गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

।।उपमा अलंकार simile।।


    उपमा अलंकार 

     【SIMILE】

   उपमा दो भिन्न-भिन्न वस्तु या
 प्राणी को बराबर-बराबर तौलने
 का प्रयत्न करती है। उपमा दो
 शब्दों से मिलकर बना है:-
उप+मा यहाँ उप का अर्थ है
 समीप,पास या निकट और
 मा का अर्थ है देखना, तौलना,
मापना या तुलना करना।
 इस प्रकार उपमा का शाब्दिक 
अर्थ भी होता है निकट से तुलना
 करना या समानता करना।
   👍उपमा की परिभाषा है:
जहाँ एक वस्तु या प्राणी की
 तुलना अत्यन्त समानता के 
कारण किसी अन्य प्रसिद्ध 
वस्तु या प्राणी से की जाती है 
 वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे:-चाँद सा  सुन्दर मुख यहाँ
 मुख की तुलना चाँद से।
🙅उपमा अलंकार के अंग
उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं:- 
उपमेय,उपमान, साधारण धर्म और
 सादृश्य वाचक शब्द।
1-उपमेय :- इसे प्रत्यक्ष /प्रस्तुत/
 present  नामों से भी जाना 
जाता है। उपमेय का अर्थ होता
 है उपमा देने योग्य अर्थात वह 
वस्तु या प्राणी जिसकी उपमा दी 
जाय उसे  उपमेय कहते हैं।जैसे-
 मुख ,मन आदि।
2- उपमान :- इसे अप्रत्यक्ष / 
अप्रस्तुत/absent  नामों  से भी 
जाना जाता है।उपमेय की तुलना 
जिससे की जाती है वह उपमान 
होता है अर्थात वह प्रसिद्ध बिन्दु
 या प्राणी जिससे  तुलना की जाय
 उसे उपमान कहते हैं।जैसे-कमल,
चाँद आदि।
3- साधारण धर्म:- उपमान तथा
उपमेय में पाया जाने वाला परस्पर 
समान गुण  साधारण धर्म कहलाता
 है जैसे :-चाँद सा सुन्दर मुख में 
सुन्दर शब्द।
4-सादृश्य वाचक शव्द:- उपमेय 
और उपमान के बीच समानता बताने 
के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता हैं 
उस शब्द को सादृश्य वाचक शब्द या 
वाचक शब्द  कहते हैं वास्तव में उपमा
 अलंकार को पहचानने में इनका बहुत
 बड़ा योगदान होता है जैसे:-से, सा, सी, 
सम, समान, सरिस, जैसा, तैसा, कैसा, 
वैसा, जैसे जिमि, वैसे, तैसे, कैसे, 
जिससे,उससे,इव,की नाई ,की तरह 
के अर्थ के आदि शब्द।
👍उपमा अलंकार के भेद :-उपमा 
अलंकार के तीन भेद हैं:-1 .पूर्णोपमा  
2 .लुप्तोपमा  और 3. मालोपमा 
💐(1)पूर्णोपमा – जब वाक्य में उपमा 
के चारों अंग अर्थात – उपमेय , उपमान 
 ,साधारण धर्म तथा वाचक शब्द उपस्थित
 हो तब वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है।
उदाहरण:-
👍1-उषा-सुनहले तीर बरसती
   जय-लक्ष्मी-सी उदित हुई।
यहाँ उपमेय-उषा,उपमान-जय-लक्ष्मी,
साधारण धर्म-उदित हुई(सुनहले तीर 
बरसती)और वाचक शब्द-सी अर्थात 
उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं अतः
 पूर्णोपमा अलंकार है।
👍2. सुनि सुरसरि सम सीतल बानी।
यहाँ उपमेय-बानी, उपमान-सुरसरि,
साधारण धर्म-सीतल और वाचक 
शब्द-समअर्थात उपमा के चारों 
अंग उपस्थित हैं अतः पूर्णोपमा 
अलंकार है।
👍3-राम लखन सीता सहित
 सोहत परण निकेत।
  जिमि बस बासव अमरपुर
 सची जयंत समेत।
यहाँ उपमेय-राम लखन सीता
 और परण निकेत,उपमान- 
वासव सची जयन्त  और अमरपुर,
साधारण धर्म-सोहत,वाचक शब्द-
जिमि अर्थात उपमा के चारों अंग
 उपस्थित हैं अतः पूर्णोपमा 
अलंकार है।
👍4-करिकर सरिस सुभग भुजदण्डा
यहाँ उपमेय-भुजदण्डा,उपमान-करिकर,
साधारण धर्म- सुभग,वाचक शब्द-सरिस
 अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं
 अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍5.निज अघ समुझि न 
कछु कहि जाई।
तपै अवा इव
 उर अधिकाई।
यहाँ उपमेय-उर,उपमान-अवा,
साधारण धर्म-तपै,वाचक
 शब्द-इव अर्थात उपमा के
 चारों अंग उपस्थित हैं अतः 
पूर्णोपमा अलंकार है।
👍6-कीरति भनीति 
भूति भलि सोई।
   सुरसरि सम 
सबकर हित होई।।
कीर्ति,कविता और सम्पत्ति वही 
भली है जो गंगा की तरह
 सबका हित करती है।
यहाँ उपमेय-कीरति भनीति 
भूति,उपमान-गंगा,साधारण
 धर्म-हित,वाचक शब्द-सम 
अर्थात उपमा के चारों अंग 
उपस्थित हैं अतः पूर्णोपमा
 अलंकार है।
👍7-सादर कहहि सुनहि बुध ताही।
 मधुकर सरिस संत गुनग्राही।।
यहाँ उपमेय-संत,उपमान-मधुकर,
साधारण धर्म- गुनग्राही,वाचक शब्द-सरिस 
अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं 
अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍8-पहेली सा जीवन है व्यस्त।
यहाँ उपमेय-जीवन,उपमान-पहेली,
साधारण धर्म-है व्यस्त,वाचक शब्द-सा 
अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं 
अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍9-नदियाँ जिसकी यशधारा सी
   बहती है अब निशि वासर ।
यहाँ उपमेय-नदियाँ,उपमान-यशधारा,
 साधारण धर्म-बहती, वाचक शब्द- सी
 अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं
 अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍10-हरिपद कोमल कमल से ।
यहाँ उपमेय-हरिपद,उपमान-कमल, 
साधारण धर्म-कोमल,वाचक शब्द-से
 अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं 
अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍11-अस  मन गुनई  राउ नहि बोला।
     पीपर पात सरिस मन डोला।।
यहाँ उपमेय-मन,उपमान-पीपर पात
साधारण धर्म-डोला, वाचक शब्द-सरिस
 अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं 
अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
👍12.सीता राम संग बन बासू।
  कोटि अमरपुर सरिस सुपासू।।
यहाँ उपमेय-सीता राम संग बन बासू ,
उपमान-कोटि अमरपुर,साधारण
 धर्म-सुपासू,वाचक शब्द-सरिस
अर्थात उपमा के चारों अंग उपस्थित
 हैं अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
💐(2)लुप्तोपमा – जिस पंक्ति में उपमा
 अलंकार के चारों अंग में से एक या 
अधिक अंग लुप्त हो वहां लुप्तोपमा 
अलंकार होता है।ध्यान यह देना है कि 
जहाँ जो अंग लुप्त होता है वहाँ उस नाम 
का लुप्तोपमा अलंकार होता है। आइये 
अब हम अंगों के लुप्त होने के हिसाब 
से प्रत्येक लुप्तोपमा को देखते हैं।
(अ) उपमेय लुप्तोपमा:-
1-पड़ी थी बिजली सी विकराल ।
यहाँ उपमान -बिजली,वाचक शब्द-सी,
 साधारण धर्म- विकराल तो हैं पर उपमेय 
नहीं  है अतः यहाँ उपमेय लुप्तोपमा है।
2-धर्म हेतु अवतरेउ गोसाई।
   मारेहु मोहि व्याध की नाई।
यहाँ उपमान -ब्याध,वाचक-शब्द-की नाई,
 साधारण धर्म - मारेहु तो हैं पर उपमेय 
नहीं  है अतः यहाँ उपमेय लुप्तोपमा है।
(ब)-उपमान लुप्तोपमा:-
1-जौ पट तरिय तीय सम सिया।
  जग अस जुवती कहाँ कमनीया।
यहाँ उपमेय -सिया,वाचक-शब्द-जौ, 
साधारण धर्म - कमनीया तो हैं पर 
उपमान नहीं  है अतः यहाँ उपमान
 लुप्तोपमा है।
(स)-वाचक लुप्तोपमा:-
नील सरोरुह स्याम 
तरुन अरुन बारिज नयन।
करहु सो मम उर धाम 
सदा क्षीर सागर सयन।।
यहाँ उपमेय-नयन, उपमान-नील 
सरोरुहऔरअरुन बारिज साधारण 
धर्म- स्यामऔर तरुन तो हैं पर वाचक 
शब्द नहीं है अतः वाचक लुप्तोपमा है।
(द)-धर्म लुप्तोपमा:-
1-करि प्रणाम रामहि त्रिपुरारी।
  हरषि सुधा सम गिरा उचारी।
2-कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।
इन दोनों उदाहरणों में उपमेय,उपमान,
वाचक शब्द तो हैं पर साधारण धर्म के
 नहीं होने के कारण धर्म लुप्तोपमा है।
विशेष:-जो-जो अंग नहीं होते हैं उन-उन 
के नाम से लुप्तोपमा हो जाता है जैसे:- 
वाचक उपमान लुप्तोपमा का यह 
उदाहरण है-
सुनि केवट के बैन
 प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहसे  करुना अयन 
चितइ जानकी लखन तन।।
💐(3)मालोपमा – जिस पंक्ति में एक 
से अधिक उपमेय तथा उपमान 
उपस्थित हो।  जिससे ऐसा प्रतीत हो 
कि काव्य में उनकी माला बन गई हो 
तब वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1:-हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि 
हरिहि श्री सागर दई।
तिमि जनक रामहि सिय समर्पी 
बिश्वकल कीरति नई।।
2:- हिरनी से मीन से ,
 सुखखंजन समान चारु
  अमल कमल से , 
विलोचन तिहारे हैं।
3:-जिन्ह हरि कथा सुनी नहि काना।
    श्रवन रन्ध्र अहि भवन समाना।
    नयनन्हि संत दरस नहि देखा।
    लोचन मोर पंख कर लेखा।
    ते सिर कटु तुंबरि सम तूला।
    जे न नमत हरि गुरु पद मूला।
    जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी।
    जीवत सव समान तेइ प्रानी॥
    जो नहिं करइ राम गुन गाना।
    जीह सो दादुर जीह समाना॥
    कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती।
    सुनि हरिचरित न जो हरषाती॥
इतनी सुन्दर मालोपमा शायद ही 
कहीं और सुलभ हो।
        ।।          धन्यवाद       ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें