दशमी से द्वादशी तक नियम एकादशी का,
बताते आज जगत को जगत तनय मेवाती नन्दन।
दशमी कांस मांस त्याग मसूर चना कोदव शाक का,
दोबारा भोजन रति मधु परान्न का नहि अभिनन्दन।1।
अब सब सुने मन लगा क्या है त्याग एकादशी का,
द्यूत निद्रा पान छोड़े तोड़े नहीं दंतधावन चन्दन।
निंदा चुगली चोरी क्रोध झूठ बरजोरी का,
हिंसा और रति छोड़ करें सदा प्रभु हरि का मनन।2।
व्यायाम छोड़ द्वादशी को ध्यान धरें हरि का,
पुनः भोजन रति रास प्रवास का करना खण्डन।अछूत तेल मसूर कांस मधु सुरा व मांस का,
त्यागें झूठ सिख ले करे सदा एकादशी का वन्दन।3।दशमी में दस एकादशी में त्याग ग्यारह का
करना सदा हरि के मनचाहे रुप का दिल से नमन।
एक दशा में रह कर ध्यान धरें केशव का
आस्था विश्वास से हरि कीर्तन हो रात्रि जागरन।4।
द्वादशी में व्रती को करना है त्याग बारह का
करना निश्चित है द्वादशी में ही एकादशी का पारन।
धर्म से चलें रक्षा करना काम धर्म का
पालक हरि करें सदा सबका सब दुःख निवारन।5।
।। धन्यवाद ।।
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