बुधवार, 7 जुलाई 2021

।।।नियम एकादशी का।।

               ।।नियम एकादशी का।।
दशमी  से द्वादशी तक नियम एकादशी का,
    बताते आज जगत को जगत तनय मेवाती नन्दन।
दशमी कांस मांस त्याग मसूर चना कोदव शाक का,
  दोबारा भोजन रति मधु परान्न का नहि अभिनन्दन।1।
अब सब सुने मन लगा क्या है त्याग एकादशी का,
      द्यूत निद्रा पान छोड़े तोड़े नहीं दंतधावन चन्दन।
निंदा चुगली चोरी क्रोध झूठ बरजोरी का,
    हिंसा और रति छोड़ करें सदा प्रभु हरि का मनन।2।
व्यायाम छोड़ द्वादशी को ध्यान धरें हरि का,
      पुनः भोजन रति रास प्रवास का करना  खण्डन।अछूत तेल मसूर कांस मधु सुरा व मांस का,
    त्यागें झूठ सिख ले करे सदा एकादशी का वन्दन।3।दशमी  में दस एकादशी में त्याग ग्यारह का
     करना सदा हरि के मनचाहे रुप का दिल से नमन।
एक दशा में रह कर ध्यान धरें केशव का
      आस्था विश्वास से हरि कीर्तन हो रात्रि जागरन।4।
द्वादशी में व्रती को करना है त्याग बारह का
     करना निश्चित है द्वादशी में ही एकादशी का पारन।
धर्म से चलें रक्षा करना काम धर्म का
      पालक हरि करें सदा सबका सब दुःख निवारन।5।
                    ।।  धन्यवाद   ।।
      




शनिवार, 3 जुलाई 2021

।।.बंदउँ नाम राम रघुबर को ।।

   ।।बंदउँ नाम राम रघुबर को।हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
   हम रघुबर राम के नाम की बन्दना करते हैं जो अग्नि,सूर्य और चंद्रमा का कारण स्वरूप है।जानते है--  राम नाम के तीन वर्ण र, अ और म क्रमशः कृसानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा)  के हेतु(कारण)हैं।
यह बात सुज्ञात अर्थात सुप्रसिद्ध है कि रकार अनलबीज, अकार भानुबीज और मकार चंद्रबीज हैं। अग्नि दोनों संध्याओं को,सूर्य दिन को और चंद्रमा रात्रि को प्रकाशित करता है तो राम नाम सभी समय को प्रकाशित करता है।जानते है कि
र= चित,आ=सत और म=आनन्द होता है और इन तीनों के योग  से बना है सच्चिदानंद। और तो और इन तीनों से क्रमशः दैहिक,दैविक,और भौतिक ताप का भी नाश होता है और इनसे क्रमशः वैराग्य, ज्ञान औऱ भक्ति की भी प्राप्ति होती है। और तो और रघुबर हैं --//
रघु =जीव और बर = पति  या स्वामी अर्थात समस्त चराचर के स्वामी है राम।
 यही नहीं--
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
राम नाम के तीनों वर्ण क्रमशः बिधि,हरि,हर ही हैं अर्थात  ब्रह्मा, विष्णु ,महेश ये त्रिमूर्ति भगवान राम ही हैं। वही वेदों के प्राण,निर्गुण ब्रह्म और उपमा रहित गुणनिधान सगुण ब्रह्म भी हैं।
        ऐसे पार ब्रह्म परमेश्वर रघुबर के राम नाम की हम  वन्दना करते हैं।
                  ।।जय श्री राम।।
             

सोमवार, 28 जून 2021

प्रतिबिम्ब

*((((प्रतिबिम्ब))))*

         *एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा?मेरे कर्मचारी,मेरी पत्नी,मेरे बच्चे और सभी लोग मतलबी हैं।कोई भी सही नहीं हैं क्या करूं ?*
*गुरु थोडा मुस्कुराये और उसे एक कहानी सुनाई।*
*एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमे 1000 शीशे लगे थे।एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी।उसने देखा 1000 बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं और वो उन प्रतिबिम्ब बच्चो के साथ खुश रहने लगी।जैसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते।उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है और यहां बार बार आना चाहेगी।*
*थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया।उसने अपने चारो तरफ हजारों दु:ख से भरे चेहरे देखे।वह बहुत दु:खी हुआ।उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा तो उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है।उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है वह यहां दोबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़ दी।*
*इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमें हजारों शीशे लगे है।जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमें लौटा देती है।अपने मन और दिल को साफ़ रखें तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग की तरह ही है।
   
        🌷🌷जय गुरु देव🌷🌷

✓।।यथासंख्य अलंकार।।

             यथासंख्य अलंकार
परिभाषा:-भिन्न धर्म वाले अनेक निर्दिष्ट अर्थों का अनुनिर्देश यथासंख्य अलंकार कहलाता है। यथासंख्य का अर्थ हैं संख्या(क्रम) के अनुसार। इसमें एक क्रम से कुछ पदार्थ पहले कहे जाते हैं, फिर उसी क्रम से दूसरे पदार्थों से अन्वय किया जाता है।यह वाक्य न्यायमूलक अलंकार है।
उदाहरण:-
1.नीचे जल था ऊपर हिम था,
एक तरल था एक सघन।।
2.मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। 
  अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
3.जाके बल  बिरंचि  हरि ईसा।
    पालत सृजत हरत दससीसा।।
4.सचिव बैद्य गुरु तीनि जौ प्रिय बोलहि भय आस।
  राज  धर्म  तन  तीनि  कर  होइ  बेगही  नास।।
एक अद्भुत उदाहरण
5.बंदौ नाम राम रघुबर को।
   हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
यहाँ राम  के तीन वर्ण र,अ और म क्रमशः कृसानु, भानु,और हिमकर  के हेतु  अद्भुत ढंग से यथासंख्य अलंकार  के माध्यम बताये गये हैं।

                 ।। धन्यवाद  ।।

।।अनुमान अलंकार।।

              अनुमान अलंकार
परिभाषा:-प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष की कल्पना या अनुमान करना ही अनुमान अलंकार 
होता  है,यह एक तर्क न्यायमूलक अलंकार है।
उदाहरण:-
1.चलत मार अस हृदय बिचारा।
    सिव बिरोध ध्रुव मरन हमारा।।
2.छुवत सिला भइ नारि सुहाई।
   पाहन ते न   काठ   कठिनाई।।
   तरनिउ मुनि घरनी होइ जाई।
    बाट  परे  मोरि  नाव  उड़ाई।।
          ।।   धन्यवाद  ।।

।।काव्यलिंग अलंकार।।

काव्यलिंग अलंकार:-

किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को 'काव्यलिंग अलंकार' कहते है। यहाँ किसी बात के समर्थन में कोई-न कोई युक्ति या कारण अवश्य दिया जाता है।यह एक तर्क न्यायमूलक अलंकार है।बिना ऐसा किये वाक्य की बातें अधूरी रह जायेंगी।

उदाहरण:-

कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौरात नर, इहि पाए बौराय।
धतूरा खाने से नशा होता है, पर सुवर्ण पाने से ही नशा होता है।
यह एक अजीब बात है।
यहाँ इसी बात का समर्थन किया गया है कि सुवर्ण में धतूरे से अधिक मादकता है।
दोहे के उत्तरार्द्ध में इस कथन की युक्ति पुष्टि हुई है। धतूरा खाने से नशा चढ़ता है, किन्तु सुवर्ण पाने से ही मद की वृद्धि होती है, यह कारण देकर पूर्वार्द्ध की समर्थनीय बात की पुष्टि की गयी है।

उदाहरण:-

2.स्याम गौर किमि कहौ बखानी।

  गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।

3.सिय सोभा नहि जाइ बखानी।

जगदम्बिका रूप गुन खानी।।

4.प्रभु ताते उर हतै न तेही।

एहि के हृदय बसति बैदेही।।

     ।।       धन्यवाद        ।।


।।विषम अलंकार।।

               विषम अलंकार
परिभाषा:-जहाँ कार्य और कारण से सम्बद्ध गुणों अथवा क्रियाओं का परस्पर विरोध उत्पन्न हो वहाँ  विषम अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.कस कीन्ह बरू बौराह *बिधि* जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई?।
जो फलु चहिअ सुरतरूहि सो बरबस बबूरहिं लागई।।
2.कोउ कह संकर चाप कठोरा।
   ये स्यामल मृदु गात किसोरा।।
          ।।   धन्यवाद   ।।