लंका दहन के बाद से ही रावण को हनुमानजी के पूछ से नफ़रत हो गई थी। हनुमानजी की पूछ उखाड़ कर फेंक देंगे, ऐसा रावण ने प्रन लिया। वह हमेशा इस ताक में रहता कि बंदर कब अकेला मिले। अवसर मिल ही गया।
एक दिन हनुमानजी एक सिला पर बैठ कर जय श्री राम का जाप कर रहे थे। तभी वहां चुप चाप तरीक़े से रावण आ पहुंचा और रावण ने जय शंकर भगवान का नाम लेकर पूछ उठा कर खिचने लगा। हनुमान जी ने देखा उनकी पूछ कोई खीच रहा है । उन्होंने युक्ती लगाई और उड़ने लगे । रावण शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था । पहले वो शंकर भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि हनुमान जी की पूछ उखड़ जाए उसके लिए ही तो इस एकांत में आया। पर अब वो शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि कहीं ये पूछ ना उखाड़ जाए और ये पूछ उखड़ गई तो कहा से कहा जाकर गिरेंगे। वह आसमान में महादेव महादेव की रट लगाए महादेव बचाए। खैर महादेवजी ने सुन लिया। हनुमानजी धड़ाम से नीचे रावण की हालत पंचर।कैसे भी रावण युक्ति लगा कर वहां से भाग निकला।
रावण हनुमान जी के पूछ से और अधिक नफरत करने लगा । हनुमानजी को मारने की भारी योजना बनाया।
उसने चार सेना तैयार करवाई । उट सवार, घुड़ सवार,
रथ सवार और पैदल सवार ।हनुमानजी ओर रावण के सेना के बीच लड़ाई हुई। सब को हनुमानजी ने मार डाला। रावण के गुप्तचर रावण के दरबार में पहुंचे। रावण ने पूछा, " सेना कहा है ?" गुप्तचर ने कहा, साफ"। वानर कहा गया? रावण ने गुप्तचर से पूछा । वहीं है महाराज।
तुम्हे चोर युद्ध करना था। आगे से नहीं पीछे से हमला करना था। गुप्तचर ने कहा," महाराज क्षमा करे। आगे वाले तो कुछ देर ठिके भी पीछे वाले एक ही बार में साफ हो गए। कैसे?, रावण ने गुप्तचर से पूछा। गुप्तचर ने उत्तर देते कहा, महाराज पूछ । पूछ की बात मत करो रावण ने अबकी फिर भरी युक्ती लगाई । 1000 अमर राक्षसों को बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया। ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था।विभीषण के गुप्तचरों से समाचार मिलने पर श्रीराम को चिंताहुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे? श्रीराम की इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए
कि अब क्या होगा? हम अनंतकाल तक युद्ध तो कर नहीं सकते हैं। पर इनके जीते विजयश्री का वरण नहीं हो सकता | हनुमान जी श्रीराम को चिंतित देखकर बोले-प्रभो! क्या बात है? श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई। अब विजय असंभव है।
पवन पुत्र ने कहा, प्रभु असंभव को संभव और संभव को असंभव कर देने का नाम ही तो हनुमान है। प्रभो! आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए, मैं अकेले ही जाकर रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूंगा। पर कैसे? हनुमान! वे तो अमर हैं। भगवान राम ने कहा।तब हनुमान जी बोले- प्रभो! इसकी चिंता आप न करें, सेवक पर विश्वास करें। उधर रावण ने चलते समय राक्षसों से कहा था कि वहां हनुमान नाम का एक वानर है, उससे जरा सावधान रहना।हनुमान जी को रणभूमि में एकाकी देखकर राक्षसों ने पूछा-तुम कौन हो? क्या हम लोगों को देखकर भय
नहीं लगता? जो अकेले रणभूमि में चले आए। हनुमानजी
बोले- क्यों आते समय राक्षसराज रावण ने तुम लोगों को कुछ संकेत नहीं किया था जो मेरे समक्ष निर्भय खड़े हो । निशाचरों को समझते देर न लगी कि ये महाबली हनुमान हैं। तो भी क्या? हम अमर हैं,हमारा यह क्या बिगाड़ लेंगे। भयंकर युद्ध आरंभ हुआ, पवनपुत्र की मार से राक्षस रणभूमि में ढेर होने लगे, पर मरते कोई नहीं। पीछे से आवाज आई- हनुमान हम लोग अमर हैं। हमें जीतना असंभव है। अत: अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जाओ, इसी में तुम सबका कल्याण है। आंजनेय ने कहा- लौटूंगा अवश्य पर तुम्हारे कहने से नहीं अपितु अपनी इच्छा से। हां तुम सब मिलकर आक्रमण करो आगे बढ़ो,मेरा अंत करो मुझे पकड़ो फिर मेरा बल देखो और रावण को जाकर बताना।राक्षसों ने जैसे ही एक साथ मिलकर हनुमान जी पर आक्रमण करना चाहा वैसे ही पवनपुत्र ने उन सबको अपनी पूंछ में लपेटकर
ऊपर आकाश में फैंक दिया। वे सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण के ऊपर आकाश में फैंक दिये गए। वे सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति जहां तक है वहां से भी ऊपर चले गए। उनका शरीर सूख गया, अमर होने के कारण मरना तो उन्हें था नहीं । इधर हनुमान जी ने आकर
प्रभु के चरणों में शीश झुकाया । श्रीराम बोले-क्या हुआ
हनुमान? प्रभो! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूं। इधर
रावण के दरबार फिर गुप्तचर आए। रावण ने पूछा," क्या हुआ।" दूत ने बताया कि महाराज जाते दिखे, आते नहीं दिखे। कैसे? गुप्तचर ने कहा, वानर ने अपनी पूछ को लम्बा करके सारे सेना को लपेट कर आकाश की ओर फेंक दिया इसलिए जाते देखा। रावण क्रोधित होकर कहा," पूछ की बात मत करो।
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