मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

शान्त हो झट अशान्त दावानल भारत कानन

जय शारदे माँ जग जननी आदि अनादि अनामय !
त्रय ताप दाप निवारिनी अमल अनन्त करुनामय !!१!!
सदा सर्व हित नित रत माँ दुःख दारिद्र निवारिनी !
तेरी सदा ही जय हो जय हो हे माँ जगद्व्यापिनी !!२!!
हे वीणावादिनी जहां में नव राग रागिनी भर दो !
हे श्वेताम्बरी सुख स्नेह सौहार्द सत कामना दे दो !!३!!
कमलासिनी कल कल कवलित कलि कलित !
कामी कुण्ठित कुपथी का कर कल्याण ललित!!४!!
भयहारिणी नित नव भय ग्रस्त त्रस्त जन जन !
कृपा कटाक्ष हो सदा निर्भय हर तन मन जन !!५!!
प्रेमाम्बु भरो यहाँ हर नयनो में न  वैमनस्यता !
हम दानवता तज फैलाये जगत में मानवता!!६!!
हे भारती भर भारत भर भरपूर भायप मुदा !
जन जन से प्रेम प्रकाश आश मत होवे जुदा !!७!!
आज भारत नागर आरत निहारत तव आनन!
शान्त हो झट अशान्त दावानल भारत कानन !!८!! 

रविवार, 18 मार्च 2018

।।मंगलमय हो विलम्बी संवत्सर।।

सत शत नमन है विलम्बी संवत्सर।
बत्तीसवॉ स्थान हैं स्वामी विश्वेश्वर ।।
सोलह कलाएं भरे जग में हरि हर ।
नित नव रस दे दो हजार पचहत्तर ।।
जन जन के जीवन में आ के बहार।
सुख-शान्ति से भरे हर आँगन द्वार।।
गिरिजा शंकर की कामना बार बार।
दुःख-दर्द हो दूर खुशियॉ हो हजार।।

बुधवार, 7 मार्च 2018

।।एक का न था न रहा न रहेगा भी।।nothing was same or will be same

बहुत बीत  गया बहुत बीतेगा अभी।
आओ विचारे आज हम सब सभी।।
क्या कैसे कब कहते कभी-कभी।
सबकी करे सब बात सत-सत सभी।। 1।।
शहर की आबोहवा में गवईपन भी।
गाँव की गली-गली शहरीपन  भी।।
सत शिव सुन्दर सरग-नरक भी।
हैं दुःख-दर्द जहाँ सुख मरहम भी।। 2।।
प्राची प्रदीची उदीची अवाची भी।
आग्नेय नैऋत्य वायव्य ईशान भी।।
उर्ध्व-अधः मध्य सर्व ज्ञाताज्ञात भी।
ईश वायु-प्राणाधार वायुनन्दन भी।। 3।।
राम-कृष्ण बुद्ध-महावीर अन्य भी।
भारत वेद पुरान गीता कुरान भी।।
सिख ईसाई हिन्दू मुसलमान भी।
भारत बाग में खिले नर पुष्प भी।। 4।।
एक का न था न रहा न रहेगा भी।
एक सा न था न रहा न रहेगा भी।।
बाग था बाग सदा बाग रहेगा भी।
युगों से आबाद आबाद रहेगा भी।। 5।।


सोमवार, 27 मार्च 2017

साधारण-शुभ संवत्सर,नीति-प्रीति दे जन- जन पर।।

नव जीवन का उल्लास लिए,रग-रग में नव राग लिए।साधरण-शुभ संवत्सर कर- कमलन यश-हार लिए।।धर्म-अर्थ को साथ किये,काम लाय हुलसाय हिये।बन अलकनंदा पयप्रसविनी जन जन को सम्मान दिये।।आस पूर पूर जन का,मान भरे मनका-मनका। नित नूतन उपहार मिले सबको रबका।।कामना हमारी हो साधारण पर शुभ संवत्सर।हमरा नव वर्ष है तो हम नीति प्रीति राखे जन जन पर।।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

धीर वीर बलजीत का ऊँचा सदा हो माथ।।


शेरगढ़ संस्कृत विद्यालय का एक वीर।
दे रहा है आज हर अपनों को हरा पीर।।
अवध वासी बलजीत जो हैं बहुत धीर।
आज पुण्य काल में किया हमें गम्भीर।।2
हो रहे निवृत्त सेवा से इस साल के साथ।
धीर-वीर बलजीत का ऊँचा सदा हो माथ।।
आन,बान व शान सदा सोहे इनके साथ।
इनकी हर कामना पूरे नित त्रिलोकी नाथ।।

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

।।कौन अब गंगाधर बनेगा।।

जहाँ हो सब बनाने को आतुर,वहाँ तब बनने को तैयार कौन होगा।
हर पद-दल हर क्षण हराने को बेसब्र,तो बताये हार किसे स्वीकार होगा।।
कीचड़ उछालने फैलाने वालों मध्य,अब सच को कौन अंगीकार करेगा।
सर्वत्र फैल रहे द्वेष-हलाहल पीने को,कौन अब गंगाधर बनेगा।।1।।
हर थल पनप रही असमता-विषमता वर्ग -भेद,भेदन को कौन आयेगा।
हाय अन्याय पाप अपाचार समन हेतु,कौन कौन्तेय यहाँ अस्त्र धरेगा।।
जिस राज में सभी रथी-महारथी ही हो,वहाँ फिर सारथी कौन बनेगा।
दृश्य-अदृश्य कुकर्म-कालकूट को,गटकने कौन अब गंगाधर बनेगा।।2।।
मत्स्यान्याय मध्य जीने को बेवश का,अब यहाँ न्यायी कौन बनेगा।
माइट इज राइट के काइट को वसुन्धरा पर,कंट्रोल कौन करेगा।।
जिसकी लाठी उसकी भैस मध्य,लाठी लगाम लगाने कौन अब आयेगा।
हर गली-थली के मद-मतवारे के मद को पीने, कौन अब गंगाधर बनेगा।।3।।
सर्वहारा जहाँ सर्व हारा है हो रहा,वहाँ इसकी जय कौन अब लायेगा।
हमारी हताशा-निराशा-निशा मिटाने, कौन सूर सूर बन अब आयेगा।।
जहाँ बन्दी में मन्दी वहाँ सहज सानंदी का,
आनन्द हर कौन बन पायेगा।
निश्चित हर ही है हरि जो हर हार हरण को,यहाँ गंगाधर बन आयेगा।।4।।

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बुधवार, 14 दिसंबर 2016

घोसले को त्यागना ही पड़ता है, We have to give up the nest.

        घोसले को त्यागना ही पड़ता है, We have to give up the nest.

        ।।We have to give up the nest.।।

इस जहां की रीति यही है जिसे हर को निभाना ही पड़ता है।उड़ो कितनी भी ऊँची उड़ान अंत में जमी पर तो आना ही पड़ता है।

हैं अनन्त अनन्त में राहें,किसी न किसी को पकड़ना ही पड़ता है।
यहाँ आकर एहसान नहीं,निज प्रारब्ध को
भुगतना ही पड़ता है।।1।।
राज राजेश्वर हो या दीन-हीन निर्बल,चाल चलना ही पड़ता है।
राजा हरिश्चंद्र और विप्र सुदामा को भी, यहाँ याद करना ही पड़ता है।।
जन्म-कर्म के मर्म को निज नेह गेह में भी, नित झेलना ही पड़ता है।
जीवन-ज्योति जलाना है तो,घोसले को त्यागना ही पड़ता है।।2।।