रविवार, 5 जनवरी 2014

परत दर परत

समाज से सब,सब से  समाज संवेदना सारहीन तार-तार !
व्यवस्था- व्यथा को हादसा कह सहते पाते दर्द बार-बार  !! १ !!
संस्कार ,व्यवहार ,आहार ,विहार सब रो रहे बिफर-बिफर !
आचरण से जहा पूजे जाते  वही आचरण जब होवे  जहर !!२!!
सेवा मेवा को बहा कर सेवक-सुत सत सत बरसावे कहर !
दे वेदना नित अपनो को पाते खाते बरसाते फैलाते जहर !!३!!
बात मानव समाज की ,खोलो ज़रा इसकी परत दर परत !
अहिंसा के पुजारी यहाँ दिख रहे है हर गली हिंसा में ही रत !!४!!
त्रिभंगी ,त्रिपुरारि  पर पड़ते ये भारी कर करामात न्यारी !
सराफत -चादर में सिमट-लिपट झपट लूटन की तैयारी  !!५!!
 

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !

राम राम कहि कर्म बिचारही जल बिनु मीन सा हो मूक !
निज सोच समझ ज्ञान अज्ञान विवेक से हुई कहा चूक !!
कैसे कैसे दोस्त-दुश्मन दोगली चाल से बदतर करे लूक !
बिजली के नंगे तार सा नंगा हो झटके से सब करे टूक !!१!!
एक नहीं अनेक बार ,बार-बार हर बार करते तार-तार सब !
फिर भी क्यों आस है कि सुधर कर सुधार देगे बिगड़े फब !!
अब बात करामात की उचित ढंग से दंड देगे ही इन्हे रब !
डर नही भगवान का कुलकलंकी कापुरुष किंपुरुष को जब !!२!!
तैयार है हम सुधरने सुधारने को हर पल छोटी बड़ी भूल !
लालच बला सूल रहती तैयार खून सा निकालने को मूल !!
निसंतानी-बईमानी की सम्पत लिपट खिल रहे जो फूल !
चाटेगे धूल मिल मिट्टी जायेगे इनके सारे सपने स्थूल !!३!!
देर-अंधेर,न्याय-अन्याय बीच रब सच का झूठ का नहीं !
मान मर्दक मद मारक मारुति दुख निवारे सब का सही !!
दुर्गा दुर्ग साधिनी साधक साध्य साध संहारे दुष्ट है मही !
जिसका कोई नहीं उसका खुदा करे नीर क्षीर  हर कही !!४!!
विचारना सवारना भूल सुधारना सुधरने का मंत्र मूल !
बात बन जाय समाज में बिन जाय तो नहीं पकडे तूल !!
कथ्य अकथ्य वाद विवाद परिवाद संवाद असंवाद भूल !
पर पर काटक कष्ट कंटक राम दंड से फाँके सकूल धूल !!५!!
भूल अपनी सुधारे सुधरे मत जले स्वं ही चिन्ता-चिता !
हानि लाभ जीवन मरन यश अपयश देता है परम-पिता !!
खल संहारक सुजन तारक दे तुमको कृपा उसको रिता !
सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !!६!!  

बुधवार, 1 जनवरी 2014

सकल परम गति के अधिकारी

कृत कर्म कृत काल में सभी माने सही !
काल काल है जाने जन पर माने नहीं !!
सत असत स्वभाव वश फैले हर कही !
दिखता दिन रात गुन दोष है इस मही !!१!!
निज करम धरम को ही मानते भारी !
पर खोट देखन में रत है दुनिया सारी !!
विरत धरम करम रत निनानवे झारी !
पाखंडी भी बन पंडित देवे ज्ञान भारी !!२!!
फैलावे जग जंजाल जगावे जुग जारी !
सरम त्याग बे सरम चाहते सुख सारी !!
बेवकूफ है इनकी नजर श्रम शर्म कारी !
गुन त्याग अवगुन गह की ये महामारी !!३!!
पूरब प्रतीक पिछड़े पन पुरातन पारी !
पाश्चात्य आग में लिपट सुखी  भारी !!
खुद जल जलावे सबै कपटी नर नारी !
पर है सकल परम गति के अधिकारी !!४!!   

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नव उज्ज्वल जल धार सा सबका हो मन

मंगल जात सन दो हजार तेरह है रहा !
सद मंगल सब तरफ मंगल दे है कहा !!
बुध सद्बुध्दि दे दो हजार चौदह महा !
आवत जात सद्बुध्दि मंगला हो अहा !!१!!
नव वर्ष नित नूतन किसलय झहरे जीवन में !
ज्ञान मान नव तुलसी दल लहरे त्रिभुवन में !!
मंगल मूल फूल फल प्रतिपल विकसे तन में !
सत्य कर्म निष्ठा दधि दुर्बा गुण सिहरे रग में !!२!!
नव उज्ज्वल जल धार सा सबका हो मन !
नव गति नव लय नव नव भाव भरे हो तन !!
काम क्रोध लोभ मोह मद से विरत हो जन !
स्व सा सबका भाव हो भारत के कन -कन !! 

रविवार, 29 दिसंबर 2013

लानत

कबहु कतहु कैसे किससे कर्म धर्म करवावे कौन !
मुखर होगा कि मन मसोज कर रह जाएगा मौन !!
सत असत जानत मानत है नहीं व्यवहार आनत !
झूठ फरेब धोखा धड़ी घात प्रतिघात को है लानत !!  

पावकमय ससि स्रवत न आगी !

जय जय जय हे मम हनुमाना !तारक सीता तू जग जाना !!
आपसु आस विश्वास राम सा !गिरिजा के हैं आपु तात सा !!१!!
करू रक्षा इष्टदेव हनुमाना !जानकी जू भगत परसाना !!
समय प्रहार बज्र सम लागे !सारी ठगी तभी तो भागे !!२!!
लूट झूठ बल करते त्यागी !मानहु मोहि जानि हत भागी !!
गला विश्वास का हैं मरोड़े !भाई बन सुख शान्ति जोड़े !!३!!
है काल वश जगत गोसाई !सहोदर अन्य दूजा भाई !!
रवि किरण कभी आग समाना !पर जाड़े में परम सुहाना !!४!!
अमरित बरसे चन्दर सुख का !मंजर आगामय वह दुःख का !!
पावकमय ससि रमा भासती !हतभागी बन आग मागती !!५!!
कवि कुल कमल तुलसी ज़ुबानी !सदा सत्य सिख देय कहानी !!
समय शत्रु डर है भाग भागी !पावकमय ससि स्रवत न आगी !!६!!
 

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

जीवन एक सफ़र है

सोच समय ज्ञान देश तय करते कर्म क्षेत्र !
समय ज्ञान भावी वश बदल जाते है क्षेत्र !!
शौक मजबूरी पर लगा राज करे पर पर !
ये कराते है हमें कभी आराम कभी सफ़र !!
जनम करम मरन भूमि एक अनेक होती है !
भाग्य नचाती नाच नहीं कभी यह सोती है !!
चाहे अनचाहे भावी अपना काम कराती है !
जहां जाना जिसे उसे बिन चाहे ले जाती है !!
सफ़र कराती बात बनाती  साथ निभाती है !
सुन्दर सुखद सरस सपन साकार कराती है !!
अनचाहे चाहत बनवा उसे पूरा करवाती है !
होनी होकर रहे अनहोनी न होय सिखाती है !!
घर से दूर दूजो को अपना सगा बनवाती है !
सजोती सवारती तो बना काम बिगड़वाती है !!
बिगड़ा काम बनवाकर अद्भुत नाम कराती है !
हसती हसाती रोती रुलाती हर खेल खिलाती है !!
जीवन एक सफ़र है जो हर हेतु हर तरह का है !
सुखद है दुखद है मिश्रित है मनोहर भी तो है !!
आये जीवन में कैसा भी विकट समय !
धैर्य धरो होगा अनुकूल नहीं विस्मय !!
सफ़र जिन्दगी का अद्भुत वर्णनीय है !
पग पग पर पतित पावनी कथा जू है !!
गीत है संगीत है जीवन का आधार है !
विकास है परिष्कार है सबका सार है !!
आवश्यकता है मजबूरी है मिलन डोरी है !
इसके बगैर जीवन की कल्पना कोरी है !!
राजा सा जीवन जिनका प्रजातंत्र में है !
भावी सफ़र हेतु ये भी तो परतंत्र ही है !!
राजा हो या रंक सबको मारे भावी डंक !
अछूता नहीं कोइ जीओ जीवन हो असंक !!
सफ़र का क्या कहना सच यह जीवन सा !
प्रारम्भांत जीवन सफ़र है प्रकृति अंग सा !!
उत्थान पतन नव निर्माण का सफ़र अनवरत !
स्वीकार कर सच भावी डर न हो कर्म विरत !!