रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुखदानि ।
सत समाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ॥
अर्थात् श्रीरामकथा कामधेनु - समान है, सेवा करनेसे सब सुखोंकी देनेवाली है। संतसमाज समस्त देवलोक
हैं, ऐसा जानकर उन्हें कौन नहीं सुनेगा ?
'रामकथा सुरधेनु' सुरधेनु अर्थात् कामधेनु है। क्षीरसागर - मन्थनसे निकले हुए चौदह रत्नोंमेंसे यह भी एक
है । यह अर्थ, धर्म, कामकी देनेवाली है, जमदग्निजी और वसिष्ठजीके पास इसीकी संतान सुरभि और नन्दिनी थीं।
भक्त तो सुर हैं और रामकथा सुरधेनु है तथा संतसमाज सुरलोक है। तात्पर्य कि कामधेनु सुरलोकमें है, रामकथा
संतसमाजमें है - 'बिनु सतसंग न हरिकथा'- इससे रामकथाके मिलनेका ठिकाना बताया। जैसे सुरधेनुका ठिकाना सुरलोक है वैसे ही कथाका ठिकाना संतसमाज है। 'सेवत सब सुखदानि' । सब सुखोंकी दात्री जानकर दैवी संपदावाले ही सुनते हैं अर्थात् सब सुनते हैं। 'सब सुखदानि' का भाव कि कामधेनु अर्थ, धर्म और काम तीन
ही पदार्थ देती है परंतु रामकथा चारों पदार्थ देती है' यदि ऐसा लिखते तो चार ही पदार्थोंका देना पाया जाता, परंतु
कथा चारों पदार्थ तो देती ही है और इनसे बढ़कर भी पदार्थ हैं ब्रह्मानन्द, प्रेमानन्द, ज्ञान, वैराग्य, नवधा भक्ति
प्रेमपराभक्ति इत्यादि अनेक सद्गुणोंको भी देनेवाली है, यही नहीं यह तो श्रीरामचन्द्रजीको लाकर मिला देती
है। अतएव 'सब सुखदानि' कहा, पापहरणमें गंगासमान और सर्वसुखदातृत्वमें कामधेनु - समान कहा । 'सब
सुखदानि' अर्थात् सबको, जो भी सेवा करे उसे ही बिना किसी जाति धर्म सम्प्रदाय लिंग आदि को ध्यान रखे जो भी राम कथा में स्नेह विश्वास प्रेम रखता है उन सभी को सब सुखोंकी देनेवाली है राम कथा ।
सब सुख तो रामभक्तिसे मिलते ही हैं, जैसा कि- 'सब सुखखानि भगति तैं माँगी। नहिं जग कोउ तोहि
सम बड़ भागी ।'मानसके उपसंहारमें शिवजीने ही कहा
है कि 'रामचरन रति जो चह अथवा पद निर्बान । भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान ॥ 'सुख कि होइ हरि भगति बिनु ।
बिनु सतसंग न हरिकथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गए बिनु रामपद होइ न दृढ़ अनुराग ॥'
भाव यह कि सत्संगमें रामकथा श्रवण करनेसे वैराग्य, विमल ज्ञान और पराभक्ति लाभ क्रमशः होते ही हैं।
रामकथाश्रवण स्वयं रामभक्ति है। इसीसे सब सुख प्राप्त हो जाते हैं। कहा भी है- 'जीवनमुकुति हेतु जनु कासी', 'सकल सिद्धि सुख संपति रासी'। '
'सुनहिं बिमुक्त बिरति अरु बिषई । लहहिं भगति गति संपति नई ॥' अर्थात् जीवन्मुक्त पुरुषोंको भक्ति तथा वैराग्यवानोंको मुक्तिका लाभ है और विषयी सम्पत्तिको पाते हैं ।विनय करते हुए जब मां पार्वतीजी कहती है कि 'जासु भवन सुरतरु तर होई। सह कि दरिद्रजनित दुख सोई ॥तब उत्तरमें शिवजी कहते हैं कि दरिद्रजनित दुःख सहनेका कोई कारण नहीं। रामकथारूपी सब सुखदानि
कामधेनुका सेवन करो। अज्ञानसे ही लोग दुःख सह रहे हैं, नहीं तो रामकथारूपी कामधेनुके रहते दुःखकी
कौन-सी बात है ?
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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