रविवार, 10 मार्च 2024

।।शिखरिणी छंद हिन्दी एवं संस्कृत दोनों में।।

शिखरिणी 
       यह सत्रह अक्षरों/वर्णों  का  समवृत्त
 जाति का अत्यष्टि छंद है। 
लक्षण - 
रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी। 
व्याख्या:
        शिखरिणी छंद भारत के सौंदर्य,संस्कृति,
भूमि, गौरव और धीर-गम्भीर भावों को  को 
व्यक्त करने वाला विशेष छंद है। इसमें चार 
चरण होते हैं।प्रत्येक चरणों में यगण, मगण, 
नगण, सगण, भगण और लघु एवं गुरु के क्रम
में सत्रह-सत्रह अक्षर होते हैं। 
     अब प्रश्न उठता है श्वास का विराम/यति 
कहाँ करें ? तो इसके उत्तर में आचार्य ने कहा
है कि- रसै: रुद्रैश्छिन्ना अर्थात् रस एवं रुद्र की
संख्या पर श्वास का विराम अर्थात् यति होगा।
    प्रथम यति रसै: पर अर्थात् यहाँ पर रस का
प्रयोग पाकशाला में प्रयुक्त रसों तिक्त, कषाय, 
लवण, मधुर, अम्ल एवं कटु ये छः रस हैं।इस
 प्रकार छः वर्णों पर प्रथम यति होगा ।
     द्वितीय यति अर्थात् विराम 'रुद्र' अर्थात् रुद्र 
भगवान शंकर के  स्वरूप के  जो नाम है वे 11 
हैं जो शिवपुराण के अनुसार निम्नलिखित हैं..
कपाली,पिंगल,भीम,विरूपाक्ष,विलोहित,शास्ता,
अजपाद,अहिर्बुध्न्य,शम्भु,चण्ड और भव।
इस प्रकार द्वितीय यति प्रत्येक पाद/चरण के
अन्त में17वें अक्षर पर होगा।
     इसका तात्पर्य यह है कि शिखरिणी छन्द के 
प्रत्येक चरण के प्रथम छठें अक्षर के बाद
श्वास रुकती है और द्वितीय 11 अक्षर के बाद 
अर्थात् चरण के अन्त में श्वास रुकती है।
इस प्रकार कुल मिलाकर शिखरिणी छन्द के में 
कुल 17×4=68 वर्ण होते हैं।
परिभाषा=
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में एक यगण 
(।ऽऽ), एक मगण (ऽऽऽ), एक नगण (।।।), 
एक सगण (।।ऽ), एक भगण (ऽ।।), एक
 लघु (।) एवं एक गुरु (ऽ)  के क्रम में वर्ण
हो तथा छठे और ग्यारहवें वर्णों पर यति हो
तो  शिखरिणी छंद कहते हैं।
उदाहरण -  
   । ऽ ऽ   ऽ ऽ ऽ  ।।।  । । ऽ     ऽ । ।     । ऽ
1."न मन्त्रं नो यन्त्रं, तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
  न चाह्वानं ध्यानं, तदपि च न जाने स्तुतिकथा ।
  न जाने मुद्रास्ते, तदपि च न जाने विलपनं,
  परं जाने मात, स्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ।।”
     उक्त  श्लोक के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण
की ही तरह एक यगण (।ऽऽ), एक मगण (ऽऽऽ),
एक नगण (।।।), एक सगण (।।ऽ), एक भगण
(ऽ।।), एक लघु (।) एवं एक गुरु (ऽ) के क्रम में
वर्ण हैं तथा छठे और ग्यारहवें वर्णों के बाद यति
 है इसलिए इसमें शिखरिणी छंद है।
हिन्दी:
     हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं 
परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।
उदाहरण:
    यहाँ एक अति सुंदर भारत वंदन 
का उदाहरण है:
 । ऽ ऽ    ऽ ऽ ऽ   ।।।  । । ऽ  ऽ । ।  । ऽ
बड़ा ही प्यारा है, जगत भर में भारत मुझे।
सदा शोभा गाऊँ, पर हृदय की प्यास न बुझे।।
तुम्हारे गीतों को, मधुर सुर में गा मन भरूँ।
नवा माथा मेरा, चरण-रज माथे पर धरूँ।।1।।
यहाँ गंगा गर्जे, हिमगिरि उठा मस्तक रखे।
अयोध्या काशी सी, वरद धरणी का रस चखे।।
यहाँ के जैसे हैं, सरित झरने कानन कहाँ।
बिताएँ सारे ही, सुखमय सदा जीवन यहाँ।।2।।
   उक्त पद्य  के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण
की ही तरह एक यगण (।ऽऽ), एक मगण (ऽऽऽ),
एक नगण (।।।), एक सगण (।।ऽ), एक भगण
(ऽ।।), एक लघु (।) एवं एक गुरु (ऽ) के क्रम में
वर्ण हैं तथा छठे और ग्यारहवें वर्णों के बाद यति
 है इसलिए इसमें शिखरिणी छंद है।

।। धन्यवाद।।

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