गुरुवार, 13 सितंबर 2018

हिन्दी का घर वार है hindi has home etc

हिन्दी ही है हमारी हम सफर हम राज है।
हर हिनदुस्तानी इस  पर करे नित नाज है।।
छत्तीस कौम छत्तीस राज भारत धाम है।
हर नाम में यहॉ राधेश्याम सीताराम है।।1।।
हिन्दी बिन्दी है सुहागन माथे सिन्दूर है।
राज हरियाणा हिमाचल झार भरपूर है।।
उत्तर-मध्य दिल्ली दिल छत्तीस बिहार है।
चण्डीगढ़-उत्तराखण्ड हिन्दी का घर-वार है।।2।।
एकादश राज के जन जन तेरा ही वास है।
शेष पच्चीस  में भी तू करती नित रास है।।
चीनी जन जनसंख्या जग जोहे जवास है।
हिन्दी फिजी कनाडा नव देशन प्रवास है।।3।।
तू हमारी धड़कन रग रक्त का संचार है।
तुझे सजाना सवारना कवि व्यवहार है।।
राज डिंगल पिंगल महाकाव्य  संसार है।
मारवाड़ी मेवाड़ी मालवी निमाड़ी सिंगार है।।4।।
बहत्तर बोली यहॉ फले-फूले खूब तूल है।

अवधी अवधेश ब्रजी ब्रजेश माथे फूल है।।

संस्कृत जननी उर्दू भगिनि का इक कूल है।

पालि प्राकृत अपभ्रन्श की यात्रा ही मूल है।।5।।
जैन बौध मुस्लिम सिख ईसाई तुझे अपनाई।
रहीम रसखान जायसी रसलीन ने तुझे गाई।।
सूरदास सूरज है तेरी छठा क्या खूब फैलाई।
हुलसी के तुलसी तेरे से क्या राम गाथा गाई।।6।।
निज भाषा ही भाषा है पर भाषा हिय सूल।
भारत के रग रग वसी हिन्दी है हमारी मूल।।
चन्द्रशेखर की चन्द्र तू तू  हर माथे का फूल।
अन्य की गा गाथा क्यों करे कोई बडी भूल।।7।।
दुःख की आह सुख की आस तेरा ही आगत।
मॉ वाणी से तेरे दिवस मेवाती नन्दन मॉगत।।
राजभाषा तू राष्ट्रभाषा बन जा क्या है लागत।
विश्वभाषा की कल्पना है संयुक्तराष्ट्र जागत।।8।।


बुधवार, 1 अगस्त 2018

पवन सुत सन अरज मम आजू

बिधि करतब पर किछु न बसाई /
जगत सुत उलझने उलझाई /
निशि-दिवस चर-अचर भरमाई /
निरबल सबल नर-दनुज राई /
त्राहि त्राहि दयाल रघुराई /
गिरिजा शंकर जस  पुरवाई /
पूरन काम  आजु हो जाई /
नव नव नम नयन गोहराई  //१//
कलि मल मल सब करतब आजू /
करत बतकही दिखहि न साजू /
 का करतब कब कर कह कोही /
अजर अमर अविगत अज ओही /
बायस-जन बन हंस मत कहे /
अज्ञ विज्ञ निज अल्पज्ञ  कथा सहे /
पवन सुत  सन अरज मम आजू /
करतब कर कर  अब सब  काजू //२//

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

स्वागत गीत welcome song

नवआगन्तुक को है प्रणाम, स्वागत सादर अभिनन्दन I
आतुर हम स्वागत करने को, थाली में ले रोली-चन्दन II
नेह आपका पाने को, शबरी सा आतुर जन जन मन I
नव आगन्तुक को है प्रणाम, स्वागत सादर अभिनन्दन I I १ I I
मन-चकोर है नाच रहा, पा स्वाति बूँद सा तेरा दर्शन I
तेरे स्वागत में बन बसंत, चमका अनन्त सा मन-दर्पन I I
आलिंगन पाने को तेरे आतुर, पुष्प- हार, अक्षत- चन्दन I
नव आगन्तुक को है प्रणाम,स्वागत सादर अभिनन्दन I I २ I I
इस बगिया के हर फूलों के, हुवे आप हैं कृष्ण-भ्रमर I
स्नेह-राशि इतना बरसा दो, रखो न कोई कोर कसर I I
हम सब हैं तेरे ब्रज वासी, तू हमरा बन जा राधा-रमनI
नवआगन्तुक को है प्रणाम, स्वागत सादर अभिनन्दन I I ३I I
नाथों के नाथ भोले नाथ सा,आज यहाँ बन बड दानी I
मान करे सम्मान करे ,उत्थान करे करे न आना कानी I I
आज यहाँ सब लालायित,दर्शन को तेरे करुना अयन I
नव आगन्तुक को है प्रणाम,स्वागत सादर अभिनन्दन I I ४I I

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

युग धर्म time religion




सम सामयिक चर्चा बना आज मानव का युग धर्म।
मंथन से ही हल हुवा हर युग हरधरा का हर मर्म।।
झेलना हमें ही है रो या हँस कर अपनी व्यथायें ।
हर नर की ही हैं अपनी कथायें अपनी व्यथायें ।।1।।
धर्म-फल मधुर मधुरतर मधुरतम है यहां रसराज। 
कर्म-फल कटु तिक्त मधुर  बनाते हैं अपने काज।। 
निज हित सर्वोपरि जहाँ जन हित हो कैसे  आज। 
दल हित तब तोड़ ताड़  केवल सजाना हो ताज।।2।
कमल नाल जू मानव मन कैसे जाने सत स्वधर्म।
स्वहित  ही धर्म  सिखाये हर पूज्य जन का कर्म।।
अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग का मर्म।
परहित धर्म क्यों माने जब आती है उनको शर्म।।3।
सच है निज धर्म पर चलना सिखाती  धर्म गाथायें। 
सच है  निज कर्म पर चलना बताती कर्म कथायें।।
सच है युग धर्म पर चलना सिखाती कृष्ण  लीलायें ।
सच है आज सच भी झूठ संग गाये निज  व्यथायें।।4।।
धर्मो रक्ष रक्षित:युगों युगों से बताते  हमें हर धर्म ।
गीता रामायण महाभारत सिखाते हैं करना कर्म।। 
धरा  के धर्म सिखाते मानवता ही बड़ा मानव धर्म। 
सब जाति धर्म इन्सा का इन्सानियत श्रेष्ट युगधर्म।।5।।
भारत में युग धर्म बना है आज फुटबाल ।
चाहे जैसा वैसा घुमाये कदमों  में डाल।।
युग धर्म से स्वहित साध न हो मालामाल ।
धर्मच्युत का तो होना ही है कंस सा हाल।।6।।
                 ।। धन्यवाद।।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

शान्त हो झट अशान्त दावानल भारत कानन

जय शारदे माँ जग जननी आदि अनादि अनामय !
त्रय ताप दाप निवारिनी अमल अनन्त करुनामय !!१!!
सदा सर्व हित नित रत माँ दुःख दारिद्र निवारिनी !
तेरी सदा ही जय हो जय हो हे माँ जगद्व्यापिनी !!२!!
हे वीणावादिनी जहां में नव राग रागिनी भर दो !
हे श्वेताम्बरी सुख स्नेह सौहार्द सत कामना दे दो !!३!!
कमलासिनी कल कल कवलित कलि कलित !
कामी कुण्ठित कुपथी का कर कल्याण ललित!!४!!
भयहारिणी नित नव भय ग्रस्त त्रस्त जन जन !
कृपा कटाक्ष हो सदा निर्भय हर तन मन जन !!५!!
प्रेमाम्बु भरो यहाँ हर नयनो में न  वैमनस्यता !
हम दानवता तज फैलाये जगत में मानवता!!६!!
हे भारती भर भारत भर भरपूर भायप मुदा !
जन जन से प्रेम प्रकाश आश मत होवे जुदा !!७!!
आज भारत नागर आरत निहारत तव आनन!
शान्त हो झट अशान्त दावानल भारत कानन !!८!! 

रविवार, 18 मार्च 2018

।।मंगलमय हो विलम्बी संवत्सर।।

सत शत नमन है विलम्बी संवत्सर।
बत्तीसवॉ स्थान हैं स्वामी विश्वेश्वर ।।
सोलह कलाएं भरे जग में हरि हर ।
नित नव रस दे दो हजार पचहत्तर ।।
जन जन के जीवन में आ के बहार।
सुख-शान्ति से भरे हर आँगन द्वार।।
गिरिजा शंकर की कामना बार बार।
दुःख-दर्द हो दूर खुशियॉ हो हजार।।

बुधवार, 7 मार्च 2018

।।एक का न था न रहा न रहेगा भी।।nothing was same or will be same

बहुत बीत  गया बहुत बीतेगा अभी।
आओ विचारे आज हम सब सभी।।
क्या कैसे कब कहते कभी-कभी।
सबकी करे सब बात सत-सत सभी।। 1।।
शहर की आबोहवा में गवईपन भी।
गाँव की गली-गली शहरीपन  भी।।
सत शिव सुन्दर सरग-नरक भी।
हैं दुःख-दर्द जहाँ सुख मरहम भी।। 2।।
प्राची प्रदीची उदीची अवाची भी।
आग्नेय नैऋत्य वायव्य ईशान भी।।
उर्ध्व-अधः मध्य सर्व ज्ञाताज्ञात भी।
ईश वायु-प्राणाधार वायुनन्दन भी।। 3।।
राम-कृष्ण बुद्ध-महावीर अन्य भी।
भारत वेद पुरान गीता कुरान भी।।
सिख ईसाई हिन्दू मुसलमान भी।
भारत बाग में खिले नर पुष्प भी।। 4।।
एक का न था न रहा न रहेगा भी।
एक सा न था न रहा न रहेगा भी।।
बाग था बाग सदा बाग रहेगा भी।
युगों से आबाद आबाद रहेगा भी।। 5।।