यदि किसी व्यक्ति, पशु,वस्तु आदि के nature अर्थात प्रकृति या स्वभाव को बताने के लिए हिंदी में होता है, होती है, होते हैं, रहता है,लगता है आदि का प्रयोग किया गया हो तो -----
ऐसी स्थिति में इन सभी की अंग्रेजी कर्ता के अनुसार is अथवा are होते हैं। past tense में was, were लिखते हैं।
Examples:-
1-आग गर्म होती है।
Fire is hot.
2-चाँदनी ठंडी होती है।
Moon-light is cool.
3-चीनी मीठी लगती है।
Sugar is sweet.
4- चावल हल्का होता है।
Rice is light.
5-दो और दो चार होते हैं।
Two and two is four.
6-मनुष्य स्वार्थी होता है।
Man is selfish.
Note :-
Man/woman से जब मनुष्य जाति /स्त्री जाति का बोध हो तो man/ woman लिखते हैं।
लेकिन जब इनका प्रयोग किसी विशेष के लिए हो तो इनके पहले आवश्यकतानुसारa/the का प्रयोग करते हैं।
स्मरण रहे कि इनको छोड़ कर शेष समस्त Common Nouns से पहले a, an या the का प्रयोग होता है।
7-लड़कियॉ लजालु होती हैं।
The girls are shy.
8-वह अपने आचरण के लिए लज्जित नहीं है/ होता है।
He is not ashamed of his conduct.
Note:-
Shy, coy, bashful लज्जाशील, लजालु के लिए , ashamed लज्जित और shameful लज्जाजनक के लिए प्रयोग होते हैं।
जहाँ उपमेय पर उपमान का निषेध रहित आरोप होता है अर्थात उपमेय और उपमान को एक ही मान लिया जाता वहाँ रूपक अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में उपमेय पर उपमान का आरोप या उपमान और उपमेय का अभेद ही रूपक है। आरोप का आशय प्रस्तुत (उपमेय) से अप्रस्तुत (उपमान) का अभेद (एकरूपता) दिखाना है। इसलिए आरोप में प्रायः अभेद दिखाया जाता है। जैसे:-
1-शशि-मुख पर घूघट डाले अंचल में दीप छिपाये। 2-चरण-कमल बन्दौं हरि राई।
3-माया-दीपक नर पतंग, भ्रमि-भ्रमि इवै पड़न्त।
4-अवधेस के बालक चारि सदा, तुलसी मन-मंदिर में विहरें।
ऊपर के उदाहरणों में शशि-मुख,चरण-कमल,माया-दीपक,मन-मंदिर में रूपक अलंकार है। यहाँ एक समानता दिख रही है कि उपमेय और उपमान के बीच में Dash (-) का प्रयोग है।अतः यह ध्यान रखना है कि रूपक अलंकार में प्रायः(हरदम नहीं)Dash (-) का प्रयोग होता है।
और दूसरी बात यह ध्यान रखना है अगर परीक्षा में केवल रूपक अलंकार पूछें तो यहाँ तक पर्याप्त है लेकिन विस्तृत जानकारी के लिए रूपक के बारे में इस प्रकार से हमें विस्तार से जानना चाहिए।
रूपक के सामान्य भेद
रूपक के दो सामान्य भेद होते हैं तद्रूप रूपक और अभेद रूपक।
1-तद्रूप रूपक
तद_का सामान्य अर्थ होता है उस जिसका अर्थ है दूसरा अतः हम कह सकते है कि जहाँ किसी पद में उपमेय को उपमान के दूसरे रूप में स्वीकार किया जाता है; वहाँ तद्रूप रूपक अलंकार होता है।पहचान के लिए जब किसी पद में रूपक के साथ दूसरा, दूसरी, दूसरो, दूजा, दूजी, दूजो, अपर अथवा इनके अन्य समानार्थी शब्दों का प्रयोग हो रहा हो तो वहाँ तद्रूप रूपक अलंकार माना जाता है। जैसे
‘तू सुंदरि शचि दूसरी, यह दूजो सुरराज।’
प्रस्तुत पद में नायक को दूसरे इन्द्र (सुरराज) के रूप में तथा नायिका को दूसरी इन्द्राणी (शची) के रूप में स्वीकार किया गया है, अत: यहाँ तद्रूप अलंकार है।
2-अभेद रूपक
अ भेद अर्थात बिना भेद का अतः हम कह सकते है कि
जहाँ पर उपमेय तथा उपमान में कोई भेद नहीं रह जाता वहाँ पर अभेद रूपक होता है। जैसे:-
सखि ! नील नभस्सर मेँ निकला,
यह हंस अहा तरता तरता |
यहाँ नीले आकाश में सरोवर का इस प्रकार आरोप किया गया है कि दोनों में बिल्कुल भेद नहीं दिखाई देता
नीले आकाश - सरोवर में यह हंस- सूर्य तैरता दिखाई देता है !
नोट:-तद्रूप का अन्य कोई भेद नहीं होता परन्तु अभेद के निम्न तीन भेद हैं जो रूपक के मुख्य भेद माने जाते हैं।
1:-निरंग (निरवयव) रूपक
2:-सांग(सावयव) रूपक
3:-परम्परित( संकीर्ण) रूपक
1-निरंग रूपक:-जहाँ अवयव अर्थात अंगों रहित उपमेय का उपमान पर अभेद आरोप होता है वहाँ निरंग रूपक होता है।
पहचान के लिए जब किसी पद में केवल एक जगह रूपक अलंकार की प्राप्ति होती है तो वहाँ निरंग रूपक अलंकार माना जाता है। जैसे:-
1.‘चरण-कमल मृदु मंजु तुम्हारे।’
2. छिनु-छिनु प्रभु-पद कमल बिलोकी ।
रहिहौं मुदित दिवस जनु कोकी।।
3.बंदौ गुरुपद-पदुम परागा।
2-सांग रूपक:-जहाँ काव्य/पद में उपमेय के अंगों अर्थातअवयवों पर उपमान के अंगों अर्थात अवयवों का आरोप किया जाता है वहाँ सांग रूपक अलंकार होता है।दूसरे शब्दों में जब उपमेय को उपमान बनाया जाये और उपमान के अंग भी उपमेय के साथ वर्णित किये जाए तब सांगरूपक अलंकार होता है।इस रूपक में जिस आरोप की प्रधानता होती है, उसे ‘अंगी’ कहते हैं। शेष आरोप गौण रूप से उसके अंग बन कर आते हैं।सामान्य पहचान के लिए जब किसी पद में एक से अधिक स्थानों पर रूपक की प्राप्ति होती है तो वहाँ सांगरूपक अलंकार माना जाता है। जैसे :-
1.उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
उपमेय – उपम
सीता स्वयंवर मंच – उदयगिरि
रघुवर (राम) – बाल-पतंग (बाल सूर्य)
संत – सरोज (कमल-वन)
लोचन – भृंग (भ्रमर)
2.बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डूबो रही तारा-घट उषा नागरी।।उपमेय – उपमान
नागरी (नगर में रहने वाली) – उषा
घट – तारा
पनघट – अम्बर
अन्य उदाहरण:-
3:-नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहि प्रान केहि बाट।।
4:-रनित भृंग- घंटावाली झरति दान मधु-नीर।
मंद -मंद आवत चल्यो कुंजर कुंज- शरीर।।
5.राम कथा सुन्दर करतारी।
संसय बिहग उड़ावनिहारी।
6.बंदौ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रुप हरि।
महामोह तंपुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
7.संपति चकई भरतु चक मुनि आयसु खेलवार।
तेहि निसि आश्रम पिंजरा राखे भा भिनुसार।।3.परम्परित रूपक:-जहाँ उपमेय पर एक आरोप दूसरे आरोप का कारण होता है वहाँ परम्परित रूपक होता है।दूसरे शब्दों में जब किसी पद में कम से कम दो रूपक अवश्य होऔर उनमें से एक रूपक के द्वारा दूसरे रूपक की पुष्टि हो तो वहाँ परम्परित रूपक अलंकार माना जाता है
जैसे:-
1. तुम बिनु रघुकुल-कुमुद विधु सुरपुर नरक समान।
यहाँ पर रघुकुल में कुमुद का आरोप किया गया है जो राम में विधु के आरोप का कारण है अतः यहाँ पर परंपरित रुपक है।