रविवार, 25 जनवरी 2015

बकवास

संसार-सिन्धु इन्सान-विन्दु
भटक रहा दर दर अपनी पहचान बनाने ।
पाने गवाने पकाने बुझाने दिखने दिखाने,
सवारने आजीवन किन्सुक सा सकुचाने।।
बकवास करने में ब्रह्मानन्द पाते ,
परमानन्द लेते हँसते हँसाते सुख पाते।
रातो रात जाने अनजाने को पाने,
जमीर बेच जानवरों से बदतर कर जाते।।
बकवास ही है तो सार्थक भी है,
प्रेम बकवास विश्वास बकवास आस है।
मान-अपमान,जान-पहचान है
सतधाम काम रत भी यहाँ भगवान है।।
बकवास वा यथार्थ  सोच हैं
किनारे बैठ निठल्ले आतुर सब पाने को।
बुजुर्गों की सभी बाते कोच हैं
आज आतुर हैं बिना खेले जित जाने को।।
राम कृष्ण को माने जाने सब
राम कृष्ण की बारी पर खेलेअपनी पारी।
युग काल धर्म अब तब जब
हर बात बना करारे करे बकवास भारी।।


मंगलवार, 20 जनवरी 2015

रहमत रोशनी-राज रचाय

राम-भरत की त्याग-तपस्या,
लखन का बलिदान।
शत्रुहन का विराग भीआया,
रखने अवध का मान।।
ऐसी भावना जिस घर राज्य-देश,
अ वध हो जा निर्भय।
हर गाथा पर व्यथा हरन कीभाय,
नाक से ऊची छबि बनाय।
रब राम रखे रमा रूप-राशि रस राय,
रहमत रोशनी-राज रचाय।।
सुबह शाम वन्दन चन्दन मन्द मन्द जहाँ,
क्रन्दन कष्ट झट कट वहाँ।
भर जाय भाय अरमान सभी झटपट तहाँ,
कृपाधाम धाम बनाये वहाँ।।

विचार

मन-मंदिर,तन-आगार भरे हैं,
नाना ज्ञाताज्ञात विचार।
एक दिन सहसा खूब उछले हैं,
बरसाती मेढ़क अपार।।
इन्सान हैवान या भगवान,
मानव है या जानवर।
गाते किस्मती या कर्मवान,
जीते भूत यहाँ बन मार।।
आते जाते गाते पाते  हर स्थान,
इक दूजे को अंगुली उठाते।
लांछन लगाते खुद  मान महान,
जंजीरी जमीर जू जगाते।।
फाड़ फाड़ मुह कोसते सब नार,
अवगुन खान नार बताते।
हक्का बक्का हो जाते अपनी बार,
दूजे पर ही प्रहार कराते।।
सड़ी मानसिकता चलते ज़हर उगलते,
बेटी बहना माँ दादी भूले।
इक कुकृत्य पेख जाति पे उंगली उठाते,
दल बदल हर झूला झूले।।
सब माने सब करते दूजे को कोसते,
चटकारें ले पर पर।
अपने पर आ तो दूजा तराजू तौलते,
क्यों गाज गिरे स्व पर।।
खैर विचार अपने अपने स्वतन्त्र हैं,
कथन करना धर्म है।
विचारी बेचारा इस जहां परतन्त्र हैं,
यही तो युग मर्म है।।
तोड़ो कारा जाति धर्म क्षेत्र भाषा की,
बनो इन्सान हर पल।
नर-नारी इन्सान हैं सूत्र इन्सानों की,
विचार बना होवे सबल।।

रविवार, 18 जनवरी 2015

अति अनुरागी

सब जगह एकसी न सही पर अनूठी होती।
सागर गागर रेगिस्तान मैदान सबमें मोती।
अति अनुरागी खोज लेते हैं अंधेरेमें जोती।
पिपासु जिज्ञासु की आस आस नहीं खोती।
अति अनुरागी पा जाते हैं अंधेरे में रोशनी।
एक बूँद गुनकारी जो दुःख दाघ विमोचनी।
चिंगारी जू फैलाये मान बन जहाँमें माननी।
जगाती जगमगाती भाग बना बड़ भागिनी।
अति अनुरागी दोजख़ दुःख दाह लीन हो।
ज़न्नत सा सँवारते बनाते रचाते स्थान हो।
तज सहज कटुता मृदुता लाते कामार हो। सिंधु थाह ले वीर चीर फाड़ दे पहाड़ हो।
ऐसी जो तमन्ना सबमें तो न बुरा काम हो।
शत्रु न उठाय नज़र जब एक आवाज हो।
अति अनुरागी देशहित त्यागे सर्वस्य हो।
परहित होते ही हो जाय स्वहित काम हो।
इंद्रा सा न हो लोभी कामी अति अनुरागी। 
राम-भरत अनुरागी राज पाठ सब त्यागी।
बेड़ा गर्त हो जाने से पर्वू ही होजा विरागी।
तपी शिव से सीखे होना अनुरागी-विरागी।
अति अनुराग सिखावत जगावत पढ़ावत।
मिलावत सच्चा सुख प्रेम  रंग मा डूबावत।
न्यौछावर स्व पर पर करा त्यागी बनावत।
स्व से ऐसे माँ भारती की आरती करावत।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

मनवा मोर मोहे मोहित मान मन मोहनी

प्रकृति पुरुष का है जग अद्भुत खेल।
नित नाच नचावे बात बनावे कर मेल।।
नख शिख शील वदन मयंक मन मोहे।
नियति नियत नर नारी नव नवल नोहे।।
रच बस माया मोह कोह काम लोभ में।
कुदरत करिश्मा कानन कदम कद में।।
अनुराग वाग नर माली सुमन सूल चुन।
मोह गीत दर्द मीत धागा जू उलझ सुन।।
पद्म पद कमल नाल सा कोमल तन-मन।
बिनु घरनी घर भूत का डेरा जू है रे जन।।
नारी नर बनावे घर बसावे सुख शांति से।
कुनारी काम कोह रत नसावे नवास से।।
मनवा मोर मोहे मोहित मान  मन मोहनी।
मधुर मधुर मित मिलन मम मदन मोरनी।।
सेविका स्वामिनी सखा सच सदा शेरनी।
सहज सुकुमारी सदा सत सत सौदामिनी।।
  

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

श्रमेव जयते

परदे में सारा जहां सोहता है सदा।
बेपरदा भी निभाते नियम कायदा।।
जाओ जहां में जहाँ बन रहो मुदा।
लोक मानस मानस बसाओ सदा।।1।।
जूनून जगा मन उसमे बसा सतत।
लेबर इज विक्ट्री मन भृंग होवे रत।।
सूर्य चन्द्र सा करे स्वकर्म अनवरत।
पथ शूल फूल तप तप में जो तपत।।2।।
असत रत होत नत सत्यमेव जयते।
बिकल कल कल ले हो  नम नयते।।
जा जा भावे ता ता पावे संग सहृदते।
कोरी कल्पनात मानो श्रमेव जयते ।।3।

बुधवार, 14 जनवरी 2015

रचना

होती है सारी बात साथ कब।
पूछो देखो समझो जानो अब।
कैसे किसे कहाँ क्या कहू तब।
रचना अद्भुत कल्याणी सब।।1।।
मात-पिता पोषित पालित हम।
अचर सचर चर सब हम सम।
सादर सत चित आनंद वन्दन।
रचना कण कण केशर चन्दन।।2।।
नहीं हंस नर नीर क्षीर विवेकी।
नहीं नाहर नर नरेन्द्र मामेकी।
तमसावृत हटा हो आलोकित।
रचना सूर तम हार विमोचित ।।3।।
मम सम सब अन्यतम हैजानो।
अनूठा अनुपम हर कृति मानो।
उपयोगी बन उपासीन  सबके।
रचना प्रेम रमन रमा रे झटके।।4।।