सोमवार, 9 अगस्त 2021
पवित्रा एकादशी
पुत्रदा एकादशी
धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया, हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया।
राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा आश्रम में गए और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी है। मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा वे उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।
जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
।।धन्यवाद।।
सोमवार, 26 जुलाई 2021
√शिव वन्दना
असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति
''हे शिव, यदि नीले पर्वत को समुद्र में मिला कर स्याही तैयार की जाए, देवताओं के उद्यान के वृक्ष की शाखाओं को लेखनी बनाया जाए और पृथ्वीको कागद बनाकर भगवती शारदा देवी अर्थात सरस्वती देवी अनंतकाल तक लिखती रहें तब भी हे प्रभो! आपके गुणों का संपूर्ण व्याख्यान संभव नहीं होगा।''
।।बिल्वपत्र।।
बिल्वाष्टकम् में बेल पत्र (बिल्व पत्र) के गुणों के साथ-साथ महादेव का उसके प्रति प्रेम भी बताया गया है. सावन में प्रतिदिन बिल्वाष्टकम का पाठ श्रद्धा भक्ति से किया जाना अत्यन्त शुभ एवं लाभदायक होता है।इसकी सभी विशेषताएं इस बिल्वाष्टक में हैं।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् ।
त्रिजन्मपाप-संहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।1।।
त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रै: कोमलै: शुभै: ।
शिवपूजां करिष्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।2।।
अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्धयन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।3।।
शालिग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।
सोमयज्ञ-महापुण्यमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।4।।
दन्तिकोटिसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च ।
कोटिकन्या-महादानमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।5।।
लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।6।।
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोरपापसंहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।7।।
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे ।
अग्रत: शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।9।।
विल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्।।10।।
।।इति बिल्वाष्टकं सम्पूर्णम्।।
रविवार, 25 जुलाई 2021
।। शिव का माह सावन ।।
।। शिव का माह सावन ।।
हिंदू धर्म में सावन के महीने का खास महत्व होता है. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने के मनचाहा फल प्राप्त होता है.सावन के सोमवार को की गई पूजा, व्रत, उपाय तुंरत फल प्रदान करने वाले कहे गए हैं. माना जाता है कि अगर सावन सोमवार के दिन कुछ विशेष चीजों को घर लाया जाए, तो व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है. व्यक्ति को उन सभी चीजों की प्राप्ति होती है जिसकी वह लंबे से समय कामना कर रहा होता है. आइए जानते हैं उन चीजों के बारे में-
गंगा जल- सावन के सोमवार के दिन घर में गंगा जल लाना काफी शुभ माना जाता है. गंगा जल को लाकर यदि किचन में रखा जाए तो इससे व्यक्ति की किस्मत बदल सकती है और घर में समृद्धि फभी आती है. इससे परिवार में सभी की तरक्की होती है.
रुद्राक्ष- सावन सोमवार के दिन रुद्राक्ष को घर लाकर उसे मुखिया के कमरे में रखा जाए, तो घर का भाग्य बदलने में समय नहीं लगता. इससे कई चमत्कारीस लाभ प्राप्त होते हैं. घर की आर्थिक दिक्कतें दूर हो जाती हैं. साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.
भस्म- सावन के सोमवार के दिन भस्म लाकर उसे भगवान शिव की मूर्ति के पास रख दें. इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा फल देते हैं.
चांदी का त्रिशूल- सावन के सोमवार के दिन चांदी का त्रिशूल लाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. साथ ही सावन सोमवार के दिन तांबे या चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा लाकर उसे घर के मुख्य दरवाजे के नीचे दबा देना चाहिए. इससे आपकी सभील समस्याएं दूर हो
सावन शिवरात्रि महत्त्व
सावन की शिवरात्रि का व्रत और इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से अर्चक को शांति, रक्षा, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि व्रती के सभी पाप को नष्ट कर देती है. सावन की शिवरात्रि का व्रत रखने से कुवारें लोगों को मनचाहा वर या वधु मिलने की मान्यता है. वहीं, दांपत्य जीवन में प्रेम की प्रगाढ़ता बढ़ती है.
सावन सोमवार व्रत कथा
एक समय एक नगर में एक साहूकार का कोई संतान नहीं था, दुखी साहूकार पुत्र के लिए हर सोमवार व्रत रखता था. शिव मंदिर में पूजा से प्रसन्न मां पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, साथ ही कहा कि बेटे की आयु बारह वर्ष ही होगी. साहूकार का पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ तो पढ़ने काशी भेजा गया. साहूकार ने उसके मामा को बुलाकर धन दिया और कहा कि तुम इसे काशी ले जाओ, रास्ते में जहां यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना. मामा-भांजे दान-दक्षिणा देते चल पड़े. रात को एक नगर में राजा की बेटी का विवाह था. मगर जिस राजकुमार से विवाह होना था, वह काना था. राजकुमार के पिता ने यह बात छुपाने को साहूकार के बेटे को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर विवाह करवा दिया.
साहूकार का पुत्र ईमानदार होने से उसने राजकुमारी की चुन्नी पर सच्चाई लिख दी. इस पर राजकुमारी के पिता ने पुत्री को विदा नहीं किया और बारात बैरंग लौट गई. उधर, साहूकार का बेटा मामा के साथ काशी पहुंच गया. जिस दिन उसकी आयु 12 साल हुई, उसी दिन यज्ञ रखा गया. मगर अचनक उसकी तबीयत बिगड़ गई और शिवजी के वरदान के अनुसार उसके प्राण निकल गए. भांजे को मृत देखकर मामा ने विलाप शुरू किया. उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से गुजरे तो पार्वती ने कहा कि स्वामी, मुझे इसका रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा है, आप इसके कष्ट दूर करिए.
शिवजी ने कहा, कि यह साहूकार का पुत्र है, जिसे 12 वर्ष आयु वरदान दिया था. इसकी आयु पूरी है, मगर पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने लड़के को जीवित कर दिया. पढ़ाई पूरी कर वह फिर मामा के साथ घर की ओर लौटा तो रास्ते में उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. यहां भी उसने पिता के कहे अनुसार यज्ञ किया. इस दौरान राजकुमारी के पिता ने उसे पहचान कर खूब खातिरदारी की और पहले पुत्री के साथ हो चुकी शादी का हवाला देकर उसके साथ विदा कर दिया.
शिव गायत्री मंत्र -ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
यह शिव गायत्री मंत्र है, जिसका जप करने से मनुष्य का कल्याण संभव है। शिव गायत्री मंत्र का जप प्रत्येक सोमवार को करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार से उपवास रखते हुए इस मंत्र का आरंभ करना चाहिए। श्रावण मास में सोमवार को शिव गायत्री मंत्र का जप विशेष शुभ फलदायी माना गया है। शिव गायत्री मंत्र का जप करके शिवलिंग पर गंगा जल, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, धूप, फल, पुष्प आदि श्रद्धा भाव से अर्पित करने से शिव एवं शक्ति दोनों की ही कृपा मिलती है।
शिव गायत्री मंत्र के लाभ
पवित्र भाव के साथ विधिपूर्वक शिव गायत्री मंत्र का जप करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। अकाल मृत्यु तथा गम्भीर बीमारियों से मुक्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप अत्यंत ही शुभ है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में काल सर्प योग हो अथवा राहु, केतु या शनि ग्रह जीवन में पीड़ा दे रहे हों, उन्हें शिव गायत्री मंत्र Ka पाठ राहत देता है। जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शांति, यश, धनलाभ, पारिवारिक सुख आदि की प्राप्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र अवश्य करें।
शनिवार, 24 जुलाई 2021
।।कामिका एकादशी।।
।।कामिका एकादशी ।।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, कथा महात्मय सुनने के साथ दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन पूरे समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,पान-सुपारी चढ़ाकर करनी चाहिए। इससे श्रीहरि की कृपा बरसती है। विष्णु पुराण,पद्म पुराण व भागवद् के अनुसार कामिका एकादशी समस्त भय और पापों का नाश करने वाली संसार के मोह माया में डूबे हुए प्राणियों को पार लगाने वाली नाव के समान बताया गया है। इस व्रत के करने संतान सुख, अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है।
धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे कि हे भगवन, कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, क्या महत्त्व है और उसकी कथा बताए।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।
कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।
कामिका एकादशी व्रत कथा!
एक गांव में एक वीर श्रत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राहमण से हाथापाई हो गई और ब्राहमण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस श्रत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
इस पर श्रत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राहमणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पश्र की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने श्रत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।
।। धन्यवाद।।
।। तुलसी/वृन्दा ।।
।। तुलसी/वृन्दा।।
हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महच्व होता है. धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने के साथ ही तुलसी के कई औषधीय गुण भी होते हैं. माना जाता है कि घर में तुलसी का पौधा लगाने से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है. कई लोग रोजना सुबह उठकर तुलसी की चाय पीना पसंद करते हैं ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं किस दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए साथ ही पत्तों को तोड़ते समय किन बातों का ख्याल रखना चाहिये।
माना जाता है कि रविवार, सूर्य ग्रहण, एकादशी, संक्रान्ति, द्वादशी, चंद्रग्रहण और संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए. मान्यता के अनुसार, एकादशी पर तुलसी / वृन्दा माँ व्रत करती हैं इसलिए इस दिन पत्ते तोड़ने से घर में गरीबी आती है. अतः निषेध दिनों हेतु एक दिन पूर्व तुलसी के पत्तों को तोड़कर रख लें और बाद में इन्हे सभी प्रकार के कार्यों में प्रयोग करें , इस तरह से आप निषेध दिनों में भी बिना तुलसी के पत्ते तोड़े पूर्व के पत्तों को भगवान को चढ़ा सकते हैं। ग्यारह दिन से अधिक पुराने तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल ना करें क्योंकि यह बासी माने जाते हैं।
साथ ही ध्यान रखें कि भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
तुलसी नामाष्टक मंत्र
बृन्दा बृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ॥
एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।
यः पठेत् तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥पौराणिक कथा मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्री राम ने गोमती तट पर और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने तुलसी लगायी थी। यह भी कहा जाता है कि अशोक वाटिका में सीता जी ने रामजी की प्राप्ति के लिए तुलसी जी का मानस पूजन ध्यान किया था। हिमालय पर्वत पर पार्वती जी ने शंकर जी की प्राप्ति के लिए तुलसी का वृक्ष लगाया था।
तुलसी पूजा या तुलसी के प्रयोग में आपको निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- तुलसी के पत्ते हमेशा सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए।
- रविवार के दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक नहीं जलाना चाहिए।
- भगवान विष्णु और इनके अवतारों को तुलसी दल जरूर अर्पित करना चाहिए।
- भगवान गणेश और मां दुर्गा को तुलसी कतई न चढ़ाएं।
-पूजा में तुलसी के पुराने पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
-तुलसी के पत्तों को हमेशा चुटकी बजाकर ही तोड़ना चाहिए।
- रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए
- खासकर रात के वक्त तुलसी पत्तों को तोड़ने से परहेज करना चाहिए।
जल चढ़ाते वक्त पढ़ें ये मंत्र -- महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी। आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।। इसके बाद तुलसी की परिक्रमा कीजिए।
इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं
ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
तुलसी/वृन्दा की कथा
दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवि पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत महादेव से युद्ध करने जाने लगा तब वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से महादेव भी जलंधर को न जीत सके तब सारे देवता भगवान विष्णु जी के पास गए।
तुलसी मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी जिसमें से कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है।
किस जगह पर लगाएं तुलसी का पौधा
तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, घर के दक्षिणी भाग में लगा हुआ तुलसी का पौधा फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। तुलसी को घर की उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। ये तुलसी के लिए शुभ दिशा मानी गई है, अगर उत्तर दिशा में तुलसी का पौधा लगाना संभव न हो तो पूर्व दिशा में भी तुलसी को लगा सकते हैं। रोज सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए।
।। धन्यवाद ।।