सोमवार, 31 अगस्त 2020

परिवार parivar hindi poem on family

माता-पिता पुत्र-पुत्री सह सम्बन्धों का साथ।
दादा-दादी का पोता-पोती के शिर पर हाथ।।
परितः कल्याण कामना से होता ऊँचा  माथ।
दुःख-सुख को सह जाते बनाकर एक गाथ।।1।।
परिवार में इक दूजे पर इक दूजा है वारा।
किसी का राज नहीं सबका राज है न्यारा।।
सब सबके लिए सब सबका है जग सारा।
छोटा सा संसार जहाँ खिले प्यार का तारा।।2।।
भगवान माता-पिता समक्ष है जग उजियारा।
तात सभी हैं सबके विचार जहाँ प्यारा-प्यारा।।
सम भाव सम रीति-नीति प्रीति का सहारा।
हर जन हर जन का जान आँखों का तारा।।3।।
सुन्दर सा बाग जिसमें पुष्प बहु भाँति खिलें।
राग-द्वेष से दूर निष्कंटक हो सब हिलें मिलें।।
सुमति साथ सब निज गंध से घर-द्वार सिलें।
भाँति-भाँति पराग फैला निज डाली पर हिलें।।4।।
परिवार-उपवन का जन जन आम्र मंजरी हैं।
दुःख-झंझावात झेल बन जाते वे सब केरी हैं।।
फलों के राजा सब राजा सा सुनते जग भेरी हैं।
त्याग-तपस्या-गुठली सुख किसलय अब चेरी हैं।।5।।

रविवार, 30 अगस्त 2020

जो देख रहे हैं वो कह रहे हैं hindi poem. jo dekha rahe hai ao kah rhe hai

प्रार्थना नरसिंह से न रुठै विहगेश।
काम कठिन आसान करैं सोमेश।।
आज धरा पर आ तो जाये विश्वेश।
देखें सुनें कहें गति सबकी सर्वेश।।1।।
हम जो देख रहे हैं वो कह रहें हैं।
भगवान सबकी सब समझ रहें हैं।।
आदत बढ़ा आदी बनाये जा रहें हैं।
प्रकाश दबा तमस बढ़ाये जा रहें हैं।।2।।
एक से एक ज्ञान पिलाये जा रहें हैं।
खर सूकर गीदड़ सिखाये जा रहें हैं।।
करि केहरि नर कर काटे जा रहें हैं।
निर्भय हो बहु भय फैलाये जा रहें हैं।।3।।
सुन्दर सरस सलोने सपन सवरै सदा।
सर सरोज सर हुलसै कर नव अदा।।
भय दूजा हेतु निज हेतु है सावन सदा।
बरबस लेखनी लिख रही यदा कदा।।4।।
लोक तन्त्र है राज तन्त्र का महामन्त्र।
अपनी अपनी राह चलें सब स्वतन्त्र।।
जो सहे सहे बहे बहे हो कर परतन्त्र।
करना हो तो करो हो तुम भी स्वतन्त्र।।5।।

रविवार, 16 अगस्त 2020

|| दूध || doodh hindi poem milk

बन्दउँ पयनिधि रमन रमापति जगदीश।
सोहत ओढ़े चहु दिशि क्षत्र रूप फणीश।।
दूध महामहिमा मंडित सेवे महि अहि ईश।
 पूजे नित गोपाल गोरस उमापति गौरीश।।1।।
स्तन्य पीयूष नवजात सह है अमृत सबका।
दुग्ध क्षीर दोहज पय बलवर्धक जन जनका।।
बात खूब खीर खोआ रबड़ी कुल्फी स्वादका।
जनक है दही पनीर छेना श्रीखण्ड चीज का।।2।।
कथा दूध-पानी की मानव को शिक्षा देती है।
त्याग तपस्या और समर्पण भाव भर देती है।।
मित्रता की अद्भुत मिसाल प्रदर्शित करती है।
सर्वस्व त्याग विश्वास बनाना सिखलाती है।।3।।
दूध से बनता मख्खन घी अरु लस्सी मठ्ठा।
माखन मिसरी खाकर बनते हम हट्टा-कट्ठा।।
अविश्वासी से करें काहे हम कभी सट्टा-बट्टा।
साँप साँप ही रहेगा पिलाओ उसे दूध या मठ्ठा।।4।।
भारत माँ के आँचल में ही हमको रहना है।
प्राण जाय पर हमें दूध का कर्ज चुकाना है।।
हमारी धरा पर आये हर शत्रु को बताना है।
निज प्रहार से छठी का दूध याद दिलाना है।।5।।
बीते समय सा नहीं साँप को दूध पिलाना है।
हमें अब छाछ को भी फूंक फूंक कर पीना है।।
नव जन्में शत्रु अहि के दूध के दाँत तोड़ना है।
सब थल दूध का दूध पानी का पानी करना है।।6।।
दूध का धूला बनते उन्हें आईना दिखाना है।
दरिद्रता तज दूध की नदियाँ अब बहाना है।।
मलाई वालों को तो दूध की मख्खी बनाना है।
दो दो हाथ कर अबतो दूध का कर्ज चुकाना है।।7।।
खाओ दूध मलाई पर करो सबकी भलाई।
दूध से करो मत करो पानी से कभी कमाई।।
मत बनो निज तेज क्षीण कर पूस धूप भाई।
दूध सा श्वेत रहो अंत सब माटी मिलि जाई।।8।।






बुधवार, 12 अगस्त 2020

|||| कान्हा अब तो आ ही जाओ |||| o God kanha come to me.hindi poem

कान्हा अब तो आ ही जाओ,            
किसलय-वदन दिखा ही जाओ।
जगत तनय को जता ही जाओ,
मन-पात प्रेम-बूँद बरसा ही जाओ।।1।।
आठवीं संतान का राज बता दो,
आठवां अवतार का काम बता दो।
सोलह कला कान्ति चमका दो,
श्रीकृष्ण हर मन कृष्णता मिटा दो।।2।।
जग व्याप्त हर आपदा मिटा दो,
विश्व रूप की झलक दिखा दो।
शान्ति स्वरूप शान्ति सिखा दो,
हृदय हार हार पहला दो।।3।।
अष्टमी भाद्र कृष्णा की कथा सुना दो,
मन-मोहन मोह मेरा मन से मिटा दो।
मदन मद मार मत्सर माया हटा दो,
देवकी सुत निज सा पुष्प खिला दो।।4।।
आ यहाँ धरा को सांत्वना दो,
कंस काल की कल्पना हटा दो।
नारी हृदय से भय भगा दो,
सुख शान्ति सहज सहजता दे दो।।5।।



मंगलवार, 4 अगस्त 2020

||| पंक्षी राज बाज ||| eagle poem

भारत भूमि विश्व-पटल पर दर्शनीय चहु ओर।
नागपास में जब रघुनायक तब गरुड़ का  शोर।।
दक्ष प्रजापति सुता विनीता आयी कश्यप कोर।
कद्रू कथा कठिन काष्ट जलाया जमाकर जोर।।1।  अरुण ज्येष्ठ शाप माता बनी निज बहना दासी।
सौत बहन कद्रू, अनुज गरुड़ की अपनी मासी।।
शाप मुक्त होना है जब कृपा करें पयधि वासी।
कद्रू पुत्र नाग जब गरुड़ चोंच बस जाते कासी।।2।।
धार्मिक वैदिक पौराणिक बात आती बार-बार।
संस्कृति संस्कार सत्कर्म सत्पुरुष सबका सार।।
पंक्षी राज गरुड़ अरुण शाप किया माँ उद्धार।
आज विष्णु भगत की चर्चा होती है द्बार-द्वार।।3।।
आध्यात्मिक से लौट लौकिक में अब आते हैं।
साहस-शक्ति स्तम्भ श्येन का करतब गाते हैं।।
जो गरुड़ सतयुग-द्वापर वे ईगल बन जाते हैं।
सनबर्ड काइट हॉक फाल्कन यहाँ कहे जाते हैं।।4।।
बहरी बाज चील बनकर हमको शिक्षा देते हैं।
साहस-शान्ति प्रतीक शक्ति का पाठ पढ़ाते हैं।।
निज जमी से नाग शत्रु को आसमा ले जाते हैं।
विश्वासघाती जमीदोज यही सबक सिखाते हैं।।5।।


गुरुवार, 30 जुलाई 2020

।।। पुष्प ।।।flower hindi poem

अमर कथा पुष्पों की एक,देश-काल में मर्म अनेक।।
नाम अनेक काम अनेक,देश अनेक पर भेष एक।।
रंग अनेक रूप अनेक, जाति अनेक गन्ध अनेक।
काया भी अनेक पर इनकी सुभ्रता पर लट्टू अनेक।।1।।
अमर सदा पुष्पों की बात कोमल मधुर इनकी जात।
लता बृक्ष पादप पर खूब कहते खिल खिलाकर बात।।
देश- विदेश का भेद नाम भेद भी हो यहाँ-वहाँ तात।
खिलें सर्दी गर्मी जाड़ा वसन्त हेमंत शिशिर बरसात।।2।।
कहीं बेल तो कहीं लता भावुक मधुर मनोहर रिश्ता।
गूलर का फूल होकर भी निभाना है यहाँ हर रिश्ता।
फूल सूंघ कर रहना पड़े रह लें न तोड़े कोई रिश्ता।
अपराजित रहना सच कहना सिखाये अपराजिता।।3।।
परिवार गाँव हर राज्य देश हैं बहु पुष्पों के गुलदस्ता।
फूल सुमन कुसुम मंजरी प्रसून पुहुप गुल नहीं सस्ता।
पंचमुखी सदाबहार नयनतारा सदाफूली से कर रिश्ता।
फूलों सह फल बृक्ष यहाँ भरें जग जीवन में पिश्ता।।4।
राष्ट्रीय पुष्प कमल हमारा सिख अनेक हमें देता है।
श्वेत नील रक्तादि वर्ण में सदा हमें एकता दर्शाता है।
उड़ीसा कर्नाटक जम्मू-काश्मीर हरियाणा बताता है।
हमारा तू ही राज्य-पुष्प जो जग लक्ष्मी को भाता है।।5।।
बहु कीट-पतंगे को बहु पुष्प आकर्षित कर लेते हैं।
मधुमख्खी हो या चमगादड़ सबको पराग ही देते हैं।।
निज अमृत से कितनों को नित ये नव जीवन देते हैं।
सुखी दुःखी कैसा भी मन हो सदा शान्ति भर देते हैं।।6।।
हम पुष्प सभी काम में हर जन सेवा हेतु समर्पित हैं।
शरीरिक-मानसिक रोग भगा जीवन करते सुरभित हैं।।
मधुरस बाग-बगीचों के हम वास्तुदोष सुदूर भगाते हैं।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी जीवन को बहुरंगी कर देते हैं।।7।।
हम को छू कर देखो जगत तनय हम तुम्हरे जैसे हैं।
दया माया ममता मधुरिमा हम प्राण वायु सरीखे हैं।।
रामानुज की बात पवनसुत की करामात समझते हैं।
धौलागिरि से स्वर्ण नगरी पहुँच प्राण वायु भरते हैं।।8।।
पारिजात इन्द्र बाग का सत्यभामा को सिख देता है।
फूल फूल मानव के जीवन में ज़हर भी घोल देता है।।
चम्पा चमेली मोगरा जूही से नर सौम्यता पा लेता है।
रातरानी सा पुष्पों से नर संतापहारी इत्र ले लेता है।।9।।
सीता को छाँव दिया अशोक हर लिया शोक सभी।
श्वेताम्बुज निलाम्बुज आम चमेली अशोक ये सभी।।
कामदेव के अद्भुत पंच पुष्प रखते अद्भुत गुन भी।
अर्जुन अगत्स्य अमलतास गुड़हल है नर रूप भी।।10।।
लीली-लोटस की गाथा अद्भुत जग की व्यथा है।
दो की लड़ाई में तो तीजा सदा लाभ को पाता है।।
रजनीगंधा ग़यी कमल हारा गुलाब जीत जाता है।
पुष्प राज का ताज पहन गुलाबी जीवन पाता है।।11।गुलदाउदी सेवन्ती शतपत्री सेवन्तिका का राज।
इस्रायल सरकार ने मोदी नाम बनाया सरताज।।
चंद्रमुखी नसरीन बहुरोगहारी आवै सबके काज।
सेहत का खजाना गुड़हल धरा पर बिखेरे साज।।12।।
लाल पीला नीला गुलमोहरी गुलमोहर यहाँ।
खेजड़ी राज का राज पेड़ रोहिड़ा फूल जहाँ।।
बुंदेलखंड का गौरव ढाक का तीन पात वहाँ।
उत्तर पुष्प टेसू किंशुक पलाश ब्रह्मबृक्ष रहाँ।।13।।
पुष्पों की जीवंतता से जल भून मृतात्मा कहा।
मरना ही शाश्वत तो तुम क्यों खिलखिला रहा।।
खिलना ही जीवन है इस हेतु खिलखिला रहा।
मृत्यु डर रे कायर तू मुझे कायरता सिखा रहा।।14।।
गेंदा हजारों रंग पंखुड़ियों से फूलों का कहता है।
गर्व हमें जो सब बंधन तज सबके लिए रहता है।।
पुष्प हार हार बन नित मानव को प्रेरित करता है।
वही मानव महामानव जो हर हाल हर्षित रहता है।।15।।

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

।।। चन्दन ।।। chandan hindi poem

सुन्दर सहज सलोना तरूवर हर हर का मन लेता।
राग-द्वेष से मुक्त निज तन विषधर को सुख देता।।
कठिन कुचाह कुमति काष्ठ मन गेह नेह कर लेता।
चन्दन ही परहित निज देह गेह नेह सब तज देता।।1।।
जीवन धन्य करै चन्दन चन्दन बन सदा रहता है।
मणिधर विषधर जन मन भी चैन सदा भरता है।।
दनुज-मनुज हित निज तन ताप सदा सहता है।
चन्दन कोयला बन भी शान्ति सदा कहता है।।2।।
आतप वर्षा छाँव भले हों निजता नहीं तजता है।
आन बान मर्यादा पर कट काटक गन्ध भरता है।।
देव मनुज दनुज तन मर कर भी सुगन्ध करता है।
चन्दन-जन भी चन्दन सा खुशबू सर्वदा फैलता है।।3।।
भारत का कण-कण गाता चन्दन माँ की गाथा है।
हम क्या चन्दन तो देवों के भी शिर चढ़ जाता है।।
भूत-प्रेत सह सब भूतों को चन्दन बहुत सुहाता है।
जन्म-मरन तक हर पल नर का चन्दन से नाता है।।4।।
चन्दन तिलक भाल मानव दिव्य जन बन जाता है।
चन्दन से सीख सिख ले गुनी सर्वत्र पूजा जाता है।।
सीख तुम्हारी अद्भुत चन्दन माटी को महकाता है।
निज माटी चन्दन हित नर निजता भूल जाता है।।5।।
चन्दन का वन्दन करें जगत तनय मेवाती नन्दन।
निज गुन हर भारत-लाल को बनाओ अभिनन्दन।।
कभी भारत की धरा पर न हो चन्दन का क्षरण।
हे मलयाचल भारत का हो अचल मलय वन्दन।।6।।