गुरुवार, 20 मई 2021

।।तुल्योगिता अलंकार-Equal Pairing।।

    तुल्योगिता अलंकार-Equal Pairing   
             जिन अलंकारों में क्रिया की समानता का      चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है, वे क्रिया साम्यमूलक अलंकार कहे जाते हैं. इन्हें पदार्थगत या गम्यौपम्याश्रित अलंकार भी कहा जाता है. इस वर्ग का प्रमुख अलंकार तुल्ययोगिता अलंकार है.
            जहाँ प्रस्तुतों और अप्रस्तुतों,उपमेयों या  उपमानों में गुण या क्रिया के आधार पर एक धर्मत्व
 संबन्ध का वर्णन हो  वहाँ पर तुल्ययोगिता अलंकार होता है.
     साहित्यदर्पणकार विश्र्वनाथ ने लिखा है-
पदार्थानां प्रस्तुतानाम् अन्येषां वा यदा भवेत्।
एकधर्माभिसम्बन्ध: स्यात्तदा तुल्ययोगिता।।
      तुल्ययोगिता में तुल्यों अथवा समानों का योग किया जाता है। इसमें प्रस्तुतों और अप्रस्तुतों दो असमानों का योग नहीं होता। तुलयोगिता और दीपक में यही अन्तर है कि दीपक में प्रस्तुतों/उपमेयों और अप्रस्तुतों/उपमानों  अर्थात दो असमानों का योग किया जाता है। तात्पर्य यह है कि इस अलंकार में  
अनेक उपमेय या उपमानों का एक धर्माभिसम्बन्ध  वर्णित किया जाता है। अर्थात क्रिया,गुण आदि का सम्बंध होता है।
एक उदाहरण:-
सब कर संसय अरु अग्यानू।मंद महीपन्ह कर 
अभिमानू
भृगुपति केरि गरब गरुआई।सुर मुनि बरन्ह केरि कदराई

सिय कर सोचु जनक पछ्तावा।रानिन्ह कर दारुन 
दुःख दावा।।
संभु चाप बढ़ बोहित पाई।चढ़े जाइ सब संग बनाई।।
उक्त सभी की एक क्रिया है  चढ़े जाइ।अतः यहाँ तुलयोगिता अलंकार है।


  यह कई रूपों में देखा जाता है. जिनमेें ये चार प्रमुख  हैं.

१. प्रस्तुतों या उपमेयों की एकधर्मता:

गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू।
सब कहु परइ दुसह दुःख भारू।।

२. अप्रस्तुतों या उपमानों में एकधर्मता:

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भये अनुकूल
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।

३. जहाँ गुणों की उत्कृष्टा में प्रस्तुत की एकधर्मिता स्थापित हो:

जप तप मख सम दम ब्रत दाना।
बिरति बिबेक जोग बिग्याना।।
सब कर फल रघुपति पद प्रेमा।
तेहि बिनु कोउ न पावइ छेमा।।

४. जहाँ हितू और अहितू दोनों के साथ व्यवहार में एकधर्मता का वर्णन हो:
बंदौ संत समान चित हित अनहित नहि कोउ।
अंजलिगत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोउ।।

               ।।धन्यवाद।।


।।अपह्नुति अलंकार - Concealment।।

         अपह्नुति अलंकार  - Concealment
प्रकृत, प्रस्तुत या उपमेय का प्रतिषेध/निषेध कर अन्य अप्रकृत,अप्रस्तुत या उपमान का आरोप या स्थापना किया जाए तो 'अपह्नुति अलंकार' होता है.
  अपह्नुति का अर्थ है वारण, निषेध करना, छिपाना, प्रगट न होने देना आदि. इसलिए इस अलंकार में प्रायः निषेध देखा जाता है.
          प्रकृतं प्रतिषिध्यान्यस्थापनं स्यादपहुति:- विश्वनाथ : साहित्यदर्पण।
उदाहरण:-
नहि पलाश के पुहुप ये ,हैं ये जरत अंगार।

          इस अलंकार में न, नहि, नहीं, नाही ,ना,मा आदि निषेधवाचक शब्दों की सहायता से उपमेय का निषेध कर उपमान का आरोप या उपमान का आरोप करते हुवेे उपमेय का निषेध किया जाता है।
इसको हम ऐसे भी कह सकते हैं कि कही निषेध पूर्वक उपमान का आरोप किया जाता है तो कही आरोप पूर्वक उपमेय का निषेध किया जाता है। दोनों स्थितियों में उपमेय का निषेध ही होता है।
 अतः यही निषेध पूर्वक आरोप और आरोप पूर्वक निषेध दो भेद भी हो जाते हैं।जिन्हें क्रमशः शाब्दी और आर्थी भी कहते हैं।
          इस अलंकार के अनेक विद्वानों द्वारा अनेक भेद माने जाते हैं  परन्तु ये दो भेद सर्वमान्य हैं।

अपह्नुति के मुख्यतः दो भेद हैं

(क) शाब्दी अपह्नुति - जहाँ शब्दशः निषेध किया जाय।
उदाहरण:-
मैं जो कहा रघुबीर कृपाला।बन्धु न होइ मोर यह काला।
(ख) आर्थी अपह्नुति- जहाँ छल, बहाना आदि के द्वारा निषेध किया जाय।
उदाहरण:-
गौर सरीर स्यामु मन माही।कालकूट मुख पय मुख नाही।। 
   कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरण भी देखें-----
1.तात राम नहि नर भूपाला।
भुवनेश्वर कालहू कर काला।
2.कछु न परीछा लीन्हि गोसाईं।
किन्हीं प्रनामु तुम्हारिहि नाईं।।
एक और
3.वह आवे तब शादी होय,
   उस दिन और न दूजा कोय।
   मीठे लागे उसके बोल,
 हे सखि साजन ना सखि ढोल।।
                ।।धन्यवाद।।                              

मंगलवार, 18 मई 2021

।। उल्लेख अलंकार।।

                उल्लेख अलंकार 

जहाँ एक वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाये, वहाँ 'उल्लेख अलंकार' होता है। जैसे- तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में, तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।
यह दो प्रकार से किया जाता है:-
     प्रथम उल्लेख:-        एक  का वर्णन अनेक व्यक्तियों द्वारा अनेक प्रकार से किया जाय।
उदाहरण:-
जिन्ह के रही भावना जैसी।
प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।
देखहि रूप महा रनधीरा।
मनहु बीर रस धरे सरीरा।।
बिदुसन्ह प्रभु बिराटमय दीसा।
बहु मुख कर पग लोचन सीसा।।
जनक जाति अवलोकहि कैसे।
सजन सगे प्रिय लागहि जैसे।।
सहित बिदेह बिलोकहिं रानी।
सिसु सम प्रीति न जाहि बखानी।।
जोगिन्ह परम तत्त्व मय भासा।
सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा।।
हरि भगतन्ह देखे दोउ भ्राता।
इष्ट देव इव सब सुखदाता।।

द्वितीय उल्लेख:-     एक का वर्णन एक व्यक्ति द्वारा अनेक प्रकार से किया जाय।
उदाहरण:-
जय रघुबंस बनज बन भानू।
गहन दनुज कुल दहन कृसानू।।
जय सुर बिप्र धेनु हित कारी।
जय मद मोह कोह भ्रम हारी।।
बिनय सील करुना गुन सागर।
जयति बचन रचना अति नागर।।
सेवत सुखद सुभग सब अंगा।
जय सरीर छबि कोटि अनंगा।।
करौ काह मुख एक प्रसंसा।
जय महेस मन मानस हंसा।।

            ।।    धन्यवाद    ।।

सोमवार, 17 मई 2021

।।भ्रांतिमान अलंकार - Error।।

        भ्रांतिमान अलंकार- Error
     सादृश्य के कारण प्रस्तुत वस्तु में अप्रस्तुत वस्तु के निश्चयात्मक ज्ञान को भ्रांतिमान् कहते हैं-
प्रस्तुत अर्थात उपमेय ,प्रकृत present जो हमारे सामने है उस पर अप्रस्तुत अर्थात उपमान ,अप्रकृत absent  जो   हमारे सामने नहीं है उसका  भ्रम के कारण निश्चयात्मक  ज्ञान होना भ्रांतिमान अलङ्कार है।
 सादृश्याद् वस्त्वन्तरप्रतीति: भ्रान्तिमान्-
रुय्यक : अलंकारसर्वस्व
वस्तुतः दो वस्तुओं में इतना सादृश्य रहता है कि स्वाभाविक रूप से भ्रम हो जाता है, एक वस्तु दूसरी वस्तु समझ ली जाती हैऔर उस भ्रम के अनुरुप कार्य भी किया जाता है।
संदेह औऱ भ्रम में यही अंतर है कि संदेह में केवल भ्रम परंतु भ्रम में उसके अनुरुप कार्य भी कर दिया जाता है।
     जहाँ सन्देह में वाचक शब्द होते हैं वही भ्रांतिमान में वाचक शब्द नहीं होते हैं लेकिन विचारना,जानना, अनुमान लगाना,समझना,भ्रम आदि भ्रमात्मक क्रियाओं के कोई न कोई रुप आ ही जाते हैं।
उदाहरण देखते हैं और पूर्णतः समझते हैं
1.बिल बिचारि प्रविसन लग्यो नाग सुंड के ब्याल।
ताहि करि ईंख भ्रम लियो उठाई उताल।।
नाग= हाथी
2.कपि करि हृदय बिचारि दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
  जनु असोक अंगार दिन्ह हरषि उठि कर गहेउ।।
मुद्रिका= अंगुठी
3.देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
  बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।।।   
4.किंशुक - कलिका जानकर
           अलि गिरता शुक चोंच पर ।
      शुक मुख में धरता उसे
            जामुन का फल समझकर ।
5. ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।
6.बेसर -मोती- दुति झलक, परी अधर पर आनि। 
    पट पोंछति चूनो  समुझि, नारी  निपट  अजानि। 
7.नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।
                    ।।।   धन्यवाद   ।।।

√ ।। सन्देह अलंकार-Doubt।।

      सन्देह अलंकार  -Doubt
परिभाषा:-
उपमेय में जब उपमान का संशय
हो तब उसे संदेह अलंकार कहते हैं।
प्रकृत(प्रस्तुत) में अप्रकृत(अप्रस्तुत)
का संशय अर्थात संदेह होता है।
संशय ही रहता है स्पष्ट नहीं होता
है। ध्यान रखे संशय स्पष्ट होते ही
भ्रांतिमान अलंकार  हो जाता है।
इस अलंकार में प्रायः निम्न  संदेह
 वाचक शब्द आते है:-
की,कि, को,किधौं, कीधौ,कैधौं, 
केधौ, किं, किं वा,वा, या आदि

इस अलंकार में तीन बातों का होना 

आवश्यक है-

(क) विषय का अनिश्चित ज्ञान।


(ख) यह अनिश्चित समानता पर 

निर्भर हो।


(ग) अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण 

वर्णन हो।

उदाहरण:-

1. सारी बीच नारी है

 कि नारी बीच सारी है। 

 सारी ही  की नारी है

 कि नारी ही की सारी है।।

2.यह काया है या शेष 

उसी की छाया,
क्षण भर उनकी

कुछ नहीं समझ में आया। 

3.को तुम स्यामल गौर सरीरा।

 छत्रिय रुप फिरहु बन बीरा।।

 की तुम तीनि देव मह कोऊ।

 नर नारायण की तुम दोऊ।।


4.कि तुम हरि दासन्ह मह कोई।

 मोरे हृदय प्रीति अस होई।।

 कि तुम राम दिन्ह अनुरागी।

 आयहु मोहि करन बड़ भागी।।

5.(बालधी बिसाल विकराल

 ज्वाल-जाल मानो)

लंक लीलिबे को काल

 रसना पसारी है ।

कैधौं ब्योमबीथिका

 भरे हैं भूरि धूमकेतु,

बीररस बीर तरवारि

 सी उघारी है ।।

तुलसी सुरेस चाप,

 कैधौं दामिनी कलाप,

कैंधौं चली मेरु तें 

कृसानु-सरि भारी है ।

देखे जातुधान

जातुधानी अकुलानी कहैं,

“कानन उजारयौ
अब नगर प्रजारी है ।।


                धन्यवाद


।।परिणाम अलंकार।।

         परिणाम अलंकार

      जहाँ असमर्थ उपमान उपमेय से अभिन्न रहकर किसी कार्य के साधन में समर्थ होता है, वहां परिणाम अलंकार होता है.
   जब कवि उपमेय के लिए उपमान लाये औऱ वर्णन करते समय केवल और केवल उपमेय का ही उसके गुण क्रिया आदि को लेकर वर्णन करें  तो वहाँ परिणाम अलंकार होता है।अर्थ के अन्वव से उपमान -उपमेेेय को एक कर दिया जाता है।
उदाहरण:-
1.मेरा शिशु संसार वह दूध पिये परिपुष्ट हो.
  पानी के ही पात्र तुम, प्रभो! रुष्ट व तुष्ट हो.
.

यहाँ पर संसार उपमान शिशु उपमेय का रूप धारण कर ही दूध पीने में समर्थ होता है, इसलिए परिणाम अलंकार है.

2.कर कमलनि धनु शायक फेरत.
 जिय की जरनि हरषि हँसि हेरत..

यहाँ पर कमल का बाण फेरना तभी संभव है, जब उसे कर उपमेय से अभिन्नता प्राप्त हो.

3.दुहु कर कमल सुधारत बाना।
   कह लंकेश मंत्र लगि काना।।

4.पानि सरोज सोह जयमाला।
   अवचट चितए सकल भुवाला।।
                    धन्यवाद

रविवार, 16 मई 2021

।। स्मरण अलंकार।।

              स्मरण अलंकार
     जहाँ किसी सदृश वस्तु के स्मरण से अन्य वस्तु का स्मरण हो जाय वहाँ स्मरण अलंकार होता है। इसमें दो वस्तुओं  अथवा  स्थितियों का सादृश्य या वैसादृश्य  वर्णन होता है।प्रायः उपमेय को देख कर उपमान याद आता है लेकिन ऐसी स्थिति भी होती है कि उपमान को देख कर उपमेय याद आता है।
उदाहरण
1.सुमिरि सिय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत।
चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत।।

2.बिरहवंत भगवंतहि देखी।
नारद उर भा सोच विसेषी।।
मोर श्राप करि अंगीकारा।
सहत राम नाना दुःख भारा।।

3.भयउ कोलाहल नगर मझारी।
आवा कपि लंका जेहि जारी।।

                    धन्यवाद