राम-भरत की त्याग-तपस्या,
लखन का बलिदान।
शत्रुहन का विराग भीआया,
रखने अवध का मान।।
ऐसी भावना जिस घर राज्य-देश,
अ वध हो जा निर्भय।
हर गाथा पर व्यथा हरन कीभाय,
नाक से ऊची छबि बनाय।
रब राम रखे रमा रूप-राशि रस राय,
रहमत रोशनी-राज रचाय।।
सुबह शाम वन्दन चन्दन मन्द मन्द जहाँ,
क्रन्दन कष्ट झट कट वहाँ।
भर जाय भाय अरमान सभी झटपट तहाँ,
कृपाधाम धाम बनाये वहाँ।।
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