रविवार, 28 जनवरी 2024
।।सरस्वती स्तोत्र।।
शुक्रवार, 26 जनवरी 2024
।।भुजङ्गप्रयात छंद संस्कृत और हिन्दी में।।
वंशस्थ छंद संस्कृत और हिन्दी में
वंशस्थ छंद:-
यह जगती परिवार का 12×4=48
वर्णों का समवर्ण वृत्त छंद है।
इस परिवार को "जगतीजातीय"
भी कहते हैं। वंशस्थ छंद
को वंशस्थविल अथवा
वंशस्तनित भी कहते हैं
लक्षण :-
जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ।
परिभाषा:-
वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में
क्रमश: जगण, तगण, जगण एवं
रगण के क्रम में 12 वर्ण होते हैं।
चार चरणों में 12×4=48 वर्ण
होते हैं।अर्थात ISI SSI ISI SIS
के क्रम में वर्ण होते हैं।
उदाहरण:-
I S I S S I I S I S I S
1- गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
2-प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्
तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे
सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥
3-भवन्ति नम्रास्तरवो फलोद्गमैः
नवाम्बुभिर् दूरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥
4-सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं,
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् ।
सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं,
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥
हिन्दी में भी वंशस्थ छंद के
लक्षण और परिभाषा यही है।
“जताजरौ” द्वादश वर्ण साजिये।
प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।
आइए उदाहरण देखते हैं :-
1-बिना चले मंज़िल क्या कभी मिली।
बहार आई तब ही कली खिली।।
कशीश मानो दिल में कहीं पली।
जुबान की वो सच बात हो चली।।
उक्त सभी संस्कृत और हिन्दी के
उदाहरणों में आए प्रत्येक श्लोक/
पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण,
तगण, जगण एवं रगण अर्थात
I S I S S I I S I S I S के क्रम
में वर्ण आए हैं अतः वंशस्थ छंद है।
।। धन्यवाद।।
रविवार, 21 जनवरी 2024
।।ढोल गंवार सूद्र पसु नारी।।
शनिवार, 20 जनवरी 2024
।।रथोद्धता छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
।।रथोद्धता छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
यह त्रिष्टुप परिवार का छंद है।
लक्षण:-संस्कृत में इसके निम्न
दो लक्षण बताये गये हैं:-
(1)रथोद्धता रनौ रलौ ग।
(2)रान्नराविह रथोद्धता लगौ।
इन दोनों सूत्रों के आधार पर
इस छंद की परिभाषा है:-
परिभाषा:-
जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरणों में
रगण नगण रगण एक लघु और एक
गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते
हैं उस श्लोक/पद्य में रथोद्धता छंद होता है।
उदाहरण:
SIS III SIS IS
कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ
कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ
चिन्तकस्य मनभृंगसंगिनौ॥1।।
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं
अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकन्जलोचनं
नौमि शंकरमनंगमोचनम्॥2।।
उक्त दोनों श्लोकों के चारो चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
में रथोद्धता छंद है।
हिन्दी:-
ठीक इसी प्रकार हिन्दी में भी
इस छंद के लक्षण और परिभाषा
हैं। हिन्दी के उदाहरण देखते हैं:
SIS III SIS IS
(1) रौद्र रूप अब वीर धारिये।
मातृ भूमि पर प्राण वारिये।।
अस्त्र शस्त्र कर धार लीजिये।
मुंड काट रिपु ध्वस्त कीजिये।।
(2) नेह प्रीत नयना निखार लो।
प्रेम मीत सजना सवार लो।।
गीत ताल तबला धमाल हो।
गान सोम महिमा कमाल हो।।
उक्त दोनों पद्यों के चारों चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
पद्यों में रथोद्धता छंद है।
विशेष:
ध्यान देने योग्य बात यह है कि
त्रिष्टुप छंद11×4=44 वर्ण वाले
सात छंदों में से पांच इंद्रवज्रा
उपेन्द्रवज्रा उपजाति शालिनी और
स्वागता के अंत में दो गुरू वर्ण
आते हैं लेकिन भुजंगी और रथोद्धता
के अंत में लघु और गुरू वर्ण आते हैं।
।।धन्यवाद।।
शुक्रवार, 19 जनवरी 2024
।।भुजंगी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
।।शालिनी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
।।शालिनी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
यह त्रिष्टुप परिवार का समवर्ण वृत्त छंद है।
लक्षण:
"मात्तौ गौ चेच्छालिनी वेेदलोकैैः"
परिभाषा:
जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में
एक मगण, दो तगण तथा दो गुरू के
क्रम में ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते हैं
उस श्लोक/पद्य में शालिनी छंद होता है।
उदाहरण:
SSS SSI SSI SS
(1) माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ॥
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु: ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥
(2) एको देवः केशवो वा शिवो वा
एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एको वासः पत्तने वा वने वा
एका नारी सुन्दरी वा दरी वा ।।
उक्त दोनों छंदों में प्रथम छंद के
प्रथम चरण के अनुसार ही सभी
चरणों में एक मगण, दो तगण
तथा दो गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं अतः
इनमें शालिनी छंद है।
हिन्दी में शालिनी छंद:
संस्कृत की ही तरह हिन्दी में
भी शालिनी छंद के लक्षण एवं
परिभाषा हैं। आइए उदाहरण
देखते हैं:
उदाहरण:
माता रामो हैं पिता रामचंद्र।
स्वामी रामो हैं सखा रामचंद्र।।
हे देवो के देव मेरे दुलारे।
मैं तो जीऊ आप ही के सहारे।।
उक्त पद्य में भी प्रथम चरण के
अनुसार ही सभी चरणों में
एक मगण, दो तगण तथा दो
गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह
वर्ण हैं अतः इसमे शालिनी छंद है।
।। धन्यवाद।।