शनिवार, 1 दिसंबर 2012

विश्वाश




सुनो सुन लिया है विश्वास की कहानी!
छोटे-बडे ज्ञानी-अज्ञानी जन-जन की जुबानी!!
विश्वासघातियो ने विश्वास का गला घोट दिया!
हमेशा अपनो ने ही है विश्वासघात किया!!
अपना या अपनाबन अपनत्व ला लिया!
फिर मौका मिलते ही उस अपने का गला दबा दिया!!
अपना हो या पराया इन्हे कोई नहीं है भाया!
केवल स्व पर ध्यान दे अवसर को है भुनाया!!
अपनो की लूट पर रहते है मस्त!
समय आने पर खुद बा खुद होते है पस्त!!
इन्हें ईमान मान ईश्वर से न होता है डर!
इनका एक ही वसूल बस कैसे काटे दूसरो का पर!!
ये गटकते पर मान धन गटागट!
भले ही समय आने पर हो जाये सफाचट!!
विश्वासघत हो जाती है इनकी लत!
खैर अंत मे बिगङ जाती है इसकी गत!!
ए जन मान यदि तू ईमान!
मत बन तु कभी बेइमान!!
जिसने रखो है आस!
तू पुर्ण कर उसका विश्वास!!

आरक्षण






आरक्षण की राजनीति ने प्रतिभा को मिट्टी में मिला दिया!
सबको बराबर लाने की भावना ने विषमता को बढा दिया!!
कालकूट बन प्रतिभा का कर रहा हनन!
योग्यता का हो रहा दिन-रात मरन!!
सपा हो याबसपा कांग्रेस हो य भाजपा!
कुर्सी खातिर सबने इसका है माला जपा!!
सक्षम नहि कोई कसने को इनकी नकेल!
क्योंकि स्वार्थ वास्ते कर देते ये कोर्ट व संविधान को फेल!!
शिक्षा में निम्नस्तरीय कैसे बढाये ज्ञान रे!
जब आरक्षण करे उच्चस्तरीय का अपमान रे!!
इसके सारे पैमाने लगे है योग्यता को दबाने!
योग्यता को दबाना है, अराजकता को लाना!!
बनाना है समान सबको,तो दे दो अन्य प्रकार से मदद उनको!
बनाओ योग्य हर जन को,नहीं तकलीफ है किसी को!!
लेकिन रख देश गौरव का ध्यान,
आरक्षण हटाओ ए नेता महान!
ताकि योग्यता हो योग्य पदो पर आसीन,
न हो इसकी कमी से देश की छबि मलीन!
वैसे भी हमने झेल लिया है बहुत तेरी कहानी रे,
अबतो तुम्हारे जाने की है बारी रे!!

सरस्वती के द्वादश नाम वंदना







पुष्पकारुणा कमलारुणा पद्मासिनी----
या सदा तुषार हार से भरा,
शुभ्रता की ज्योति तू मां हंसावाहिनी!!

मां सुनो मेरी आवाज ---------
मैं करु तेरी पुकार, मुझ पर करो तू हस्तवार,
कह सकूं जिससे मां तुझे वीणावादिनी!!

शारदा हो तू तू अरविन्दवासिनी हो --------
मां मेरे लिये तू बुद्धिदायिनी हो,
पुकारता हूं तुझे मां करो कृपा मतिदायिनी!!
वरदात्री हो तू वर दे भारत में अमृत नव भर दे-------
कर दो संसार में सुख्यात,
भारत को ये मां जगद्व्यापिनी!!
हम जङ है जङमूर्ख है, जङ्ता की प्रतिमूर्ति है ------
आये है तेरी शरण में मां ब्रह्मदायिनी,
तू तो सदा ही हो शशिवर्णिनी!!

मुक्तक

वाद की है झङी लगी, जात पात का मेल!
विकृतियां अब समाज की, हो रही वीष बेल!!१!!

तुलसी के सात काण्ड, अब तो काण्ड अनन्त!
कल्याण नही अब देश का, तेरे बिन भगवन्त!!२!!

नहीं पता हैं काण्ड का, चीनी बिजली फोन!
हर्षद मेहता जैन बन्धु, इनसे अछुता कौन!!३!!
 
अमानवीय मानवो का, करो शीघ्र कल्याण!
सद्भावना को भरो,दशरथ तनय महान!!४!!

हाय सफेदपोशों की, जिन्दगी लहर बनी!
प्रजातन्त्र में प्रजा की, जिन्दगी जहर बनी!!५!!

देखकर प्रजा का रुप,भारती विफर पङी!
स्वतन्त्रता का यह रुप,कि नीतियां यो सङी!!६!!

नगरों में अब सुकरी, देख गाय का भाल!
सोचती है मन में, कर लेगी दो लाल!!७!!

समय पर बदलते रंग, गिरगिट की है बात!
अब क्षण में बदलता रंग, इन्सान है दिन-रात!!८!!

बात कभी सत्य,भुख बदलता ईमान!
अब तो यह सत्य,सिक्के पे बदलता ईन्सान!!९!!

चरित्र से है सब गिरे,तो कौन बचा नेक!
यदि कही एक गिरता,तो हसते अनेक!!१०!!

चरित्र बेचकर आजकल,धन कमाया जाता!
चरित्र की रक्षा धर्म है,कैसे उन्हें भाता!!११!!








शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्रेष्ठ मानव



नमस्कार उस श्रेष्ट को जो करता लालच सज्जन संगम का!
द्विजप्रेमी परगुणानन्दी विद्याभिरुचि स्वपत्नि अनुरक्ति का!!
रखता हो शिव में भक्ति दुर्जन त्यागकर संयम स्वयं का!
भय रखता लोकनिंदा का रुप हैंउत्तमोत्तम गुणों का!!

श्रेष्ठ जन धैर्य क्षमा रखते विपत्ति अभ्युदय में!
रखते हैं पटुता पराक्रम भाषण व युध्द में!!
अभ्यास व रुचि होती शास्त्राध्ययन यश विषय में!
स्वभाव में रहते सभी होते न कभी पर रुप में!!


असिधारा पर चलने की तरह रुपहैं साजते!
आये अतिथि क आदर छिप कर दान जो करते!!
गर्वहीनता धन सम्पत्ति में उपकार सभा का कहते!
निन्दारहित बात करते कर उपकार किसी का न कहते!!

बुधवार, 28 नवंबर 2012

कुर्सी, कंचन, कामिनी

कुर्सी कंचन कामिनी जन करे वाह वाह ।
ज्यो-ज्यो ये सब पास हो, टिकती नही निगाह।।

कुर्सी की यह लालसा ललक बढाऍ जोस ।
कट गया उस समाज से, जिन पर किया भरोस ।।

कन्चन से परेशानी ,रहे ना सदा पास ।
देता सुख-दुुःख सब यह, काहे का विश्वास ।।

कामिनी की कई बात, बढाती रहे चमक ।
कब कैसी ये हो जाय , दे ना कोई भनक ।।

गिरिजा शन्कर तिवारी

सरस्वती वन्दना

हे मां,हे मां, भारत-भारती हे मां, हे मां, भारत-भारती !
     अहनिशि तू चराचरो के भाग्य को सवारती !
तु पाणिनी की कौमुदी जो व्याकरण विन्यास करती!
     लोकत्रय कल्याण हेतु सूर्यचन्द्र सा दिन-रात जगती!
हाथ में तू वेदवीणा स्फटिक धर सुर स्वर सवारती सरस्वती!
     चन्द्रकान्ति चन्द्रिका चकोर को स्वाती सा तारती!!
बुद्यिदात्रि बुद्यि दे ज्ञान प्रकाश प्रकाशिनी!
     ब्रह्मचारिणि ब्रह्मविद्या भर सर सरोवर हंसावाहिनी!
दीन-दुःखी दारिद्र दूर दुर्भावना हरो हे वरदायिनी!
     तू सदा दे शुद्धाचरण व धर्म कर्म हे अवलम्बदायिनी!
मानवता भरो मानव मे इन्हें धरो धरा सी धरनी धारती!!
     वर दे वरदान दे मान दे सम्मान दे, दे स्वच्छता हे शारदा!
विजयविभूति विराट विश्व में भक्तों को दे सर्वदा!
     हर हर भक्तजनों की विपरीतता की विपदा!
भर हर मन की आस सुख स्नेह शुभ्र सुखदा!
     स्फटिकमणि वेद ले तू तार वीणा की झंकारती!!
भुवनत्रय त्रिगुण भर गुण संचार कर भुवनेश्वरी !
     भोग संयोग की हो न दासता वाक शक्ति भर वागीश्वरी!
जगत जाने माने पहचाने सत्कर्म से सराबोर कर जगदीश्वरी!
    सब सांस भर सद आस  को सांस रह्ते पुर्ण कर विश्वेश्वरी!
जन-जन संग झूम-झूम जग उतारे तेरी आरती !!