हिन्दी ही है हमारी हम सफर हम राज है।
हर हिनदुस्तानी इस पर करे नित नाज है।।
छत्तीस कौम छत्तीस राज भारत धाम है।
हर नाम में यहॉ राधेश्याम सीताराम है।।1।।
हिन्दी बिन्दी है सुहागन माथे सिन्दूर है।
राज हरियाणा हिमाचल झार भरपूर है।।
उत्तर-मध्य दिल्ली दिल छत्तीस बिहार है।
चण्डीगढ़-उत्तराखण्ड हिन्दी का घर-वार है।।2।।
एकादश राज के जन जन तेरा ही वास है।
शेष पच्चीस में भी तू करती नित रास है।।
चीनी जन जनसंख्या जग जोहे जवास है।
हिन्दी फिजी कनाडा नव देशन प्रवास है।।3।।
तू हमारी धड़कन रग रक्त का संचार है।
तुझे सजाना सवारना कवि व्यवहार है।।
राज डिंगल पिंगल महाकाव्य संसार है।
मारवाड़ी मेवाड़ी मालवी निमाड़ी सिंगार है।।4।।
बहत्तर बोली यहॉ फले-फूले खूब तूल है।
अवधी अवधेश ब्रजी ब्रजेश माथे फूल है।।
संस्कृत जननी उर्दू भगिनि का इक कूल है।
पालि प्राकृत अपभ्रन्श की यात्रा ही मूल है।।5।।
जैन बौध मुस्लिम सिख ईसाई तुझे अपनाई।
रहीम रसखान जायसी रसलीन ने तुझे गाई।।
सूरदास सूरज है तेरी छठा क्या खूब फैलाई।
हुलसी के तुलसी तेरे से क्या राम गाथा गाई।।6।।
निज भाषा ही भाषा है पर भाषा हिय सूल।
भारत के रग रग वसी हिन्दी है हमारी मूल।।
चन्द्रशेखर की चन्द्र तू तू हर माथे का फूल।
अन्य की गा गाथा क्यों करे कोई बडी भूल।।7।।
दुःख की आह सुख की आस तेरा ही आगत।
मॉ वाणी से तेरे दिवस मेवाती नन्दन मॉगत।।
राजभाषा तू राष्ट्रभाषा बन जा क्या है लागत।
विश्वभाषा की कल्पना है संयुक्तराष्ट्र जागत।।8।।