हनुमान जी की एक कहानी भी सुन लीजिए
कहानी एक याद आ रही है। विष्णु जी जब वर्ल्डली अफेयर्स को निपटा कर थोड़ा मूड में आकर अपने कृष्णावतार में द्वारिका में चिल कर रहे थे, तो सुदर्शन चक्र, गरुड़ और महारानी सत्यभामा ने चरस बो दी। तीनों को क्रमश: अपने तेज, अपनी गति और अपनी सुंदरता का भयंकर वाला गर्व हो गया था। सत्यभामा जी वैसे बचपन से ही इस टाइप की थीं, कांड करती थीं, लेकिन फिर भूल भी जाती थीं। उनकी वजह से श्रीहरि को स्यमंतक मणि की चोरी तक का कलंक झेलना पड़ा था, लेकिन वह कहानी फिर कभी….।
तो, विष्णु जी ने उपाय सोच लिया। गरुड़ को कहा कि जाओ जी, हनुमान को पकड़ लाओ, बहुत दिनों से दिखा नहीं है। सत्यभामा को कहा कि जाओ जी, देवी सीता टाइप तैयार हो जाओ, क्योंकि त्रेता वाला बजरंग आ रहा है, मिलने। सुदर्शन चक्र को ड्यूटी दी कि गेट के बाहर खड़े हो जाओ, और खबरदार जो बिना मेरी आज्ञा के किसी को घुसने दिया।
गरुड़ गए अवध। हनुमान जी बाग में लेटे राम-राम सुमिर रहे थे। खाए-अधखाए फल चहुंओर बिखरे। ब्रो थोड़े बूढ़े भी हो गए थे। गरुड़ ने कहा, चलो बॉस बुला रहे हैं। हनुमान वृद्ध टाइप कांखे, बोले- चलो ब्रो, हम आते हैं। गरुड़ ने लोड ले लिया। यार, ये बुढ़ऊ वानर कब तक पहुंचेगा…खैर, मैनू की..। गरुड़ चल दिए।
अब द्वारका पहुंचे गरुड़ तो देख रहे हैं कि उनसे पहिले हनुमान ब्रो पहुंच कर दंडवत कर रहे हैं। विष्णु मुस्कुराए, पूछा- क्यों हनुमान, तुम्हें किसी ने रोका नहीं, सीधा मेरे कक्ष तक कैसे आ गए। बजरंगबली मुस्काए और मुंह से सुदर्शन चक्र निकाल कर नीचे रख दिया। बोले- गुरुजी, कोई मिलेनियल टाइप था जो कुछ मना कर रहा था। मैंने मुंह में रख लिया। अब बताइए, आपसे मिलने से मुझे ये चूजे रोकेंगे…खैर, वो सब जाने दीजिए…आप भी गजबे लीला करते हैं महाराज..सीता माता के बदले किस नौकरानी को बिठा लिया है?
इस प्रकार प्रभु ने तीनों का गर्व नाश कर दिया।
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