रविवार, 16 मई 2021

इन नक्षत्रों में गया धन वापस नहीं आता

 ।।इन नक्षत्रों में गया धन वापस नहीं आता।।
 
उगुन पूगुन बि अज कृ म  आ भ अ मू गुनु साथ।
हरो धरो  गाड़ो  दियो  धन  फिरि  चढ़इ न हाथ।।

हमारे मनीषियों के उक्त मत के अनुसार उगुन अर्थात 
तीनों उत्तरा उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा उत्तराभाद्रपद, पूगुन अर्थात तीनों पूर्वा पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, बिशाखा, रोहिणी, कृतिका ,मघा, आद्रा, भरणी, अश्लेषा और मूल इन  चौदह नक्षत्रों में चोरी किया ,धरोहर रखा,गाड़ा हुआ औऱ उधार दिया हुआ धन फिर लौटकर हाथ नहीं आता।
             ।।   इति शुभम_ ।।

तिथि कब हानिकारक

        ।।कौन सी तिथि कब हानिकारक।।

रबि हर दिसि गुन रस नयन मुनि प्रथमादिक बार।
तिथि  सब नकाज  नसावनी  होइ कुजोग विचार।।
   रबि को द्वादशी, सोम को एकादशी ,मंगल को दशमी,बुध को तृतीया, गुरु को षष्टी, शुक्र को  द्वितीया और शनि को सप्तमी तो ये सभी कामों को बिगाड़ने वाली होती हैं, जिन्हें कुयोग समझा जाता है।
              --/    इति   --/

।। शुभ शकुन।।

          ।।     शुभ शकुन     ।।

गोस्वामी तुलसी दास  केे  अनुसार  धर्म सम्मत  शुभ शकुन हैं -------

नकुल  सुदरसन  दरसनी  छेमकरी   चक   चाष।
दस दिसि देखत सगुन सुभ पूजहि मन अभिलाष।।

    नेवला, मछली, दर्पण, सफेद मुँह वाली चील्ह, चकवा और नीलकण्ठ इनका दसों दिशाओं में किसी ओर देखना शुभ होता है।

सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनी बात।
तुलसी सीतापति भगति सगुन सुमंगल सात।।

       सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही।
        राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।।

                          जय श्री राम जय हनुमान ।
                          संकट मोचन कृपा निधान।।

              ।।।     इति    ।।।

।। शनि-पीड़ानाशक स्त्रोत्र ।।

          ।।    शनि-पीड़ानाशक स्त्रोत्र   ।।
हमारे धार्मिक ग्रंथ धर्म सिन्धु के अनुसाार महर्षि पिप्लाद द्वारा रचित इस स्त्रोत्र का पाठ प्रतिदिन प्रातः काल करने से शनि की साढ़ेसाती, अढ़ैया आदि पीड़ा का नाश  हो जााता है।

ॐ नमस्ते कोणसंस्थाय पिङ्गलाय नमोsस्तु ते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तु  ते।।1।।

नमस्ते  रौद्रदेहाय  नमस्ते    चान्तकाय     च  ।
नमस्ते  यमसंज्ञाय  नमस्ते शौरये  विभो  ।।2।।

नमस्ते  मंदसंज्ञाय    शनैश्चर     नमोsस्तु ते।
प्रसादं  कुरु  देवेश  दीनस्य  प्रणतस्य च ।।3।।

                       ।।।   इति    ।।।


गुरुवार, 13 मई 2021

Translation"USE OF IT"

                || USE OF"IT" ||
RULE:- It is singular pronoun.It is used for a lifeless noun.
Example
The road is wide.It is muddy.
छोटे-छोटे जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े तथा पेड़-पौधे के लिए भी it आता है औऱ it का बहुवचन they होता है।
There is a mango tree in front of my house.It is in blossom.
Special uses of "it"
1.छोटे बच्चे के लिए 
She had a baby in her arms.It was crying.
2.किसी पुरुष के लिंग की जानकारी नहीं हो तो
Who is it at the door?
3. मनुष्यवाची संज्ञा पर जोर देने हेतु
Hallo! It is you.
It is me.
4.जिस वाक्य में ना से युक्त कोई क्रिया 
वाक्य का कर्ता  हो तो वह वाक्य it से शुरू होता है और उस क्रिया से पहले to का प्रयोग करते हैं।
It is difficult to run in the sun.
It is easy to promise but difficult to fulfil.
4.दिन की भिन्न-भिन्न घड़ियों, महीनों, बर्ष,ऋतुओं, दिनों तथा मौसम आदि के नाम को सूचित करने वाले वाक्यों को it  से शुरू करते हैं अर्थात इनके लिए it का प्रयोग किया जाता है।
A.It is morning.
B. It was a dark night.
C.It is March.
D. It was spring.
E.It was 10 O'clock.
F.It was 2nd October.
G.It was 2019.
5.प्राकृतिक घटनाओं वाले वाक्यों को शुरू करने के लिए it का प्रयोग अर्थात इनके लिए it आता है।
A. It is raining.
B.It snowed last night.
मूसलाधार वर्षा हुई थी।
C.It poured down.

Today Special

अंग्रेजी में तिथि लिखने के कई तरीके होते हैं जैसे:-
A.1st February,1996.
B.1 February,1996.
C. February 1st,1996.
D.01.01.1996.
E.01.01.96 
लेकिन पढ़ते एक हैं जैसे:-
February first nineteen ninty six.

        ।।।  THANKS  ।।।

।।अर्थान्तरन्यास अलंकारCorroboration।।

अर्थान्तरन्यास अलंकार 

 Corroboration

जहाँ सामान्य कथन का विशेष से या विशेष कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।

सामान्य - अधिकव्यापी, जो बहुतों पर लागू हो।

विशेष - अल्पव्यापी, जो थोड़े पर ही लागू हो।

उदाहरण-
1.जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग ।
   चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग
2.बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
    कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।
(क ) सामान्य का विशेष बात से समर्थन
 1.संगति सुमति न पावही, परे कुमति के धन्ध ।
  राखो  मेलि   कपूर में , हींग न होई   सुगंध  ।।
    कुमति से ग्रस्त व्यक्ति को संगति से सुमति नहीं मिलती ! इस सामान्य बात का समर्थन 'हींग का कपूर के साथ सुगंधित ना होना' विशेष बात कहकर किया गया है।
2. सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय । 
 पवन जगावत  आग को, दीपहिं देत  बुझाय  ।।
    'सबल के सब सहायक है निर्बल के नहीं 'इस सामान्य बात का समर्थन 'पवन 'के द्वारा सबल आग को प्रदीप्त करने और निर्बल दीपक को बुझा देने के विशिष्ट कथन द्वारा किया गया है।
3.टेढ़ जानि सब बंदौ काहू।
बक्र चंद्रमा ग्रसहि न राहू।।
4.कारन ते कारजु कठिन,होय दोष नहि मोर।
कुलिस अस्थि ते उफल ते लोह कराल कठोर।।
5.भलो भलाई पै लहहि लहहि ।निचाहि नीचू।
सुधा सराहहिं अमरता गरल सराहहिं मीचू।।
(ख)विशेष का सामान्य बात से समर्थन
1.रहिमन अँसुवा नयन ढरि,जिय दुःख प्रकटकरेइ। जाहि   निकारो  गेह तें,  कस न   भेद कह  देइ।।2.जो रहीम उत्तम प्रकृृति का करि सकत कुसंंग।
चन्दन विष व्यापत नहि लिपटे रहत भुजंग।।
3.पर घर घालक लाज न भीरा।
बाझ की जान प्रसव के पीरा।।
   ।।।         धन्यवाद।        ।।।

बुधवार, 12 मई 2021

।।दृष्टान्तअलंकार तथा दृष्टांत,उदाहरण और अर्थान्तरन्यास में अन्तर।।

दृष्टान्त अलंकार तथा दृष्टांत ,उदाहरण और       अर्थान्तरन्यास में अन्तर 
दृष्टान्त अलंकार examplification
सादृश्य मूलक अर्थालंकार
परिभाषा:-
।।चेद्विम्बप्रतिविम्बत्वं दृष्टांतस्तदलंकृतिः।।आचार्य कुवलयानंदजी
वर्ण्य अवर्ण्य दुहन को भिन्न धर्म दरसाइ।
जहाँ बिम्ब प्रतिबिम्ब सो सो दृष्टान्त कहाइ।।
आचार्य खर्रा साहब
व्याख्या:-
दृष्टान्त उस अलंकार को कहते हैं जिसमें उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य दोनों में, उपमान, उपमेय और साधारण धर्म का बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाई देता है।
पहले एक बात कही जाती है, फिर उससे मिलती-जुलती दूसरी बात कही जाती है । इस प्रकार उपमेय वाक्य की उपमान वाक्य से बिम्बात्मक समानता प्रकट की जाती है लेकिन समानता बताने के लिए किसी भी वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता है।। यद्यपि कि दृष्टांत का अर्थ होता है-उदाहरण फिर भी दोनों अलंकारों में अन्तर होता है। यहाँ विशेष बात यही  ध्यान रखना है कि जब काव्य में किसी बात अर्थात अज्ञात तथ्य को बिना किसी वाचक शब्द का प्रयोग किये उदाहरण देकर समझाया जाए तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है औऱ इनमें बिम्ब (असली रूप)और प्रतिबिम्ब (छाया रूप) भाव होना आवश्यक होता है। यह बिम्ब-प्रतिबिंब भाव उपमेय, उपमान और साधारण धर्म तीनों में होता है ।अन्यथा उदाहरण या अर्थान्तरन्यास अलंकार हो जाता है।उपमेय, उपमान में बिम्ब प्रतिबिम्ब का उल्लेख होना अर्थात किसी वस्तु या घटना कि यथार्त सत्यता को प्रमाणित किया जाना दृष्टान्त कहलाता हैं।
उदाहरण :-
(1)करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
    रसरि आवत जात ही, सिलपर परत निशान।।
(2) सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
      पारस परिस कुधातु सुहाई।
(3) एक म्यान में दो तलवारें कभी नही रह सकती है।   किसी और पर प्रेम नारियां,पति का क्या सह  सकती है।
(4)पापी मनुज भी आज मुख से राम नाम निकालते।देखो भयंकर भेड़िये भी, आज आँसू डालते॥
प्रथम पंक्ति में पापीजनों की दुष्टं प्रवृत्ति को भेड़िये के दृष्टान्त द्वारा व्यक्त किया गया है। 
(5)फूलहिं फरहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम॥
इस सोरठा के पूर्वाह्न में कहा गया है कि बेंत अमृत की वर्षा होने पर भी फूलते-फलते नहीं हैं। इसकी पुष्टि उत्तरार्ध में यह कहकर की गई है कि मूर्ख के हृदय में ब्रह्मा जी जैसा गुरु मिलने पर भी चेतना नहीं आती। यह बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है।
(6)करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
   रसरी आवत जात से, सिल पर परत निसान॥
(7)रहिमन अँसुवा नयन ढरि जिय दुःख प्रगट करेइ ।
   जाहि निकारो गेह ते कसन भेद कहि देइ॥ 
(8)जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
    चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग॥
(9)काज परे कुछ और है काज सरे कछु और।
   ‘हिमन भंवरी के परे, नदी सिरावत मौर।।
(10)बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय।।
     रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय ॥
(11)रहिमन ओछे नर न सों बैर भलौ ना प्रीलि।
      काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत ॥
(12)कहा बड़ाई जलधि मिलि,गंग नाम भौ धीम।
      किहि की प्रभुता नहिं घटी,पर घर गए रहीम।

इस अलंकार से संबंधित बिशेष

जिस स्थान पर दो सामान्य  या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब- प्रतिबिम्ब भाव होता है, उस स्थान पर दृष्टान्त अलंकार होता है।इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है।

 दूसरे शब्दों में इन दोनों (उपमेय -उपमान) के धर्म पृथक होते हैं, परंतु फिर भी दोनों में साम्य दिखाई देता है अर्थात दोनों का साधारण अर्थ भिन्न होते हुए भी उनमें समता सी दिखाई देती है।

उदाहरण

भरतहिं होय न राजमद, विधि हरि हर पद पाइ ।

कबहुँ कि काँजी सीकरनि, छीर सिंधु बिनसाइ।।

 इन दोनों वाक्यों में मिलती जुलती बात कही गई है ।

 'भरत को बड़े से बड़ा पद मिलने पर भी राजमद नहीं हो सकता ।'

यह प्रस्तुत प्रसंग है और उपमेय वाक्य है।

 'कांजी सीकरनि से क्षीर सिंधु का विनाश नहीं हो सकता'

यह अप्रस्तुत वाक्य है और उपमान है ।

 इन दोनों वाक्यों में अत्यधिक समानता है ।काव्य-शास्त्रियों की भाषा में दोनों वाक्यों में बिंब प्रतिबिंब भाव है अर्थात गहरा मेल है । भरत के स्थान पर दूसरे वाक्य में क्षीर सिंधु है,राजमद  के स्थान पर दूसरे वाक्य में 'कांजी सीकरनि 'है । दोनों वाक्यों में यह बात कही गई है कि पहले पर दूसरे का प्रभाव नहीं पड़ता ।इस तरह की स्थिति से ही दृष्टांत अलंकार होता है ।

दृष्टान्त और उदाहरण अलंकार में अंतर

 दृष्टांत अलंकार  में वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता। उदाहरण अलंकार में आप देखेंगे कि पहली पंक्ति की बात को दूसरी पंक्ति में उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया जाता है। दोनों वाक्यों की स्थिति तो दृष्टांत जैसी ही है केवल 'जैसे' 'जस''जिमि' 'जैसी'  ' कैसी' 'यथा'  'जथा''आदि वाचक शब्द का प्रयोग अधिक होता है। 'जैसे' आदि वाचक शब्द ही दृष्टांत और उदाहरण अलंकार के अन्तर को स्पष्ट करते हैं।

उदाहरण अलंकार के उदाहरणों को देखें

1-बूँद अघात सहहि गिरि कैसे।

  खल के बचन संत सह जैसे।। 

2-छुद्र नदी भरि चलि उतराई।

  जस थोरेहुँ धन खल बौराई।।

3- ससि सम्पन्न सोह महि कैसी।

   उपकारी कै संपति जैसी ।।

दृष्टान्त और अर्थान्तरन्यास अलंकार में अंतर

दृष्टांत में उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य समान होते हैं अर्थात सामान्य का सामान्य से विशेष का विशेष से समर्थन किया जाता है। जैसे:-

कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।

बिनु जल चलइ की नाव कोटि जतन पचि पचि मरै।।

 लेकिन जब  सामान्य कहीं बात का विशेष बात कहकर या विशेष कहीं बात का सामान्य बात कहकर समर्थन किया जाय तब  अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है !सामान्य - अधिकव्यापी, जो बहुतों पर लागू हो।

विशेष - अल्पव्यापी, जो थोड़े पर ही लागू हो।

( क ) सामान्य का विशेष बात से समर्थन

1-संगति सुमति न पावही, परे कुमति के धन्ध।

  राखो  मेलि   कपूर में , हींग न होई   सुगंध  ।।

 कुमति से ग्रस्त व्यक्ति को संगति से सुमति नहीं मिलती। इस सामान्य बात का समर्थन 'हींग का कपूर के साथ सुगंधित ना होना' विशेष बात कहकर किया गया है।

 2-सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय ।

  पवन जगावत  आग को, दीपहिं देत  बुझाय  ।।

 'सबल के सब सहायक है निर्बल के नहीं 'इस सामान्य बात का समर्थन 'पवन 'के द्वारा सबल आग को प्रदीप्त करने और निर्बल दीपक को बुझा देने के विशिष्ट कथन द्वारा किया गया है।

3-टेढ़ जानि सब बंदौ काहू।बक्र चंद्रमा ग्रसहि न राहू।

4-कारन ते कारजु कठिन,होय दोष नहि मोर।

 कुलिस अस्थि ते उफल ते लोह कराल कठोर।।

5-भलो भलाई पै लहहि लहहि निचाहि नीचू।

 सुधा सराहहिं अमरता गरल सराहहिं मीचू।।(ख)विशेष का सामान्य बात से समर्थन

1-रहिमन अँसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ

  जाहि   निकारो  गेह तें,  कस न   भेद कह  देइ।।

2-जो रहीम उत्तम प्रकृृति का करि सकत कुसंंग।

चन्दन विष व्यापत नहि लिपटे रहत भुजंग।।

3-पर घर घालक लाज न भीरा।

  बाझ की जान प्रसव के पीरा।।

दृष्टान्त के अन्य उदाहरण

1-काटहिं पइ कदरी फरै कोटि जतन कोउ सींच।

बिनय न मान खगेस सुनु डाटहि पइ नव नीच।।

2-राम भजनु बिनु मिटहि न कामा।

थल बिहीन तरु कबहु कि जामा।

               ।।।।।  धन्यवाद    ।।।।।