शनिवार, 23 मार्च 2024

।।मन्दाक्रांता छंद हिन्दी एवं संस्कृत दोनों में।।

मन्दाक्रांता छंद
            संस्कृत में मन्दाक्रांता का अर्थ है
"धीमे कदम रखना" या "धीरे-धीरे आगे बढ़ना"।
ऐसा माना जाता है कि इसका प्रयोग 
महाकविकालिदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ
मेघदूत में सर्वप्रथम किया था।मंदाक्रांता 
छंद अत्यष्टि वर्ग में आता है।
लक्षणः- 
मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्यम्।।
व्याख्या :- 
       जिस वृत्त/छंद के प्रत्येक चरण में क्रमशः 
मगण भगण  नगण तगण तगण  और दो गुरु
के क्रम में  वर्ण हो और  लक्षण में प्रयुक्त
अंबुधिरसनगैः  के अनुसार अंबुधि: से  चार
महासागर  ऐतिहासिक रूप से नामित  हैं: 
अटलांटिक, प्रशांत, भारतीय और आर्कटिक।
(हालाँकि, अधिकांश देश - जिनमें संयुक्त
राज्य अमेरिका भी शामिल है - अब दक्षिणी 
अंटार्कटिक को पांचवें महासागर के रूप में
मान्यता देते हैं।)
    रस से छः दैनिक जीवन के रस नामित हैं :
मधुर (मीठा),अम्ल (खट्टा),लवण (नमकीन),
कटु (चरपरा) ,तिक्त (कड़वा या नीम जैसा) 
और कषाय (कसैला)। 
     नगैः से सात भारतीय  प्रसिद्ध पर्वत हैं: 
हिमालय ,अरावली, विन्ध्याचल, रैवतक ,
महेन्द्र, मलय और सहयाद्रि
       इस प्रकार अंबुधि, रस और नग के क्रम में 
प्रत्येक चरण में क्रमशः चार,छः और सात वर्णों 
पर यति होती है। यह समवृत्त  छंद है इसके 
प्रत्येक चरण में 17 वर्ण पूरे छंद में कुल 
68 वर्ण होते है। इस प्रकार इस छंद की 
परिभाषा बन रही है।
परिभाषा:
    जिस वृत्त/छंद के प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण भगण नगण तगण तगण और दो गुरु के क्रम में
वर्ण हो और प्रत्येक चरण में चार छः और सात 
वर्णों पर यति हो उसे मंदाक्रांता छंद कहते हैं।
          अब हम उदाहरणों को व्याख्या सहित 
देखेगें लेकिन उससे पहले हमें हमेशा याद रखना
 है कि इस नियम/श्लोक के अनुसार अन्तिम वर्ण 
लघु होते हुवे भी छंद की आवश्यकता के अनुसार विकल्प से हमेशा गुरू माना जाता है।
वह नियम विधायक श्लोक है..

सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा ॥

उदाहरण:
मगण भगण नगण तगण तगण दो गुरु
SSS  SII    I I I   SSI   SSI  S S
1.शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
   विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
   लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
   वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

दूसरे उदाहरण के रुप में मेघदूतम का पहला श्लोक देखते है:

    S S S   S I I  I I I  S S I  S S I  S S
2.कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्त:,
शापेनास्तंगमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः ।
यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु ॥
 
   दोनों उदाहरणों में इनके प्रथम चरण के अनुसार 
ही क्रमशः मगण भगण नगण तगण तगण और 
दो गुरु के क्रम में वर्ण  हैं तथा प्रत्येक चरण में 
क्रमशः चार छः और सात वर्णों पर यति  भी है
 अतः मंदाक्रांता छंद  है।
      जरा दूसरे उदाहरण में ध्यान दे कि इसके
तीसरे और चौथे चरण का अंतिम वर्ण लघु हैं 
लेकिन "सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च  तथा पादान्तगोऽपि वा ॥"
के अनुसार वे गुरु माने जायेगें इस बात का
 हमेशा ध्यान रखना है।

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं परिभाषा 
संस्कृत की तरह ही हैं। आइए एक विद्वान की
हिंदी में  बताए  इस लक्षण को भी देख लेते हैं 
जिनका अर्थ पूर्व बताए गए व्याख्या और 
परिभाषा की तरह ही है।
हिन्दी में लक्षण:
“माभानाता,तगग” रच के, चार छै सात तोड़ें।
‘मंदाक्रान्ता’, चतुष पद की, छंद यूँ आप जोड़ें।।
उदाहरण:
1.लक्ष्मी माता, जगत जननी, शुभ्र रूपा शुभांगी।
विष्णो भार्या, कमल नयनी, आप हो कोमलांगी।।
देवी दिव्या, जलधि प्रगटी, द्रव्य ऐश्वर्य दाता।
देवों को भी, कनक धन की, दायिनी आप माता।।
 
 2.“तारे डूबे तम टल गया छा गई व्योम लाली।
पंछी बोले तमचुर जगे ज्योति फैली दिशा में।”
।।धन्यवाद।।

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