गुरुवार, 18 जुलाई 2013

धरती

धरा धरनी धरती  जन जन की चाहत भारती !
चौरासी लाख दृश्य अदृश्य योनि  पालन करती !!
सुख दुःख की अकूत विषमता स्व अंचल रखती !
सम भाव सदा आपदा बिपदा से परे रहती !!१!!
देश विदेश स्व या पर देश नर नरेश या नागेश !
केदार सार या बद्रीनाथ सबमे रखती सम भावेश !!
सनातन पुरातन परिवर्तन की इच्छा वृध्दि आदेश !
आवश्यकता धरा नित  पूरे अपूर्ण इच्छा रखे कामेश !!२!!
अन्न धन धान्य सदा भर जन जान प्राणी प्राण सेती !
जलचर नभचर थलचर उभयचर चराचर त्राण देती !!
सचर अचर  चर  को तार कर्मरत कर कर्म भाव भारती !
अनाचार कदाचार दुराचार व्यविचार से धाराशाही धरती !!३!!
चीटी से हाथी तक का पेट नित नवीन ढंग से भरती !
निज निर्धारित प्राकृतिक नियम पर घड़ी सा चलती !!
काल गति काल हो जब प्राकृतिक नियम चटकती !
आबाद आबादी का ह्रास क्षण में करती है धरती !!४!!
धरमशील तन मन धन से मिलते नहीं दिखावा करते !
सर सरिता सागर गागर बादल जल निज मार्ग करते !!
सुख संपति बिन बुलाये मेहमान बन धरमशील को धरते !
कर्मशील निज कर्मरत भाग्य विभव नव नव भरते !!५!!
करते दुष्कर्म वा सत्कर्म जननी सा हर हाल सदा सहती !
जग जननी जन जननी बन नवीनता संचार नित करती !!
आसन बसन बासन बन सुबासन सुबसन को सराहती !
दुर्व्यसन दुर्वासना को सहती पर नाश करती नित धरती !!६!!
  


सोमवार, 8 जुलाई 2013

मानव

मानव दानव सा करे जब आहार विहार !
हो जिस साधन से भरा उससे पाये हार !!१!!
रचता स्वयं नाश जाल होती ताकत पास !
सोचता विकास जिसको वही करता विनास !!२!!
समझ चतुर बन गया ठग ठग अपनो को रोज !
समय समेटे सकल सुख मिट जाये सब मौज !!३!!
स्व को सदा सम समझ जो असत से कर अर्जन !
भरे स्व स्वजनों का सब करे सबका तर्पन !!४!!
फूले फले जवास सा चूस चूस पर सार
पड़ते ही पावस बूद हो जाय तार तार !!५!!
दुहरी चाल पल पल चल चमक सकते कुछ पल!
दुधारी बन यह करनी करेगी विनास कल !!६!!
सुख शान्ति छिन जन स्वजन अपरजन या द्विजन !
मिले दुःख दैन्य व अशांति तुम्हे इसी जीवन !!७!!
लूट की ललक से लपक दे कोरा ही वचन
टूटे लुटे लाल लाल हो तेरा अधोपतन !!८!!
भक्षण इंसानियत का नित बन संसार से विरत !
जैसे भक्षण परिजन की करता बगुला भगत !!९!!
घात प्रतिघात है क्या विश्वासघात पाप !
सो कहते बचोगे रे आस्तीन का साप !!१०!!
कुपथ से विकास चाहत बनाती हे दानव!
सुपथ से सुदृढ़ ही सदा रहे हरदम मानव !!१०!!

शनिवार, 22 जून 2013

तीन दोहे

सागर सा धीर वीर जन ,रखे मर्यादा ध्यान !
आप आ जा सागर में , हरदम एक समान !!१!!
सब विकार बिहाइ पाय ,जल नदी से सागर !
विकार जन नसाय जाय ,ज्यो छेद से गागर !!२!!
चयन कर निज विचार से ,देकर अपना साथ !
बात पूरी सुचार से , नहीं टेक कर माथ !!३!!

मंगलवार, 21 मई 2013

राधेश्याम

कृष्ण कथा की का कथा समुझै नित मन लाय!
मिट जाय जग की व्यथा ज्यो तृषा जल पाय!!१!!
राधा राधा की धार धोवै सब अघ सार !
पा कृपा तू एक बार कर लो बेरा पार!!२!!
मातु पिता राधेश्याम धर मातु पिता रुप!
पालन पोषण जगत का करते कर हर स्वरुप!!३!!
देश काल लोक हित में पाकर इनका वचन!
होगा नहि अप्रत्यासित कुकंटको का दमन!!४
हम सब सदा करते नमन इनको भज दिन रात!
भारत की सवरे दशा हो जाय करामात!!५!!

शुक्रवार, 17 मई 2013

जीवन-जनक

जीवन हो सकल सुख साधन सम्पन्न,हो रहा आज है नर इस हेतु अघ सरन!
जीवन ज्योति जग मे जगमगाती सर्वदा,एक एक कर भले ही हो सब योनि गमन!!
जीवन अमृत को पा नर क्यो नित भूलता,सुख दुख दिन रात सा न्ही इसमे चयन!
जीवन जहर कर स्वमेव ही नित नव,आपदा जंजीर का क्यो करता नित आलिंगन!!१!!
मत्स्यान्याय हो रहा सबकी नजर सर्वत्र,द्वापर कथा आज व्यथा द्रोपदी चिर-हरन!
बाहुबली हस्त स्व चिराग हित नित रत,पर जीवन ज्योति का कर रहा है शमन!!
जीवन न्याय हैजीवन काल मे ही पूरन,करना है हिसाब चाहे करो जितना जतन!
जिसकी लाठी उसकी भैस है प्यारा कथन,किसके लिये इस पथ करते न्याय दमन!!२!!
जीवन लाल बन जीवन दान की कसम,लेकर करते सुकर सा निज पेट भरन!
कह रहा श्वान आज घूम-घूम गली-गली,देखो दोस्तो मुझे नही मरना मानव-मरन!!
मरना मारना मर जाना हर जीवन के,नव जीवन पाने के क्रम का है सदा बरन!
लूटना लूटाना लूट जाना इस जगत में,छूटना है सब साथ जाता तो नही है कफन!!३!!
जीवन लालसा सा लगा गले सब सबको,पूजा पाथर की कर ज्ञाताज्ञात से ले सबक!
जीवन पथ हो सहज सरल सुवासित,त्रिपथगा सा ठान लो जन तारने की सनक!!
कलयुग ही है काल नही मानव मन का,मत भरमो इसमे ले गफलत की भनक!
काट छाट कर छोटा बडा मत बनो कभी,बनना ही है तो बनो जीवन मे जनक!!४!!

बुधवार, 15 मई 2013

हे रिद्धि सिद्धि के दाता

जय जय जय वर दायक गन नायक,मंगल दायक शुभ शोभित सुन्दर बदन!
गिरिजा सुवन गण बन्दन गज बदन,विघ्न हारक सुखकारक त्रिपुरारी नन्दन!!
जन रक्षक जय,जय हे मंगल करन,सदा विपत्ति विनाशाक जय हे गज करन!
मोदक जो चढावे सब सुख पावे तुरत, जय जय जय हे गनेश असरन सरन!!१!!
विद्या दाता ज्ञान विधाता भक्तो के दुखहर्ता,सुख सम्पति नाना विधि दाता हे स्कन्ध के भ्राता!
हेरम्ब मद मोद सार सब संकट हर्ता,मातु पिता के दुलारे हो तू तू भक्तन के त्राता!!
सेवत ही सुजन की कामना पूरन कर्ता,अष्टसिद्धि नवनिधि  स्वामी तू तू धन के दाता!
मातु पिता भ्रातागण सब नित मोद भर्ता,रचना हो मंगलकारी हे रिद्धि सिद्धि के दाता!!२!
विनती सुनो हमारी हे त्रिपुरारी नन्दन,लोक सुवासित रचना हो जन मन रंजन!
नित नवीन नूतन नव आकृति बन्दन, शब्दार्थ रस भरो छन्द जैसे आखो में अंजन!!
मंगल रचना करे नित जगत नन्दन,दो शक्ति सदा इस जन को हे दुख विभंजन!
आतुर भय से जो जन करे सदा क्रन्दन,दूर करो सबका भय हे भव भय भंजन!!३!!

गुरुवार, 9 मई 2013

ॠतु परिचर्चा

मधु-माधव माह महाराज माहन माहै,मोहै मालती मलयानिल मार मानव मन!
बासंती बयार बतावे बनावे बतकही,बरबश बुलावे बहलावे बहु बहु बन!!
फुलै फलै फूल फल फहरत फबिफात,फहरावे फर फेरि फेरि फनिक फन फन!
सोना सी सोहै सुधरा सुधर सुघर सर,सुरासुर सुर साजे सजावे सब सनासन!!१!!
जीवन जोत जगावे जगती जगमगावे,जाडा जावे जन जनावे जोरि जोरि जागरन!
जाड जड जोडि जुगल कर अनवरत,जावे पर बतावे गीता ज्ञान हो नन्दा शरन!!
आवे ग्रीष्म गरमी ले अगवानी वैशाख ले,अबार हाल इहै तो जेठ शुरु का का तपन!
जेठ की दुपहरी क दाघ निदाघ का करी,सोच सोच आकुल छाया भागत छाया शरन!!२!!
आषाढ माह गरमावे त बरसा बुलावे,झिमिर झिमिर झक झोरि झोरि रोज बरसै!
सावन भादो नाम बरसा रितु सब जाने,सावन की कजली बिरहिनी के जिया तरसै!!
सिय बियोग में राम गति जाने जो जनावे,पपीहा नित चातक चातकी की बात करसै!
धरा धन्य धन धान ध्रुव धर धरोरुह,हरियाली हर हर मानव मानव हरसै!!३!!
क्वार माह खुशबू कातिक का बन गरम,टेर दे जन जन काम आई धरम करम !
नेह नित निबाहन नव राग बढावन,चतुरमास चहुदिसि होत पूरन परम!!
राग रोग भाग,भोग भागसु रजनी बढ,सुकरम हेतु बतावे गहनतम मरम!
तीज त्यौहार खुशियो को झूम कर मनावो,भूल जावो गम शरद सिखावे यह धरम!!४!!
पतझड पर प्रीति परम पावन पाय,अगहन पूस माह हेमन्त छाय जहा जाय!
कहनी का इनकी जोर दे पल प्रकृति की,धरोहर धरावे धरतीसुत से धाय धाय!!
भविष्य सुधर जाये हर उस जन का,सुधा सुधरम सुकरम का जो जो अपनाय!
भावी आवे ही आवे मेटि न जाय सब गावे,दुख सुख दिन रात जरा जवानी सु बताय!!५!!
शिशिर आगमन पूस के चरन धरन,माघ पूरा अपना हक छोड फागुन झलक!
कपावे तन मन पीपल पात सु सुबह,जम जाय जन जीवन प्रेमी प्रेयसी पलक!!
घर जवाई सु होय मान घटाय सूरज,राहत-रेवडी वास्ते लोग निहारे अपलक!
रहता नही दिन मान एक सा हरदम,रितुराज राजा सा पूर्ण करे जगायी ललक!!६!!