बुधवार, 18 अप्रैल 2018

युग धर्म time religion




सम सामयिक चर्चा बना आज मानव का युग धर्म।
मंथन से ही हल हुवा हर युग हरधरा का हर मर्म।।
झेलना हमें ही है रो या हँस कर अपनी व्यथायें ।
हर नर की ही हैं अपनी कथायें अपनी व्यथायें ।।1।।
धर्म-फल मधुर मधुरतर मधुरतम है यहां रसराज। 
कर्म-फल कटु तिक्त मधुर  बनाते हैं अपने काज।। 
निज हित सर्वोपरि जहाँ जन हित हो कैसे  आज। 
दल हित तब तोड़ ताड़  केवल सजाना हो ताज।।2।
कमल नाल जू मानव मन कैसे जाने सत स्वधर्म।
स्वहित  ही धर्म  सिखाये हर पूज्य जन का कर्म।।
अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग का मर्म।
परहित धर्म क्यों माने जब आती है उनको शर्म।।3।
सच है निज धर्म पर चलना सिखाती  धर्म गाथायें। 
सच है  निज कर्म पर चलना बताती कर्म कथायें।।
सच है युग धर्म पर चलना सिखाती कृष्ण  लीलायें ।
सच है आज सच भी झूठ संग गाये निज  व्यथायें।।4।।
धर्मो रक्ष रक्षित:युगों युगों से बताते  हमें हर धर्म ।
गीता रामायण महाभारत सिखाते हैं करना कर्म।। 
धरा  के धर्म सिखाते मानवता ही बड़ा मानव धर्म। 
सब जाति धर्म इन्सा का इन्सानियत श्रेष्ट युगधर्म।।5।।
भारत में युग धर्म बना है आज फुटबाल ।
चाहे जैसा वैसा घुमाये कदमों  में डाल।।
युग धर्म से स्वहित साध न हो मालामाल ।
धर्मच्युत का तो होना ही है कंस सा हाल।।6।।
                 ।। धन्यवाद।।

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