मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।
मूलं धर्म धर्म के मूल कौन धर्म /कर्म करने वाले (1)यज्ञ करने वाले धार्मिक और कर्म करने वाले हमारे अन्नदाता के प्रथम स्वरूप में हैं भगवान शंकर इसीलिये तो धर्म करने वाले और कर्म करने वाले की पूजा होती है,अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कथन भी तो है "work is worship " "कर्म ही पूजा है "अतः जो इन्सान ईमानदारी से अपना काम करता है वह प्रथम शिव स्वरूप बन जन मन मानस में माननीय पूज्यनीय और वन्दनीय हो ही जाता है । (2) मूलं धर्मतरो: धर्म रूपी वृक्ष के मूल में है पृथ्वी जो हमें सब कुछ देती है ऐसी पृथ्वी है भगवान शंकर का दूसरा स्वरूप जो मूल है और मूल की साधना से मनुष्य को निःसंदेह सब कुछ मिल ही जाता है। रहीमजी ने भी एक दोहे में कहा है:- एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।। अतः द्वितीय स्वरूप पृथ्वी के रूप में शिव की आराधना से सब कुछ मिलता ही है और हमारी पृथ्वी हमारी मातृभूमि के रूप में शिव सदा वन्दनीय है। विवेकजलधेः विवेक/ज्ञान रूपी समुद्र अर्थात (3) तीसरे रूप में जल स्वरूप हैं भगवान शंकर जिसके बिना जीवन की कल्पना करना भी असम्भव है कहा भी गया है "water is life" "जल ही जीवन है"अतः अपने तीसरे स्वरूप जल के रूप में गंगा ,यमुना ,सरस्वती नर्मदा ,सिन्धु ,कावेरी आदि विभिन्न स्वरूपों में शिव सदा वन्दनीय ही हैं। पूर्णेन्दुमानन्ददं (4) जो विवेक/ज्ञान रूपी समुद्र को आनंद देने वाले पूर्ण चंद्र हैं अर्थात (4) चौथे रूप में चन्द्र स्वरूप हैं भगवान शंकर। वैराग्याम्बुजभास्करं वैराग्य/भक्ति(उपासना) रूपी कमल को विकसित करने वाले अर्थात भक्तों को आनन्द देने वाले (5) पाँचवें रूप में सूर्य स्वरूप हैं भगवान शंकर जो ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम् पाप रूपी घोर अंधकार का निश्चय ही नाश कर देते हैं।सूर्य के तेज अर्थात( 6) छठें रूप में अग्नि स्वरूप हैं भगवान शंकर।धर्म से पाप का नाश सूर्य से अंधकार का नाश और चंद्रमा से तापों का नाश अर्थात तीनों दैहिक दैविक भौतिक तापों, कष्टों,दुःखों को हरने वाले हैं भगवान शंकर। मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं- अम्बोधर और स्वः से (7) सातवें रुप में आकाश स्वरूप है भगवान शंकर जो मोह रूपी बादलों के समूह को सदा सदा के लिए इन्सान के जीवन से छिन्न-भिन्न कर देते हैं। स्वःसम्भवं अर्थात स्वयं उत्पन्न (8) आठवें रूप में पवन स्वरूप हैं भगवान शंकर अर्थात हमारी प्राणवायु भी हैं भगवान शंकर।शंकर हैं शं यानी कल्याण, कर यानी करने वाले देव महादेव हैं भगवान शंकर ।इस प्रकार मानव कल्याण के लिये आठ स्वरूप धारण करने वाले हैं भगवान शंकर ब्रह्मकुलं ब्रह्माजी के वंश के हैं वो कैसे एक बार ब्रह्माजी ने सृष्टि विकास के लिये सनत कुमारों को उत्पन्न किया लेकिन उन्होंने इस कार्य से मना कर सन्यास ले लिया अतः ब्रह्माजी के क्रोध से नीलवर्ण का बालक उत्पन्न हुवा जो उत्पन्न होते ही रोना प्रारम्भ कर दिया, रोने के कारण उसका नाम रुद्र पड़ा जो एकादश रुद्रों में एक हुवा रुद्र कौन भगवान शंकर अतः भगवान शंकर ब्रह्मा के कुल से हैं। कलंकशमनं सभी प्रकार के कलंक का नाश करने वाले है भगवान शंकर। महर्षि भृगु द्वारा विष्णु को लात मारने के और चंद्रमा द्वारा गुरु बृहस्पति पत्नी तारा के साथ सहवास करने के कलंक का नाश किया था भगवान शंकर ने। यहाँ तक कि जगजननी माता सीता के हरण करने वाले रावण के इतने बड़े कलंक का शमन भी शिव शरण होने के कारण ही शिवप्रिय श्रीराम ने उसको जीवन मुक्त कर कर दिया। इस प्रकार से महाराज श्री रामचन्द्रजी के प्रिय और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी प्रिय हैं उस श्री शंकरजी की हम
वन्दे वंदना करते हैं।
अष्ठ मूर्ति भगवान शंकर की वंदना महाकवि कालिदास ने भी अपने अभिज्ञानशाकुन्तल के मंगलाचरण में किया है:-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः
धर्म के मूल कर्म करने वाले,पृथ्वी,जल,चंद्र , सूर्य ,अग्नि,आकाश और पवन इन आठों स्वरूपों/मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही है अतः हम भगवान शिव जो महाराज श्री रामचन्द्रजी केअति प्रिय हैं और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी अति प्रिय हैं उनकी वन्दे वंदना करते हैं कि वे हम पर प्रसन्न रहें और अपने इन आठ रूपों के द्वारा हमारी रक्षा करें।ॐ नमः शिवाय।।जय श्रीराम जय हनुमान,संकटमोचन कृपा निधान।।
।।धन्यवाद।।
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