रविवार, 25 जुलाई 2021

।। शिव का माह सावन ।।

         ।।  शिव का माह सावन  ।।

       हिंदू धर्म में सावन के महीने का खास महत्व होता है. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने के मनचाहा फल प्राप्त होता है.सावन के सोमवार को की गई पूजा, व्रत, उपाय तुंरत फल प्रदान करने वाले कहे गए हैं. माना जाता है कि अगर सावन सोमवार के दिन कुछ विशेष चीजों को घर लाया जाए, तो व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है. व्यक्ति को उन सभी चीजों की प्राप्ति होती है जिसकी वह लंबे से समय कामना कर रहा होता है. आइए जानते हैं उन चीजों के बारे में-

गंगा जल- सावन के सोमवार के दिन घर में गंगा जल लाना काफी शुभ माना जाता है. गंगा जल को लाकर यदि किचन में रखा जाए तो इससे व्यक्ति की किस्मत बदल सकती है और घर में समृद्धि फभी आती है. इससे परिवार में सभी की तरक्की होती है.

रुद्राक्ष- सावन सोमवार के दिन रुद्राक्ष को घर लाकर उसे मुखिया के कमरे में रखा जाए, तो घर का भाग्य बदलने में समय नहीं लगता. इससे कई चमत्कारीस लाभ प्राप्त होते हैं. घर की आर्थिक दिक्कतें दूर हो जाती हैं. साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.

भस्म- सावन के सोमवार के दिन भस्म लाकर उसे भगवान शिव की मूर्ति के पास रख दें. इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा फल देते हैं.

चांदी का त्रिशूल- सावन के सोमवार के दिन चांदी का त्रिशूल लाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. साथ ही सावन सोमवार के दिन तांबे या चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा लाकर उसे घर के मुख्य दरवाजे के नीचे दबा देना चाहिए. इससे आपकी सभील समस्याएं दूर हो

सावन शिवरात्रि महत्त्व

     सावन की शिवरात्रि का व्रत और इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से अर्चक को शांति, रक्षा, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि व्रती के सभी पाप को नष्ट कर देती है. सावन की शिवरात्रि का व्रत रखने से कुवारें लोगों को मनचाहा वर या वधु मिलने की मान्यता है. वहीं, दांपत्य जीवन में प्रेम की प्रगाढ़ता बढ़ती है.

सावन सोमवार व्रत कथा

    एक समय एक नगर में एक साहूकार का कोई संतान नहीं था, दुखी साहूकार पुत्र के लिए हर सोमवार व्रत रखता था. शिव मंदिर में पूजा से प्रसन्न मां पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, साथ ही कहा कि बेटे की आयु बारह वर्ष ही होगी. साहूकार का पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ तो पढ़ने काशी भेजा गया. साहूकार ने उसके मामा को बुलाकर धन दिया और कहा कि तुम इसे काशी ले जाओ, रास्ते में जहां यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना. मामा-भांजे दान-दक्षिणा देते चल पड़े. रात को एक नगर में राजा की बेटी का विवाह था. मगर जिस राजकुमार से विवाह होना था, वह काना था. राजकुमार के पिता ने यह बात छुपाने को साहूकार के बेटे को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर विवाह करवा दिया.  

साहूकार का पुत्र ईमानदार होने से उसने राजकुमारी की चुन्नी पर सच्चाई लिख दी.  इस पर राजकुमारी के पिता ने पुत्री को विदा नहीं किया और बारात बैरंग लौट गई. उधर, साहूकार का बेटा मामा के साथ काशी पहुंच गया. जिस दिन उसकी आयु 12 साल हुई, उसी दिन यज्ञ रखा गया. मगर अचनक उसकी तबीयत बिगड़ गई और शिवजी के वरदान के अनुसार उसके प्राण निकल गए. भांजे को मृत देखकर मामा ने विलाप शुरू किया. उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से गुजरे तो पार्वती ने कहा कि स्वामी, मुझे इसका रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा है, आप इसके कष्ट दूर करिए.

शिवजी ने कहा, कि यह साहूकार का पुत्र है, जिसे 12 वर्ष आयु वरदान दिया था. इसकी आयु पूरी है, मगर पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने लड़के को जीवित कर दिया. पढ़ाई पूरी कर वह फिर मामा के साथ घर की ओर लौटा तो रास्ते में उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. यहां भी उसने पिता के कहे अनुसार यज्ञ किया. इस दौरान राजकुमारी के पिता ने उसे पहचान कर खूब खातिरदारी की और पहले पुत्री के साथ हो चुकी शादी का हवाला देकर उसके साथ विदा कर दिया.

शिव गायत्री मंत्र -ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

    यह शिव गायत्री मंत्र है, जिसका जप करने से मनुष्य का कल्याण संभव है। शिव गायत्री मंत्र का जप प्रत्येक सोमवार को करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार से उपवास रखते हुए इस मंत्र का आरंभ करना चाहिए। श्रावण मास में सोमवार को शिव गायत्री मंत्र का जप विशेष शुभ फलदायी माना गया है। शिव गायत्री मंत्र का जप करके शिवलिंग पर गंगा जल, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, धूप, फल, पुष्प आदि श्रद्धा भाव से अर्पित करने से शिव एवं शक्ति दोनों की ही कृपा मिलती है।

शिव गायत्री मंत्र के लाभ

   पवित्र भाव के साथ विधिपूर्वक शिव गायत्री मंत्र का जप करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। अकाल मृत्यु तथा गम्भीर बीमारियों से मुक्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप अत्यंत ही शुभ है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में काल सर्प योग हो अथवा राहु, केतु या शनि ग्रह जीवन में पीड़ा दे रहे हों, उन्हें शिव गायत्री मंत्र Ka पाठ राहत देता है। जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शांति, यश, धनलाभ, पारिवारिक सुख आदि की प्राप्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र अवश्य करें।

गायत्री मंत्र : 
1." ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् "
 
 2.गणेश :- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।

3. ब्रह्मा :- ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
4. ब्रह्मा :- ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
5. ब्रह्मा:- ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
6. विष्णु:- ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।।
 
7. रुद्र :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
 
8. रुद्र :- ॐ पंचवक्त्राय विद्महे, सहस्राक्षाय महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
 
9. दक्षिणामूर्ति :- ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे, ध्यानस्थाय धीमहि, तन्नो धीश: प्रचोदयात् ।।
 
10. हयग्रीव :- ॐ वागीश्वराय विद्महे, हयग्रीवाय धीमहि, तन्नो हंस: प्रचोदयात् ।।
 
11. दुर्गा :- ॐ कात्यायन्यै विद्महे, कन्याकुमार्ये च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।।
 
12. दुर्गा :- ॐ महाशूलिन्यै विद्महे, महादुर्गायै धीमहि, तन्नो भगवती प्रचोदयात् ।।
 
13. दुर्गा :- ॐ गिरिजाय च विद्महे, शिवप्रियाय च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।।
 
14. सरस्वती :- ॐ वाग्देव्यै च विद्महे, कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
 
15. लक्ष्मी:- ॐ महादेव्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।।
 
16. शक्ति :- ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे, विश्वजनन्यै धीमहि, तन्नो शक्ति प्रचोदयात् ।।
 
17. अन्नपूर्णा :- ॐ भगवत्यै च विद्महे, महेश्वर्यै च धीमहि, तन्नोन्नपूर्णा प्रचोदयात् ।।
 
18. काली :- ॐ कालिकायै च विद्महे, श्मशानवासिन्यै धीमहि, तन्नो घोरा प्रचोदयात् ।। 
 
19. नन्दिकेश्वरा :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, नन्दिकेश्वराय धीमहि, तन्नो वृषभ: प्रचोदयात् ।।
 
20. गरुड़ :- ॐ तत्पुरूषाय विद्महे, सुवर्णपक्षाय धीमहि, तन्नो गरुड: प्रचोदयात् ।।
 
21. हनुमान :- ॐ आंजनेयाय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ।।
 
22. हनुमान :- ॐ वायुपुत्राय विद्महे, रामदूताय धीमहि, तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ।।
 
23. शण्मुख :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महासेनाय धीमहि, तन्नो शण्मुख प्रचोदयात् ।।
 
24. अयप्पन :- ॐ भूतादिपाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो शास्ता प्रचोदयात् ।।
 
25. धनवन्तरी :- ॐ अमुद हस्ताय विद्महे, आरोग्य अनुग्रहाय धीमहि, तन्नो धनवन्त्री प्रचोदयात् ।।
 
26. कृष्ण :- ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण प्रचोदयात् ।।
 
27. राधा :- ॐ वृषभानुजाय विद्महे, कृष्णप्रियाय धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात् ।।
 
28. राम :- ॐ दशरथाय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो रामा: प्रचोदयात् ।।
 
29. सीता :- ॐ जनकनन्दिंयै विद्महे, भूमिजयै धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात् ।।
 
30. तुलसी:- ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।
        ।।         धन्यवाद       ।।

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