंब भए तब तें।।
  नृप पाप परायन धर्म नहीं।
  करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं।।
  धनवंत कुलीन मलीन अपी।
  द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी।।
  नहिं मान पुरान न बेदहि जो।
  हरि सेवक संत सही कलि सो।।
  कबि बृंद उदार दुनी न सुनी।
 गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी।।
  कलि बारहिं बार दुकाल परै।
 बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै।।
     
2-हनुमान करें हरि से विनती।
  सिय राम जपूँ बिन ही गिनती।
  प्रभु और न चाह रहे मन में।
  दिन रात रमूँ बस कीर्तन में।
उक्त सभी उदाहरणों के प्रत्येक 
पक्तियों में प्रथम पक्ति की ही 
तरह चार सगण अर्थात्
 I I S I I S I I S I I S 
के क्रम वर्ण हैं अर्थात् तोटक छंद है।
।।धन्यवाद।।


    


मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

।। द्रुतविलंबित छंद हिन्दी और संस्कृत में।।

।।द्रुतविलंबितछंद हिन्दी-संस्कृत में।।

यह जगती परिवार का प्रत्येक चरण
में 12 वर्ण × 4 चरण अर्थात् = 48 
वर्णों का समवर्ण वृत्त छंद है। 
इस परिवार को "जगतीजातीय"भी
कहते हैं। इस छंद को सुन्दरी तथा
हरिणीप्लुता के नाम से भी जाना 
जाता है। इस छन्द का प्रारम्भ तेज
गति से और अन्त विलम्ब से अर्थात् 
आराम से होता है। इसलिए इसे
द्रुतविलंबित छंद कहते हैं।

लक्षण:-

द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ 

परिभाषा :-

जिस छन्द के प्रत्येक चरण में एक
नगण (।।।), दो भगण (ऽ।।, ऽ।।)
और एक रगण (ऽ।ऽ) के क्रम में 
12-12 वर्ण होते हैं उसे
द्रुत विलम्बित छंद कहते हैं।

उदाहरण :-

 I I I   S I I  S I I S I S
विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा 
 I I I    S I I  S I I    S I S
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
 I I I    S I I  S I I    S I S
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ 
 I I I    S I I  S I I  S I S
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।

    उपर्युक्त छन्द के प्रत्येक पक्ति
में प्रथम पक्ति की तरह ही सभी
पक्तियों में नगण,भगण,
भगण और रगण के क्रम में 
12 -12 वर्णो के बाद यति है। 
अतः द्रुतविलंबित छंद है ।

हिन्दी में भी लक्षण और 
परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।

लेकिन कुछ विद्वानों ने इसका
लक्षण हिन्दी में इस प्रकार किया है।

(1) द्रुतविलम्बित सोह न भा भ रा
               या
(2)नभभरा” इन द्वादश वर्ण में।
   ‘द्रुतविलम्बित’ दे धुन कर्ण में।।

उदाहरण :-

    I I I   S I I   S I I  S I S
   दिवस का अवसान समीप था
   I I I    S I I    S I I   S I S    
   गगन था कुछ लोहित हो चला
    I I I  S I I    S I I।    S I S
   तरु शिखा पर थी अब राजती
     I I I  S I I    S I I     S I S
   कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा

        उपर्युक्त छन्द की प्रत्येक 
पक्तियों में नगण , भगण , भगण 
और रगण के क्रम में 12 -12
वर्णो के बाद यति है। इसलिए
यहाँ द्रुतविलम्बित छन्द है।
     ।।धन्यवाद।।

रविवार, 28 जनवरी 2024

।।सरस्वती स्तोत्र।।


।।सरस्वती स्तोत्र Saraswati Stotra 1।।
रविरुद्रपितामहविष्णुनुतं हरिचन्दनकुङ्कुमपङ्कयुतम्।
मुनिवृन्दगजेन्द्रसमानयुतं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥१॥
शशिशुद्धसुधाहिमधामयुतं शरदम्बरबिम्बसमानकरम् ।
बहुरत्नमनोहरकान्तियुतं तव नौमि सरस्वति पादयुगम् ॥२॥

कनकाब्जविभूषितभूतिभवं भवभावविभाषितभिन्नपदम्।
प्रभुचित्तसमाहितसाधुपदं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥३॥
भवसागरमज्जनभीतिनुतं प्रतिपादितसन्ततिकारमिदम्।
विमलादिकशुद्धविशुद्धपदं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥४॥
मतिहीनजनाश्रयपादमिदं सकलागमभाषितभिन्नपदम्।
परिपूरितविश्वमनेकभवं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥५॥
परिपूर्णमनोरथधामनिधिं परमार्थविचारविवेकविधिम्।
_|||
सुरयोषितसेवितपादतलं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥६॥

सुरमौलिमणिद्युतिशुभ्रकरं विषयादिमहाभयवर्णहरम्।
निजकान्तिविलोपितचन्द्रशिवं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥७॥
गुणनैककुलं स्थितिभीतपदं गुणगौरवगर्वितसत्यपदम्।
कमलोदरकोमलपादतलं तव नौमि सरस्वति पादयुगम् ॥८॥"
।।सरस्वती स्तोत्र Saraswati Stotra 2।।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रान्विता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकर
प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती
 नि:शेषजाड्यापहा ।।1।।
आशासु राशीभवदंगवल्ली
भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं
वन्देsरविन्दासनसुन्दरि त्वाम ।।2।।
शारदा शारदाम्भोज
वदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं
सन्निधिं सन्निधिं क्रियात ।।3।।
सरस्वतीं च तां नौमि
वागधिष्ठातृदेवताम ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते
यदनुग्रहतो जना: ।।4।।
पातु नो निकषग्रावा
मतिहेम्न: सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं
वचसैव करोति या ।।5।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमा
माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां 
जाड्यान्धकारापहाम ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां
च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं
 बुद्धिप्रदां शारदाम ।।6।।
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, 
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेsखिलमनोरथदे महार्हे, 
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम ।।7।।
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे, श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम ।।8।।
मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता,
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण, भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ।।9।।
मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये,
मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि:, 
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम ।।10।।
ब्रह्मा जगत सृजति पालयतीन्दिरेश:, 
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै: ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे,
न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षा: ।।11।।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी
तुष्टि: प्रभा धृति: ।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टा
भिर्मां सरस्वति ।।12।।
सरस्वत्यै नमो नित्यं 
भद्रकाल्यै नमो नम: ।
वेदवेदान्तवेदांग
विद्यास्थानेभ्य: एव च ।।13।।
सरस्वति महाभागे 
विद्ये कमललोचने ।
विद्यारुपे विशालाक्षि
 विद्यां देहि नमोsस्तु ते ।।14।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं 
मात्राहीनं च यद्भवेत ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि
 प्रसीद परमेश्वरि ।।15।।