समाज से सब,सब से समाज संवेदना सारहीन तार-तार !
व्यवस्था- व्यथा को हादसा कह सहते पाते दर्द बार-बार !! १ !!
संस्कार ,व्यवहार ,आहार ,विहार सब रो रहे बिफर-बिफर !
आचरण से जहा पूजे जाते वही आचरण जब होवे जहर !!२!!
सेवा मेवा को बहा कर सेवक-सुत सत सत बरसावे कहर !
दे वेदना नित अपनो को पाते खाते बरसाते फैलाते जहर !!३!!
बात मानव समाज की ,खोलो ज़रा इसकी परत दर परत !
अहिंसा के पुजारी यहाँ दिख रहे है हर गली हिंसा में ही रत !!४!!
त्रिभंगी ,त्रिपुरारि पर पड़ते ये भारी कर करामात न्यारी !
सराफत -चादर में सिमट-लिपट झपट लूटन की तैयारी !!५!!
व्यवस्था- व्यथा को हादसा कह सहते पाते दर्द बार-बार !! १ !!
संस्कार ,व्यवहार ,आहार ,विहार सब रो रहे बिफर-बिफर !
आचरण से जहा पूजे जाते वही आचरण जब होवे जहर !!२!!
सेवा मेवा को बहा कर सेवक-सुत सत सत बरसावे कहर !
दे वेदना नित अपनो को पाते खाते बरसाते फैलाते जहर !!३!!
बात मानव समाज की ,खोलो ज़रा इसकी परत दर परत !
अहिंसा के पुजारी यहाँ दिख रहे है हर गली हिंसा में ही रत !!४!!
त्रिभंगी ,त्रिपुरारि पर पड़ते ये भारी कर करामात न्यारी !
सराफत -चादर में सिमट-लिपट झपट लूटन की तैयारी !!५!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें