शनिवार, 10 अगस्त 2013

भवन

भारती भारत भवन भुवन भर भरे भव भव भूषित भावना !
भस्मासुर भस्म भा भारतीय भारहीन भगत भक्ति भावना !!
नापाक पाक पर पड़ता  प्रगट पंच  पापी पाते पराजय प्रताड़ना !
बहु धर्म कर्म मर्म युक्त भारत भवन रहे भुवन भर सुहावना !!१!!
जिसने देखा सदन होकर मगन नित !
भवन घर मकान होम हाउस आवास हित !!
ईट भाटा गारा जहा लगा गजधर का चित !
लकड़ी लोहा काच ही से है मकान निर्मित !!२!!
गम सारा हरे सुख सारा सरे वो होता है घर !
पीड़ा दायक नहीं पीड़ा नाशक जो रखते सर !!
परम प्रेम पावन पूरित प्रीति पड़ती परस्पर !
बैर भाव त्यागी नेह गेह का ही हरदम है दर !!३!!
सुख सदन करे दुःख दमन प्यार पूर्ण परिवार मगन !
त्याग तप  तपस्या हरने  को आतुर  दूसरे का तपन !!
माता पिता भाई बहना करे  कृपा किंकर कर्म कथन !!
दुनिदारी दुःख दारिद दावानल दूर हो सदा शुभ सदन !!४!!
वास करते सुवास पद्म सा  पद्मावती सी घरनी जहां !
न्यौछावर हो सुख सारे दुःख निवरे  निश्चित ही  तहां !!
कोमल कमल कंठ कोकिल का कागा करकस का कहा !
वास पद्माकर का पद्मासिनी सह होता  हरदम वहा वहा !!५!!
शिव शिवा सदन है पुत्र करिवर वदन तात षडानन !
है सारे धूत अवधूत भभूत रमते पर सब है पावन !!
नन्दी सेवक स्वामी पशुपति धावन जहा दसानन !
साँप मूसक सस्नेह बसते बना भवन  मनभावन !!६!!

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

हर पग सफलताओं को चूमते

जिनके  हैं कर्म  -धर्म  साथ-साथ घूमते !
उनके हैं हर पग सफलताओं को चूमते  !!
बात है विचारना ,हर पल सवारना !
सपने अपने- अपने कर्म कथा को कहते !!
कल्पना के गहने ,पहन सदा सब रमते !
ये गहने गहने न हो हैं  सब इससे बचते !!
इन्हें छोड़ केचुली सा जो  निज पथ चलते !
यथार्थ पटरी रेल सा चल मंजिल टेशन उतरते !!
संभावनाये -कल्पनाये हैं अनन्त ,
स्वपनिल लोक सा इनमे भ्रमण करते !
मिलता न जीवन सफ़र का अंत ,
चाहें जहा जहा में हैं यायावर बनते !!
लक्ष्य पथ चुनकर ही हैं जब कदम बड़ते !
आखें न मुदकर सोच सोच हर पग रखते !!
सीता खोज लक्ष्य पा बाधा लंकिनी से न डरते !
विभीषण सहायक मिलें जब सत्कर्म हैं करते !!
निश्चित पथ पर निश्चित ढंग से जब हैं चलते !
तब बहुगामी पर हैं हर पग सफलताओं को चूमते !! 

सोमवार, 5 अगस्त 2013

करोडपति को देखा बनते खाकपति

देखा एक को नहीं अनेक को रोते गाते हँसते खेलते !
दुनिया दीवानी को अपनी अपनी कहानी पर तरसते !!
समय पर नहीं चेत दुःख दर्द पा सब कुछ गवा चेतते !
साम दाम दण्ड भेद से एकल फल अर्थ  फलित करते !!१!!
क करम करना धरम धरना को छोड़ होता करोड़पति !
धर्म त्याग न्यायान्याय से ही शीघ्र हो गया लक्ष्मीपति !!
रजनी का उल्लू दिन में डोल बोले हमी है कमलापति !
करे कुकर्म कुधर्म कदाचार  कामी कुटिल कुटिलपति !!२!!
बनाया सारा जहा अपना  सुख शान्ति रही हरदम सपना !
चार दिन की चादनी पर किया गुमान नहीं कोई कल्पना !!
घर ईट पाथर लौह लक्कड़ से बना कर लिया सुहावना !
पर घर में घरनी नही रही तो भूतो का डेरा ही पावना !!३!!
घरनी मरी पर है घर भरा पडा पूरन  है सब धन धान !
भाति भाति की सुविधा पर आती नही है किसी काम !!
पुत्र पुत्र बहु संग समय बना उनके लिए वृहद् सचान !
संचित सब संतान सम्हाले सुखी नहीं इनका जहान !!४!!  
जीवन ज्योति बूझ गयी नहीं मिला इनको आराम !
संतान सुखहीन  पुत्र गिर गया वशीभूत काम -धाम !!
ठगता ठगाता रहा दिन -रात खो दिया पूर्वजो का नाम !
एक एक  मिला ग्यारह करने में खुद भी रहा बदनाम !!५!!
भोला था भोला पति था पाया सब कुछ था किस्मत से !
पर नानी का धन जजमानी का धन नही रहता जतन से !!
तो पानी का धन बेईमानी का धन कैसे बचाए पतन से !
निसंतान  का धन विश्वासघात का धन डुबाये तन मन से !!६!!
सपना सजोये रचना करे मन में नित नूतन सृजन का !
पर नहीं था किस्मत में लाल यह विधान भगवन का !!
जो धन जैसे आत है सो धन तैसे जात सत्य कथन का !
समय होत बलवान लूट गया सब सामने अपने नयन का !!७!!
अपनो ने लूटा परायो ने लूटा लेकिन किसी के लिए नहीं छूटा !
जो छूटा वह सब अब परहित करने का बहाना बना कर छूटा !!
जिस जिस ने लूटा लूट गए सब नहीं हुआ उनमे  कोई मोटा !
समय दे सदगति सबको मैंने तो सबके हाथ में देखा सोटा !!८!!
रचना मायापति की मानव मन है माया के आधीन !
जो जैसा करम करे वैसा ही है फल सबको उसने दीन !!
अनजाने तो  क्षम्य जान बूझ का तो फल है मलीन !
कभी न करना ऐसा वैसा रे मन तभी रहोगे तू कुलीन !!९!!
ख़ाक पति था जो कभी जब ऐसे  बन जाय करोड़पति !
होना ही होगा उसे जमीदोज एकदिन बन कर रोडपति !!
खून आँसू रोते तब जब बिगड़ती है इनकी सब गति !
मैंने तो कई बार करोड़पति को देखा बनते खाकपति !!१०!!

रविवार, 4 अगस्त 2013

पागल

मैंने पाया सर्वत्र सदा खोया खोया खुद से रमता !
मद मस्त सदा किंकर्तव्यविमूढ़ सुकर सा दिखता !!
पाने को दाने खो होश इधर उधर गिरता पड़ता !
भूख मिटाने पाए नहीं दाने सड़क किनारे सड़ता !!१!!
वह और कोई नहीं है पागल हर कोई यही कहता !
पर सच और वह सब सम्पन्न कभी हुआ करता !!
उसका ठाट देख प्रतिभा पेख हर कोई तरसता !
दे दिया सब सबको अब इस अवस्था में रहता !!२!!
ज्ञानी ज्ञान शानी शान मानी मान शून्य हो जब !
विधि मार से समय चाल से हो जाय  संज्ञाहीन तब !!
लूटाया नहीं लूट लिया अपनो ही  ने जब उसका सब  !
लूट कर छोड़ दिया टूट कर बोल दिया उसे पागल तब !!३!!
पर हित पर  ब्रहम सा है न कोइ इस जहां !
पर जनहित रत नित जन अभी भी है यहाँ !!
स्व कर्मरत अडिग पथ पर रहता कौन कहां !
जब ईमानदार कर्तव्यपरायण पागल है यहाँ !!४!!
दूध की मख्खी सा भोजन के बाल सा जो स्वयं सदा !
पर को समाज संकट पथ कंटक बताने को है आमदा !!
जनतंत्र में जन शक्ति पा हो गया है आज वह विपदा !
कर रहा सब जगह सब नियंत्रण देखो पागल ही है सदा !!५!!   

शनिवार, 3 अगस्त 2013

अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी

प्रकृति पुरुष  का सपना !
यह विधि की अनुपम रचना !!
प्रकृति व नारी हैं पुरुष पर भारी !
युगों युगों तक ठेकेदारों से हारी !!
हारा नहीं हराया इसको ,मिलकर पुरुष संग नारी !
पर युग बदला समय बदला ,अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी !!
आने दो माँ मुझको ,दिखाउगी सबको कैसे अबला है भारी !
सह कर सब यातना मृद पात्र सा ,कह रही अब हमारी बारी !!
पुरुष रहा या रही  नारी सबने मिलकर गला घोटा है बारी बारी !
गर्भ में आयी तीसरी संतान भी जब हो गयी कन्या कुमारी !!
माँ के कष्ट पिता के ताने घर के उलाहने !
सभी परिस्थितियाँ लगी है तंग करने !!
कुमारी ने तब संभारी गर्भ में ही पारी !
माँ अब नहीं हारना हारेगी दुनिया सारी !!
अभिमन्यु ही नहीं मैंने भी पाया है गर्भ ज्ञान !
उससे भी बड़कर मै बनूगी है मेरा सपना महान !!
पिता सिख से चक्रव्यूह तोड़ा था अभिमनु !
ताना बाना से सिख ताना बाना तोड़ेगी मनु !!
माँ क्या समझाए माँ को समझाए मनु !
भूख प्यास दुःख दर्द देखा है जो तेरा तनु !!
आने दो अब मुझे आने दो हो गया सो जाने दो !
मै आ जाती हूँ तब होता है देखो हाथ दो दो !!
मेरा सामना  तो होगा माँ मै आउगी !
धैर्य धर दुःख झेल मै तेरा दुःख मिटाउगी !!
कन्या भ्रूण हत्यारों सहित उनके कुल को सबक सिखाउगी !
दहेज़ लोभी सुरसा का सब मान हरण करवाउगी !!
नहीं पायेगे साथ नारी का वे क्वारे कर जायेगे !
आने वाली नस्ल वे ट्यूब बेबी से ही बदायेगे !!
कहना केवल कहना है ,नारी पुरुष का गहना है !
माँ बेटी दादी नातिन पर सबसे भारी बहना है !!
भोग्या नहीं सुख आधार शिला !
जिस जिस ने मेरा जीवन लिला !!
उनके वंशज वंचित ,नहीं पाए सुख संचित !
पायेगे सब दुःख वे नहीं इसमे संसय किंचित !!
सब योगता होगी मेरे पर कृपाल !
बनेगी मेरी वही सर्वत्र महा ढाल !!
योग्यता का बन मिसाल मै ले लूगी सब पद विशाल !
राजनीति हो या हो कोई विभाग जन देखेगे मेरा भाल !!
सारे कामी क्रोधी कुटिल लालची को पग पग नाच नाचाउगी !
माँ आने दो मुझे आकर मै इनको इनकी औकात दिखाउगी !!
आज दुःख देख कल सब सुख तेरा !
माँ ले लो गर्भ से ही वचन मेरा !!
अभिमन्यु बन कर ये सब छिन्न -भिन्न !
यहाँ मनु तेरा लायेगी लायेगी युग नवीन !!
जानेगी तब तरस तरस दुनिया सारी !
अब पड़ रही पुरुष पर नारी भारी !!  

सोमवार, 29 जुलाई 2013

अन्तर है समानता है

बैल बैल में अन्तर है ,जैसे नन्दी और साड़ में !
अन्तर नहीं है सभी बैलो में ,
पर है प्रेमचंद के हीरा  मोती और आज के बैलो में !!
उपन्यास सम्राट ने आदमी को बैल और गधा कह डाला !
बैल और गधा की समानता दो बैलो की कथा में आदमी से कर डाला !!
वास्तव में समानता है ,अन्तर है ,
मानव मानव में ही महद अन्तर है !
कही कही तो बिल्कुल अन्तर नहीं है जानवरों और मानवों में !
समानता है आहार निद्रा भय मैथुन और दोनों की आक्रामकता में !!
धर्म धुरी धरा धारन हेतु ,सत्य श्रम निष्ठा कर्म पालन हेतु !
मानवता मानव को मानव बनाने हेतु ,दानव और पशु से अलग रखने हेतु !!
जब अन्तर नहीं प्रेमजी के जानवरों और मानवो में !
तो फिर अन्तर कैसे  जानवरों की प्रजातियों में !!
रीछ और भालू में है क्या अन्तर !
कहां है गधो और गदहो में अन्तर !!
कोई खच्चर है तो कोई टट्टू है ,कई मौलिक है तो कई वर्णशंकर है !
कोई गवई है तो कोई शहरी है ,कोई नगरी है तो कोई बाहरी है !!
कोई काला है तो कई धवरा है ,कोई अपना है तो कोई पराया है !
सच है  हम इस बात से घबराये है ,कि हम एक दूसरे के साए है !!
कोई दुबला है कोई पतला है ,कोई छोटा है कोई मोटा है !
कोई फेकू है कोई टेकू है ,कोई सुलझा है कोई उलझा है !!
कोई साफ़ है कोई गंदा है ,कोई आधा है कोई पूरा है !
कोई मानक है कोई पैमाना है ,कोई क्षणिक है तो कोई ज़माना है !!
कोई आज है कोई कल है ,कोई भूत है कोई वर्तमान  है !
कोई आस्था है कोई विश्वास है ,कोई ठग है कोई धोखेबाज है !!
कोई सच है कोई झूठ है ,कोई वर्तमान  कोई भविष्य है !
 कोई ज्ञात है कोई अज्ञात ,कोई पराया है कोई अपना है !!
कोई रात  है कोई दिन है ,कोई हकीकत है कोई सपना है !
कोई चरित्रवान है कोई चरित्रहीन है ,कोई पूर्ण है कोई अपूर्ण है !!
कोई लेता लेता है कोई देता देता है ,कोई लेता देता है कोई देता लेता है !
कोई लेता है तो देता नहीं है ,कोई देता है तो कोई लेता नहीं है !!
कोई जग जाहिर है कोई माहिर है ,कोई सर्पेंट है कोई सर्वेंट है !
कोई जानता है तब मानता है ,कोई मानकर ही जानता है !!
कोई सीमित अपनो तक तो कोई विस्तृत परायो तक !
कोई आशावादी है कोई निराशावादी ,कोई आस्तिक है कोई नास्तिक !!
कोई असली है कोई नकली ,कोई सदाचारी तो कोई कदाचारी !
कोई ज्ञानी है कोई अज्ञानी ,कोई मानी है कोई अभिमानी !!
कोई सब है अकेले यानि स्वयं में दोनों -------
नर हैं या हैं वे नारी उनको तुम चुनो !
इन सबमे समानता है या फिर अन्तर ,यह जानना ही है जंतर मंतर !!
कोई कहता है कोई सुनता है ,कोई चुनता है कोई गुनता है !
कोई जानता है कोई मानता है ,कोई पारखी है तो कोई परख है !
कोई बड़ा बड़ा है कोई छोटा छोटा ,कोई बड़ा ही छोटा है तो कोई छोटा ही बड़ा है !!
तो कोई छोटा बड़ा दोनों है ,पर है जरुर -----
तो फिर क्या अन्तर है हममे और तुममे --
अन्तर है तुम तुम हो हम हम हैं ,यह हमारा है वह तुम्हारा है ---
इसी का तो जबरदस्त रगडा है पर जो भी हो अन्तर नहीं है !!
समानता है -आये एक ढंग से जाए एक ढंग से ----
यहाँ का यही रह जाए सब जानते है सब मानते है !
अन्तर है -सर्व श्रेष्ठ और निकृष्ट में हार  और जीत में हानि व लाभ में,
जान बूझकर करने व अनजाने हो जाने में ठगने ठगाने पाने व गावाने में,
बनाने व बिगाड़ने में निर्माण व विनाश में !!
अन्तर है -कथनी और करनी में ----
धोखेबाजो की विश्वासघातियो की ठगों की लूटनेवालो की अन्यायियो की !
दोहरी चालवालो  की बेइमानो की झूठो की चोरो चिकारो की और नामर्दों की !!
अन्तर नहीं है -कथनी और करनी में ---
रसूक वालो की ईमानदारों की !
सच्चे और नेक आचरण वालो की !!
मर्दों की जुबान एक होती है -मिथक है -सच है -इसका वजूद है !
फिर भी सभी मर्द एक सा होते हैं क्या -या नहीं ,
अन्तर है मर्द मर्द में अन्तर नहीं है नामर्दों में !!
इसीलिए तो --
कोई हँसता है कोई रोता है ,कोई जगता है कोई सोता है !
कोई हँसाता है कोई रुलाता है ,कोई जगाता है कोई सुलाता है !!
क्या अन्तर है भूत वर्तमान भविष्य में -है भी -नहीं भी ----
मानव ही दानव था है और रहेगा पर सभी नहीं !
मानव ही मानव थे  है और रहेगे पर सभी नहीं !!
तो अन्तर कैसा और क्यों कहा कहा और कब कब ---
चौपाया और चारपाई में भाई और भाई में समानता है अन्तर है !
राम और भरत सा युधिष्ठिरऔर दुर्योधन सा अन्तर है !!
मानव और दानव में अन्तर तब तक !
मानवता आभूषण है मानव का जब तक !!
दानवता श्रृगार जब हमारी !
हम दानव से भी पड़ेगे भारी !!
समानता है जोड़ने और निर्माण में अन्तर है बिगाड़ने और विनाश में !
समानता है दौड़ने और दौडाने में अन्तर है भागने और भगाने में !!
जाति धर्म सम्प्रदाय भाषा भेष आदि में अन्तर है !
अन्तर नहीं है जब हम मानव है वसुंधरा ही कुटुम्ब है !!
अन्तर है तो इसे बनाए रखना भी है --क्योकि --
गागर गागर है और सागर सागर है हिम हिम है और हिमालय हिमालय है !
झूठ सच हार जीत हानि लाभ जीवन मरन जश अपयश दुःख सुख झेलना ही है !!
करिश्मा का इंतजार नहीं कर्म का करो सम्मान !
निश्चय ही अन्तर रहते ही बदा लोगे मान !!
अन्तर को पाटना समानता को लाना !
यही है सच्चे विकाश को बुलाना !!
इसके लिए स्व अनुशासन से मन पर विजय पाना !
समस्त अवगुणों को आवश्यक  स्व से दूर भगाना !!
पर को न देख स्व को देखे सच्चाई को पेखे !
कुछ भी नहीं रहा है पर सच्चाई रहेगी इसे ही सच लेखे !!
समानता है सच और सच्चाई में -अन्तर है झूठ और झुठाई में !
समानता है अच्छे और अच्छाई में अन्तर है बुरे और बुराई में !!        

रविवार, 28 जुलाई 2013

त्रिमातु की नव वन्दना



                      उमा रमा ब्रह्माणी अग जग रमनी सृष्टी सुहानी जग मातु कहासिन !
                      सुन्दर सहज सरल भासिन जो हैं  शिव विष्णु ब्रह्म बामांग सुवासिन !!
                      शक्ति धाम सर्व काम पूरिन जो है सदा दुःख दारिद सब कष्ट निवारिन !
                      वैष्णवन वैष्णवी शाक्तन शक्ति शैवन शिवा प्रभृत अभिधान धारिन !!१!!
                      जिनका रूप रूपसी सा देख खल सहज गरल रस पान कर धरा त्यागिन !
                      शुम्भ निशुम्भ चंड मुंड धूम्रलोचन रक्तबीज दुर्गा महिषासुर मर्दिन !!
                      नाम अनाम कुनाम सनाम धर असुर जग जब जब अत्याचार करिन !
                      सुवेष बनाय स्वाचरन से मानवता त्यागी का मातु तू है सर्व बिनासिन !!२!!
                      रमा समान रमा माँ सदा नारायण संग नारायणी पद्मांगी पद्मासिनी !
                      धन धान भरो मन मान भरो सुख शान्ति भरो जग जाग निस्तारिनी !!
                      सर्व मंगला मंगलकरनी भक्तो का हर हर कष्ट सुख भर सुमंगल दायिनी !
                      नित नवीन पद्मावाली सा सर्वांग सुवासित यश भरो हे मातु यशस्विनी !!३!!
                      ब्रह्माणी बर  बुद्धिदायिनी  विमला अमला कमला निर्मला  स्फटिक धारिनी !
                      सच है सदा नहीं कोई है तुझ सा जगत में  शुभ्र शुभ्रांगी शुभ्र हंसावाहिनी !!                    
                      शोषक शोषित ठग ठगाए पाए बिनाश धोखेबाज विश्वासघाती हे जग तारिनी !  
                      जन मन मंजू कर आसन सुधार धरा कर कर मति विमला हे मति दायिनी !!४!!
                      त्रिदेवी त्रिदेव प्रिया त्रिलोकी त्रिभुवन तारण तरन त्रय ताप तपन हरन !
                      त्रिपुर सुन्दरी त्रयलोक वन्दिता त्रिनिनादिनी त्रास हारिनी जग कारन करन !!
                      दिवाकर ज्यो हरे तम जगत का त्यों हे मातु तू हो जगत त्रास तारन !
                      त्रिमातु की नव वन्दना अर्पित त्रिपद कमल जेहि कर कमल सब दुःख समन !!५!!