आधार शिव पार्वती संवाद
प्रश्न उमा के * सहज सुहाई ।
छल बिहीन सुनि सिव मन भाई।
हर हिय रामचरित सब आए ।
प्रेम पुलक लोचन जल छाए।
इन पक्कातियोंं का सरल अर्थ देखते हैं फिर आगे बढ़ते हैं- श्रीपार्वतीजीके छलरहित सहज ही सुन्दर प्रश्न सुनकर शिवजीके मनको भाये। हर ( श्रीशिवजी)के हृदयमें सभी रामचरित आ गये। प्रेमसे शरीर पुलकित हो गया और नेत्रोंमें जल भर गया ।गोस्वामीजी सर्वत्र 'प्रश्न' शब्दको स्त्रीलिंग ही लिखते हैं। यथा 'प्रश्न उमा के सहज सुहाई'।और भी 'धन्य धन्य तव मति उरगारी। प्रस्न तुम्हारि मोहि अति प्यारी । इत्यादि । 'सहज सुहाई' अर्थात् बनावटी नहीं; यथा - 'उमा प्रश्न तव सहज सुहाई ॥ ' छलरहित होनेसे 'सुहाई' कहा। अपना अज्ञान एवं जो बातें प्रथम सतीतनमें छिपाये रही थीं, यथा- 'मैं बन दीखि राम प्रभुताई । अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई ॥' वह सब अब कह दीं; इसीसे 'छल बिहीन ' कहा । यथा- 'रामु कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥ईश्वरको छल नहीं भाता, यथा- 'निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥'ये प्रश्न 'छल बिहीन' हैं, अतः मनको भाये । प्रश्न 'सुहाये' और 'मन भाये' हैं यह आगे शिवजी स्वयं कहते हैं- 'उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद संत संमत मोहि भाई ॥ ' अब हम प्रश्न की बात करें कि आखिर प्रश्न शब्द पर जोर क्यों,क्योंकि प्रश्न चार प्रकारके होते हैं - उत्तम, मध्यम, निकृष्ट और अधम । उत्तम प्रश्न छलरहित होते हैं, जैसे कि जिज्ञासु जिस बातको नहीं जानते उसकी जानकारीके लिये गुरुजनोंसे पूछते हैं, जिससे उनके मनकी भ्रान्ति दूर हो। फिर उन बातोंको समझकर वे उन्हें मनन करते हैं। जैसा कि मानस में कहा भी गया है- 'एक बार प्रभु सुख आसीना । लछिमन बचन कहे छल हीना ॥ 'मध्यम प्रश्न वह है जिनमें प्रश्नकर्ता वक्तापर अपनी विद्वत्ता को प्रकट करना चाहता है, जिससे वक्ता एवं और भी जो वहाँ बैठे हों वे भी जान जायँ कि प्रश्नकर्ता भी कुछ जानता है, विद्वान् है। निकृष्ट प्रश्न वह हैं जो वक्ताकी परीक्षाहेतु किये जाते हैं और अधम प्रश्न वे हैं जो सत्संग- वार्तामें उपाधि करने विघ्न डालनेके विचारसे किये जाते हैं। पार्वतीजीके प्रश्न उत्तम हैं, क्योंकि वे अपना संशय, भ्रम, अज्ञान मिटानेके उद्देश्यसे किये गये हैं। जैसा की पर्वतीजी कहती हैं-'जौ मोपर प्रसन्न सुखरासी । जानिय सत्य मोहि निज दासी ॥ तौ प्रभु हरहु मोर अज्ञाना । ॥' और भी आप देख सकते हैं जैसे कि'जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू' 'अजहूँ कछु संसउ मन मोरें। करहु कृपा बिनवौं कर जोरें ॥ 'इत्यादि ।
'हर हिय रामचरित सब आए। यहाँयह कैसे कहा कि शिवजीके हृदयमें आये ? इस शंकाका समाधान यह है कि बात सब हृदयमें रहती है, पर स्मरण करानेसे उनकी स्मृति आ जाती है। मानसग्रन्थ हृदयमें रहा, पर पार्वतीजीके पूछनेसे वह सब स्मरण हो आया। यही भाव हृदयमें 'आए' का है । यथा - 'सुनि तव प्रश्न सप्रेम सुहाई । बहुत जनम कै सुधि मोहि आई ॥' [भुशुण्डीजी सब जानते थे, पर गरुड़जीके प्रश्न करनेपर वे सब सामने उपस्थित - से हो गये,स्मरण हो आये। श्रीमद्भागवतमें इसी प्रकार जब वसुदेवजीने देवर्षि नारदजीसे अपने मोक्षके विषयमें उपदेश करनेकी प्रार्थना की; यथा - ' मुच्येम ह्यञ्जसैवाद्धा तथा नः शाधि सुव्रत ॥' तब देवर्षि नारदजीने भी ऐसा ही कहा है, यथा—' त्वया परमकल्याणः पुण्यश्रवणकीर्तनः । स्मारितो भगवानद्य देवो नारायणो मम ॥' अर्थात् आपने परमकल्याणस्वरूप भगवान् नारायणका मुझे स्मरण कराया जिनके गुणानुकीर्तन पवित्र हैं। वैसे ही यहाँ समझिये । पुनः जैसे पंसारीकी दूकानमें सब किराना रहता है, पर जब सौदा लेनेवाला आकर कोई एक, दो, चार वस्तु माँगता है तब उसके हृदयमें उस वस्तुका स्मरण हो आता है कि उसके पास वह वस्तु इतनी है और अमुक ठौर रखी है। इसी तरह जैसे-जैसे पार्वतीजीके प्रश्न होते गये वैसे ही - वैसे उनके उत्तरके अनुकूल श्रीरामचरित चित्तमें स्मरण हो आये ।] पुनः, हृदयमें 'आए' का भाव कि सब प्रश्नोंके उत्तर मुखाग्र कहने हैं, सब चरित शिवजीको कण्ठ हैं, उनके हृदयसे ही निकलेंगे, पोथीसे नहीं। 'सब' अर्थात् जोचरित पूछे हैं एवं जो नहीं पूछे हैं वे भी ।'प्रेम पुलक 'इति । चरित -स्मरण होनेसे प्रेम उत्पन्न हुआ; यथा—
'रघुबर भगति प्रेम परमिति सी ।उससे शरीर पुलकित हुआ क्योंकि शिवजीका श्रीरामचरितमें अत्यन्त प्रेम है; यथा—' अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के ॥
हर हिय रामचरित सब आए । यहां 'हर' शब्द देकर यमक अलंकार के माध्यम से यह जनाया गया है कि हर अर्थात् महादेव रामचरित कहकर उनका सब दुःख हर अर्थात हर लेगें ।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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