शनिवार, 24 जुलाई 2021

।। तुलसी/वृन्दा ।।

                   ।। तुलसी/वृन्दा।।

         हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महच्व होता है. धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने के साथ ही तुलसी के कई औषधीय गुण भी होते हैं. माना जाता है कि घर में तुलसी का पौधा लगाने से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है. कई लोग रोजना सुबह उठकर तुलसी  की चाय पीना पसंद करते हैं ऐसे में हम आपको  बताने जा रहे हैं किस दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए साथ ही पत्तों को तोड़ते समय किन बातों का ख्याल रखना  चाहिये।

       माना जाता है कि रविवार, सूर्य ग्रहण, एकादशी, संक्रान्ति, द्वादशी, चंद्रग्रहण और संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए. मान्यता के अनुसार, एकादशी पर तुलसी / वृन्दा माँ व्रत करती हैं इसलिए इस दिन पत्ते तोड़ने से घर में गरीबी आती है. अतः निषेध दिनों हेतु एक दिन पूर्व तुलसी के पत्तों को तोड़कर रख लें और बाद में  इन्हे सभी प्रकार के कार्यों में प्रयोग करें , इस तरह से आप निषेध दिनों में भी बिना तुलसी के पत्ते तोड़े पूर्व के पत्तों को भगवान को चढ़ा सकते हैं। ग्यारह दिन से अधिक पुराने तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल ना करें क्योंकि यह बासी माने जाते हैं।

    साथ ही ध्यान रखें कि भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ऐसा करना अशुभ माना जाता है।

तुलसी नामाष्टक मंत्र
बृन्दा बृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ॥

एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।

यः पठेत् तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥पौराणिक कथा                                              मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्री राम ने गोमती तट पर और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने तुलसी लगायी थी। यह भी कहा जाता है कि अशोक वाटिका में सीता जी ने रामजी की प्राप्ति के लिए तुलसी जी का मानस पूजन ध्यान किया था। हिमालय पर्वत पर पार्वती जी ने शंकर जी की प्राप्ति के लिए तुलसी का वृक्ष लगाया था।

 तुलसी पूजा या तुलसी के प्रयोग में आपको निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- तुलसी के पत्ते हमेशा सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए।

- रविवार के दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक नहीं जलाना चाहिए।

- भगवान विष्णु और इनके अवतारों को तुलसी दल जरूर अर्पित करना चाहिए।

- भगवान गणेश और मां दुर्गा को तुलसी कतई न चढ़ाएं।

-पूजा में तुलसी के पुराने पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

-तुलसी के पत्तों को हमेशा चुटकी बजाकर ही तोड़ना चाहिए।

- रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए

- खासकर रात के वक्त तुलसी पत्तों को तोड़ने से परहेज करना चाहिए। 

जल चढ़ाते वक्त पढ़ें ये मंत्र -- महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी। आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।। इसके बाद तुलसी की परिक्रमा कीजिए। 

इस मंत्र का भी  जाप कर सकते हैं 

 ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

तुलसी/वृन्दा की कथा

   दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवि पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत  महादेव से युद्ध करने जाने लगा तब वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से महादेव भी जलंधर को न जीत सके तब सारे देवता  भगवान विष्णु जी के पास गए। 

 सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं। 
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में  से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में महादेव  ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा - आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर  सती हो गई। 
 उनकी राख से  एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह मनाया जाता है। शालिग्राम पत्थर गंडकी नदी से प्राप्त होता है।यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है. बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं.

तुलसी  मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी जिसमें से कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। 

किस जगह पर लगाएं तुलसी का पौधा 
तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, घर के दक्षिणी भाग में लगा हुआ तुलसी का पौधा फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। तुलसी को घर की उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। ये तुलसी के लिए शुभ दिशा मानी गई है, अगर उत्तर दिशा में तुलसी का पौधा लगाना संभव न हो तो पूर्व दिशा में भी तुलसी को लगा सकते हैं। रोज सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए। 

                ।।  धन्यवाद   ।।  




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