सुर सुरा सुन्दरी का अद्भुत संयोग !
सुख शान्ति हरता भरता इनका योग वियोग!!१!!
स्वर वाणी बन करता अनेक करामात!
मुख पर हो इसके बलहि पान पनहि बरसात !!२!!
सुरा मान अपमान का है सदैव गवैया !
किस तरह गले लगाया आपने ये भैया !!३!!
सुन्दरी के रुप अनेक बना लो सोच नेक !
सोच सुधरी यदि नहि तो मिले ठेक पै ठेक !!४!!
शुम्भ निशुम्भ संहारनि सुन्दरी की कहानी !
महिष मर्दिनी की कथा सुनते हम जुबानी !!५!!
सब जानते व मानते मात बेटी बहना !
बनती यह पत्नी भी एक सदपुरुष का गहना !!६!!
कापुरुष क्लीव सा नित इधर उधर मचलते !
सभी रिश्ते मर्यादा को कुकृत से मलिन करते !! ७ !!
गाते हर पल प्रियाप्रिय स्वानूभव का गान !
घर परिवार समाज में बराबर का योगदान !!८ !!
कन्या सुकन्या वीष्कन्या है तिसो पर भारी !
कल आज कल हर पल हर सुख शान्ति दे नारी !!९!!
कुल कलंकी कामिनी की कामना को कर कर !
करते कलंकित कुल कुल कामी कुमार कुवर !!१०!!
कामिनी दामिनी नामी नाम को तरसाती !
हर ले सब स्वजनो का सुख पाप पुंज बरसाती !!११ !!
दूसरा पहिया रथ का है निसन्देह नारी !
पहला पुरुष भले टूटे पर निभाती सारी !!१२!!
प्रेरणा प्रेम सुन्दरी सहे क्यो नित घात !
जूती समझे कापुरुष तेरी है यह मात !!१३ !!
दुर्गा दुर्ग बिनाशिनि यह हर सदगति दायिनी !
हरि हर पूजित सेवित नित दुनिवार निवारिनी !!१४ !!
आभा भर पराभव में ये जगमातु गिरिजा !
शंकर सुतो सा जग को है तुम्ही ने सिरिजा !!१५!!
सवत पराभव में हो पराभूत अमित सारे !
मित हू सबका होवे आप के वारे न्यारे !!१६!!
बुधवार, 10 अप्रैल 2013
सोमवार, 8 अप्रैल 2013
मदिरा,सुरा, शराब
मदिरा सुरा शराब सा है नहि कोइ नशा!
धन मान तन का राज व बिगाडती सब दशा!!
जब हो ललक झलक पाने की
टिकती नहि पलक सिवाय मय खाने की!
गिरते हर पल अपनी व अपनो की नजर
पर की नजरो से कब गिर जाते होती न इन्हे खबर!
एक ऐसी बला के सामने बल खाते लडखडाते
अपना सब कुछ गवाते बडबड बडबडाते!
अपने मन मे अपने आप को धन्य मानते
संसार की सबसे बडी बुराइ को गले लगाते!
जो निर्विवाद जननी है------
शराबी शबाबी कबाबी व चरित्रहीन इन्सान की!
जो पा नही सकता कही भीख भी
अपने व अपनो के मान सम्मान की!!
मत करो टच एक बूंद बिगाडती है यह लत !
सुधरे दूर हो मद से यह लालसा सत सत !!
धन मान तन का राज व बिगाडती सब दशा!!
जब हो ललक झलक पाने की
टिकती नहि पलक सिवाय मय खाने की!
गिरते हर पल अपनी व अपनो की नजर
पर की नजरो से कब गिर जाते होती न इन्हे खबर!
एक ऐसी बला के सामने बल खाते लडखडाते
अपना सब कुछ गवाते बडबड बडबडाते!
अपने मन मे अपने आप को धन्य मानते
संसार की सबसे बडी बुराइ को गले लगाते!
जो निर्विवाद जननी है------
शराबी शबाबी कबाबी व चरित्रहीन इन्सान की!
जो पा नही सकता कही भीख भी
अपने व अपनो के मान सम्मान की!!
मत करो टच एक बूंद बिगाडती है यह लत !
सुधरे दूर हो मद से यह लालसा सत सत !!
रविवार, 17 फ़रवरी 2013
यह वसन्त
नवगति नवलय नव ताल छन्द ले आया नव वसन्त !
दिख रहा नव नव रूप रंग इस धरा का दिग दिगन्त !!
मावट खेले खेल खलनायक सा दिखे न इसका अन्त !
प्रान्त केंद्र की नीति अनन्त कैसा होगा अब यह वसन्त !!१!!
हर हर जन का कठिन कष्ट कर कर को कर्मरत !
सुधरे सबकी सुरत सुलझे समस्याये सत सत !!
सुगम हो अगम जन हो निगम छूट जाय सब लत !
ऐसा कर दे यह वसन्त की हो कुमति सब सुमत !!२!!
दो हजार तेरह से मिट जाय जड़ से तेरह का चक्कर !
हो न इस जग में किसी अन्धविश्वास का फिक्कर !!
सो न जाय जप जुगो का हो न जोगो का टक्कर !
यह वसन्त अन्नपूर्णा बन दे हर भूखो को टिक्कर!!३!!
बासन्ती फाग जगाये जन जन की भाग !
भगाये भारत से दुखद आतंक की आग !!
जल जाय होलिका सा दुष्कर्मियो का राग !
प्रहलाद बन यह वसन्त लाये नव जप जाग !!४!!
दिख रहा नव नव रूप रंग इस धरा का दिग दिगन्त !!
मावट खेले खेल खलनायक सा दिखे न इसका अन्त !
प्रान्त केंद्र की नीति अनन्त कैसा होगा अब यह वसन्त !!१!!
हर हर जन का कठिन कष्ट कर कर को कर्मरत !
सुधरे सबकी सुरत सुलझे समस्याये सत सत !!
सुगम हो अगम जन हो निगम छूट जाय सब लत !
ऐसा कर दे यह वसन्त की हो कुमति सब सुमत !!२!!
दो हजार तेरह से मिट जाय जड़ से तेरह का चक्कर !
हो न इस जग में किसी अन्धविश्वास का फिक्कर !!
सो न जाय जप जुगो का हो न जोगो का टक्कर !
यह वसन्त अन्नपूर्णा बन दे हर भूखो को टिक्कर!!३!!
बासन्ती फाग जगाये जन जन की भाग !
भगाये भारत से दुखद आतंक की आग !!
जल जाय होलिका सा दुष्कर्मियो का राग !
प्रहलाद बन यह वसन्त लाये नव जप जाग !!४!!
बुधवार, 13 फ़रवरी 2013
जितेगा वही होगा सिकन्दर!!
क्रिकेट की कहानी, कहना न जुबानी!
खेल खेलने से ही ज्ञात हो इसकी जवानी!!
सिलसिला हार का जीतो मे बदलो तब तो करे बात!
पङो प्रतिपक्ष पर प्रबल तभी बनेगी यह बात!!
नही खेलना देशहित तो छोङ दो खेलना!
बार-बार हार देखने से अच्छाहै इससे नाता तोङना!!
खेलो देश या विदेश रखो शान मान!
तभी होगी ये खिलाङियो तेरी सच्ची पहचान!!
एक-दो की जैसी पारियो से कर लेते हो पक्का स्थान!
वैसा ही सभी पारियो मे खेलो तब बने सच्ची पहचान!!
जानते है सभी यह बात अन्दर-ान्दर!
कही
लेखनी
लेखनी है तभी तो सारे साहित्यसेवी जी रहे है !
साहित्य -साधना से सभी बिधायो को सी रहे है !!
जर जर हो रही चेतना को संवेदना दे रहे है !
नीलकंठ सा इस जगत में असार -विष पी रहे है !!
साहित्य -साधना से सभी बिधायो को सी रहे है !!
जर जर हो रही चेतना को संवेदना दे रहे है !
नीलकंठ सा इस जगत में असार -विष पी रहे है !!
चापलूसी
सच बोले की फस जावोगे ,जाति की कमी बताते ही नजर आवोगे !
अभिव्यक्ति स्वतन्त्र है ,पर लोक-तंत्र में चापलूसी से ही बच पावोगे !
अभिव्यक्ति स्वतन्त्र है ,पर लोक-तंत्र में चापलूसी से ही बच पावोगे !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)