गुरुवार, 30 जुलाई 2020

।।। पुष्प ।।।flower hindi poem

अमर कथा पुष्पों की एक,देश-काल में मर्म अनेक।।
नाम अनेक काम अनेक,देश अनेक पर भेष एक।।
रंग अनेक रूप अनेक, जाति अनेक गन्ध अनेक।
काया भी अनेक पर इनकी सुभ्रता पर लट्टू अनेक।।1।।
अमर सदा पुष्पों की बात कोमल मधुर इनकी जात।
लता बृक्ष पादप पर खूब कहते खिल खिलाकर बात।।
देश- विदेश का भेद नाम भेद भी हो यहाँ-वहाँ तात।
खिलें सर्दी गर्मी जाड़ा वसन्त हेमंत शिशिर बरसात।।2।।
कहीं बेल तो कहीं लता भावुक मधुर मनोहर रिश्ता।
गूलर का फूल होकर भी निभाना है यहाँ हर रिश्ता।
फूल सूंघ कर रहना पड़े रह लें न तोड़े कोई रिश्ता।
अपराजित रहना सच कहना सिखाये अपराजिता।।3।।
परिवार गाँव हर राज्य देश हैं बहु पुष्पों के गुलदस्ता।
फूल सुमन कुसुम मंजरी प्रसून पुहुप गुल नहीं सस्ता।
पंचमुखी सदाबहार नयनतारा सदाफूली से कर रिश्ता।
फूलों सह फल बृक्ष यहाँ भरें जग जीवन में पिश्ता।।4।
राष्ट्रीय पुष्प कमल हमारा सिख अनेक हमें देता है।
श्वेत नील रक्तादि वर्ण में सदा हमें एकता दर्शाता है।
उड़ीसा कर्नाटक जम्मू-काश्मीर हरियाणा बताता है।
हमारा तू ही राज्य-पुष्प जो जग लक्ष्मी को भाता है।।5।।
बहु कीट-पतंगे को बहु पुष्प आकर्षित कर लेते हैं।
मधुमख्खी हो या चमगादड़ सबको पराग ही देते हैं।।
निज अमृत से कितनों को नित ये नव जीवन देते हैं।
सुखी दुःखी कैसा भी मन हो सदा शान्ति भर देते हैं।।6।।
हम पुष्प सभी काम में हर जन सेवा हेतु समर्पित हैं।
शरीरिक-मानसिक रोग भगा जीवन करते सुरभित हैं।।
मधुरस बाग-बगीचों के हम वास्तुदोष सुदूर भगाते हैं।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी जीवन को बहुरंगी कर देते हैं।।7।।
हम को छू कर देखो जगत तनय हम तुम्हरे जैसे हैं।
दया माया ममता मधुरिमा हम प्राण वायु सरीखे हैं।।
रामानुज की बात पवनसुत की करामात समझते हैं।
धौलागिरि से स्वर्ण नगरी पहुँच प्राण वायु भरते हैं।।8।।
पारिजात इन्द्र बाग का सत्यभामा को सिख देता है।
फूल फूल मानव के जीवन में ज़हर भी घोल देता है।।
चम्पा चमेली मोगरा जूही से नर सौम्यता पा लेता है।
रातरानी सा पुष्पों से नर संतापहारी इत्र ले लेता है।।9।।
सीता को छाँव दिया अशोक हर लिया शोक सभी।
श्वेताम्बुज निलाम्बुज आम चमेली अशोक ये सभी।।
कामदेव के अद्भुत पंच पुष्प रखते अद्भुत गुन भी।
अर्जुन अगत्स्य अमलतास गुड़हल है नर रूप भी।।10।।
लीली-लोटस की गाथा अद्भुत जग की व्यथा है।
दो की लड़ाई में तो तीजा सदा लाभ को पाता है।।
रजनीगंधा ग़यी कमल हारा गुलाब जीत जाता है।
पुष्प राज का ताज पहन गुलाबी जीवन पाता है।।11।गुलदाउदी सेवन्ती शतपत्री सेवन्तिका का राज।
इस्रायल सरकार ने मोदी नाम बनाया सरताज।।
चंद्रमुखी नसरीन बहुरोगहारी आवै सबके काज।
सेहत का खजाना गुड़हल धरा पर बिखेरे साज।।12।।
लाल पीला नीला गुलमोहरी गुलमोहर यहाँ।
खेजड़ी राज का राज पेड़ रोहिड़ा फूल जहाँ।।
बुंदेलखंड का गौरव ढाक का तीन पात वहाँ।
उत्तर पुष्प टेसू किंशुक पलाश ब्रह्मबृक्ष रहाँ।।13।।
पुष्पों की जीवंतता से जल भून मृतात्मा कहा।
मरना ही शाश्वत तो तुम क्यों खिलखिला रहा।।
खिलना ही जीवन है इस हेतु खिलखिला रहा।
मृत्यु डर रे कायर तू मुझे कायरता सिखा रहा।।14।।
गेंदा हजारों रंग पंखुड़ियों से फूलों का कहता है।
गर्व हमें जो सब बंधन तज सबके लिए रहता है।।
पुष्प हार हार बन नित मानव को प्रेरित करता है।
वही मानव महामानव जो हर हाल हर्षित रहता है।।15।।

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

।।। चन्दन ।।। chandan hindi poem

सुन्दर सहज सलोना तरूवर हर हर का मन लेता।
राग-द्वेष से मुक्त निज तन विषधर को सुख देता।।
कठिन कुचाह कुमति काष्ठ मन गेह नेह कर लेता।
चन्दन ही परहित निज देह गेह नेह सब तज देता।।1।।
जीवन धन्य करै चन्दन चन्दन बन सदा रहता है।
मणिधर विषधर जन मन भी चैन सदा भरता है।।
दनुज-मनुज हित निज तन ताप सदा सहता है।
चन्दन कोयला बन भी शान्ति सदा कहता है।।2।।
आतप वर्षा छाँव भले हों निजता नहीं तजता है।
आन बान मर्यादा पर कट काटक गन्ध भरता है।।
देव मनुज दनुज तन मर कर भी सुगन्ध करता है।
चन्दन-जन भी चन्दन सा खुशबू सर्वदा फैलता है।।3।।
भारत का कण-कण गाता चन्दन माँ की गाथा है।
हम क्या चन्दन तो देवों के भी शिर चढ़ जाता है।।
भूत-प्रेत सह सब भूतों को चन्दन बहुत सुहाता है।
जन्म-मरन तक हर पल नर का चन्दन से नाता है।।4।।
चन्दन तिलक भाल मानव दिव्य जन बन जाता है।
चन्दन से सीख सिख ले गुनी सर्वत्र पूजा जाता है।।
सीख तुम्हारी अद्भुत चन्दन माटी को महकाता है।
निज माटी चन्दन हित नर निजता भूल जाता है।।5।।
चन्दन का वन्दन करें जगत तनय मेवाती नन्दन।
निज गुन हर भारत-लाल को बनाओ अभिनन्दन।।
कभी भारत की धरा पर न हो चन्दन का क्षरण।
हे मलयाचल भारत का हो अचल मलय वन्दन।।6।।

सोमवार, 27 जुलाई 2020

।। आशा ।।hope hindi poem

अमर ब्रह्म शब्द अमर आत्मा-परमात्मा अमर।
अटल भीष्म प्रतिज्ञा जैसी आशा-ज्योति अमर।।
जन्म-मरन सा आशा-भाव की यहाँ कीर्ति अमर।
आशा ही जीवन है जन-जन में यह भाव अमर।।1।।
जननी-जनक की परिकल्पना नव आशा संचार है।
हौले-हौले प्रेम-पथ यहाँ नव जीवन का आगाज है।।
आशा-डोरी है सशक्त तो मनवांछित परिणाम है।
आशा का दामन सुख शान्ति का अद्भुत परिधान है।।2।।
आशा के बल बुते नर ने जीता अद्भुत संग्राम है।
नई ऊंचाई चढ़ाना है तो आशा बल का धाम है।।
नव-निर्माण नव-अन्वेषण में आशा ही प्रधान है।
बड़े-बड़े अग-आग के आगे आशा ही तो जान है।।3।।
नाग पाश या ब्रह्मास्त्र हो आशा ने सबको जीता।
पितामह और गुरुदेव को आशा ने मनसे जीता।।
दैहिक दैविक भौतिक को आशा ने रबसे जीता।
कालचक्र के कुचक्र को आशा बल से नरने जीता।।4।।
कर्म व्रती को आशा ने हर पग पर आयाम दिया।
आशा के बल वामन ने बलि से तीनों लोक लिया।।
आशा बल वनवासी ने अजेय अद्भुत संग्राम किया।
आशा बल मानव ने अब जल थल नभ नाप लिया।।5।।
अद्भुत बल आशा को छोड़ कभी न कापुरुष बनो। कायरता त्याग शार्दूल बन भीरु भेड़ पर वार करो।।
हे नर-सिंह निराशा छोड़ देदीप्यमान मार्तण्ड बनो।
होगी जय निश्चित अब आशा बल प्रभु विश्वास करो।।6।।

रविवार, 26 जुलाई 2020

।। शिव-स्तुति ।।shiv stuti hindi poem

जय महेश जय शिव शंकर।
              भोले-भण्डारी प्रलयंकर।।
महादेव देव परमेश्वर।
               आशुतोष गौरीश सर्वेश्वर।।1।।
भूतनाथ जो विश्वनाथ हैं।
              काशीश जो पशुपतिनाथ हैं।।
रामेश्वर जो ओंकारेश्वर हैं।
               महेन्द्रनाथ जो विश्वेश्वर हैं।।2।।
गले भुजंग नीलकंठ तेरे।
         भाल बाल चंद का बसेरे।
जटा-कटाह गंगा तरे।
          दीन हीन पर कृपा-रज बारे ।।3।।
नागेन्द्र हारी त्रिपुरारी।
           त्रिनेत्रधारी असुरारी।।
भस्माङ्ग धारी बाघाम्बरी।
          डमरू धारी चर्माम्बरी।।4।।
श्वेतार्क पूजित नंदीश्वर।
           राम स्थापित रामेश्वर।।
कैलाश वासी नागेश्वर।
           त्रिशूल धारी महेश्वर।।5।।
सहज सरूप  सदा सुहावै।
          दरस करत जन हर्षावै।।
पापी पाप मुक्त हो जावै।
          भक्त मनोवांछित फल पावै।।6।।
भोले अद्भुत संसारी।
        दो पुत्र गण द्वारी द्वारी।
अमरित माहुर संग धारी।
        नित नव सिख ले परिवारी।।7।।
नाग मूस मयूर नंदी।
        गंगा-पार्वती संगी।।
सिंहवाहिनी बामांगी।
         रामभक्त शिव भस्माङ्गी।।8।।
हे परमेश्वर मम शिव कर।
        हे घुश्मेश्वर जन दुःख हर।।
हे गौरीश्वर सदा शं कर।
       हे कालेश्वर  आनन्द भर।।9।।
मम मन-मधुप शिव रूप-पराग पय।
        गाता रहे हर हर महादेव नित नय।।
आशीष-रज डूब जाय मय।
          सदा गाते रहे शिव शंकर जय जय।।10।।

      



         


।।समय।। time hindi poem

समय तू बड़ा निराला है,
       सावन-भादव तू मधु-माधव है।
दिन उजला रात काला है,
       साधु-साधु तू दानव-मानव है।।1।।
रूप अनोखा अद्भुत तेरा,
        तेरे कारण जग में है तेरा-मेरा।
तू अनंग है माया का फेरा,
        है तू कभी शाम कभी सबेरा।।2।।
तू दायां-बायां कदम चाल है,
         एक आगे तो एक पीछे है।
एक पीछे तो एक आगे है,
         नर आगे-पीछे तेरे भागा है।।3।।
तू यथार्थ तू सपना है,
         तू पराया तू अपना है।
तू कथा तू कल्पना है,
         तू जल्पना तू अल्पना है।।4।।
भागता तू भगाता तू,
          दिखता तू दिखाता तू।
सीखता तू सिखाता तू,
          मरता तू मराता तू।।5।।
सुमन कन तू हीरा है,
          सिख दे तू हरता पीरा है।
सहज सरल तू वीरा है,
          सदा शान्त सिंधु धीरा है।।6।।
चाहे जो सो करे ,
       जो करे वो भरे।
और करे और भरे,
        लोभ-मोह  से परे।।7।।
तू मनमौजी साथी रे,
         देखो पारा-पारी रे।
कभी ऊपर कभी नीचे रे,
        कभी सवार कभी सवारी रे।।8।।
कभी सलोना कभी सलोनी,
        रूप बदलता कोना-कोनी।
सुख मय सूरत कभी है रोनी,
         हम तो समझें टोना-टोनी।।9।।
समझ से परे खेल तेरे,
         मारग खोले देर-सबेरे।
हर मारग हैं तेरे चेरे,
           तू सबका है सब है तेरे।।10।।
        

 

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

।।काँव-काँव।। crowing hindi poem

यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।
सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।
रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।
निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।
काँव-काँव ऐसा स्वर है जो बरबस सुन जाता।
सामान्य रूप की चर्चा में नहीं किसी को भाता।।
तेरी-मेरी में उलझ-सुलझ मानव मन पछताता।
दानव-मन मन लड्डू ले है काँव-काँव करवाता।।2।।
दूजे के सुख-शान्ति से दुःखी कौन है होता।
दूजे के दुःख-दावानल से सुखी कौन है होता।।
दूजे के नित कच कच से चैन कौन है लेता।
काँव-काँव करता वह कभी नहीं चैन से सोता।।3।।
काँव-काँव कर अस्त-व्यस्त पाते मन में शान्ति।
यहाँ जहां में बहम फैला फैलाते अद्भुत भ्रान्ति।।
निज स्वार्थ सिद्धि हेतु तैयार करने को क्रान्ति।
नर कौवे शान्ति गौरैये के लिए हैं व्यथा भाँति।।4।।
काँव-काँव कर जीवन-ज्योति बुझाने आतुर रहते।
अपनों से सम्बंध नहीं पर पर से संबंध न रखते।।
निष्ठावान कहाँ जहां में ऐसे कुत्सित को करते।
काँव-काँव से दूर यहाँ तो सद मानव ही रहते।।5।।

 

कैसे कैसे जीव यहाँ how many kinds of creatures here hindi poem

हम धरती के जीव जहाँ
कैसे कैसे हैं लोग यहाँ।
जलचर का जल में जहां
नभचर हैं नभ में महां।।1।
मत्स्यावतार की व्यथा
नव जीवन की है कथा।
कूर्म पर सागर मथा
वाराह महि मानव गथा।।2।।
नरसिंह हो कर प्रगट
निवारे नर भक्त संकट।
वामन जन्म-कर्म विकट
त्रिलोक को किया नर निकट।।3।।
परसु के रूप,रंग-ढंग
देख जन-जन होवे दंग।
राम पुरुष उत्तम सब अंग
पाता जन नित निज संग।।4।।
कृष्ण कथा हरती व्यथा
प्रेम-सागर को मथा।
धर्म-ध्वज की स्थापना
कलि का नित नव कल्पना।।5।।
सिख लो जग लोग भली
प्रथम लाभ लिया मछली।
जल से जीवन इस थली
नर-अली हेतु खिलाये हर कली।।6।।
मछली सा बनना 
है आतप-वर्षा सहना।
अबके लोग सीखें ऐसा रहना
जल-जीवन माने सब कहना।।7।।
कछुआँ उभयचर से ले सीख
कठिन काम जन जन में दीख।
सूअर अस्वच्छ स्वच्छ सीख
न निकालें कभी मेन मीख।।8।।
नर-सिंह आज-कल गली-गली
दबायें दबले-कुचले को हर थली।
फितरत हमारी ही नहीं भली
नरसिंह हो तो भला करो हर थली।।9।।
वामन का हर काम-धाम
जीव-जीवन बनाता ललाम।
परशुराम का नाम
दुरवृत्ति नाशक बन सकाम।।10।।
राम-श्याम  सम नहि दूजा
जीव जहां का करते पूजा।
आज राम-श्याम को बना दूजा
रावन-कंस बन नर पाते पूजा।।11।।
थलचर  जल नभ में भी
बनावे आसियाना सभी।
निज हित रत हो अभी
बुला रहे हैं निज नाश भी।।12।।
कैसे कैसे हम लोग यहाँ
पाल रहे हैं नित नव सपना।
देव सम हम कैसे कहाँ
लूटे जब अपनों को अपना।।13।।
पशु नहीं हम हमसे पशु अच्छे
सत्य-निष्ठा को जब बदलते।
गीदड़ शेर लोमड़ी कुत्ते अच्छे
देख नर व्यवहार हैं सिसकते।।14।।
ईमान सभी का सब जानते
देव दनुज मनुज को मानते।
रिश्ते-नाते बहुत बनाते
काम आते अपनी शर्त मनवाते।।15।।
अद्भुत हुनर वाले हैं
अद्भुत चुनर वाले हैं।
अद्भुत शक्ति वाले हैं
अद्भुत भक्ति वाले हैं।।16
अद्भुत हैं अद्भुत मानव यहाँ
 भाँति-भाँति के जीव जहाँ।
पशु-पंछी सा अनुराग कहाँ
राग-तड़ाग है निवास जहाँ।।17।।









शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

हाउस वाइफ house wife hindi poem

हाउस वाइफ
संवेदना सहित सोचें इनकी लाइफ।
नौकरी पेशा हाउस वाइफ
इनकी जिंदगी दुधारी नाइफ।।
लक्ष्मी,सरस्वती पार्वती भी
सीता भी राधा  भी।
नव दुर्गा महा काली भी
ये हैं घर वाली भी।।
ललना वाली चकला वाली
बेलन वाली भी।
भीतर वाली बाहर वाली
परिवार वाली भी।।
निज चिंता चिता बना
पर पर जलने वाली।
घर को परिवार बना
उस पर मरने वाली।।
हानि-लाभ अपना नहीं
जीवन सुख सपना सही।
निज दुख देखना नहीं
परिवार हित मरना मही।।
सूर्य चंद्र सा चलना
धरती सा सब सहना।
शेरनी सा रहना
ममता-प्रेम का गहना।।
पुजारिन हैं पूजा हैं
दिया हैं बाती हैं।
मन्दिर हैं मूर्ति हैं
जीवन हैं ज्योति हैं।।
सुबह से शाम तक
आई हैं माई हैं।
अंधरे से प्रकाश तक
रिश्ते निभाई हैं।।
संभाल कर हर तिनका
मार कर अपना मनका।
कुछ नहीं हैं निजका
सर्व न्यौछावर कर तनका।।
संभालती परिवार
बिना किसी भार।
सँवारती घर-द्वार
होकर तार-तार।।
जब रोटी पकाती
प्यार उड़ेंन जाती।
रखती न थाती
रखती बड़ी छाती।।
परिवार को खिला कर
खुद खाना खाती।
सबकी क्षुदा दूर कर
भूखी भी सो जाती।।
अद्भुत हैं वाइफ
अविस्मरणीय हैं।
सँवारती हैं लाइफ
वंदनीय हैं।।




      








सोमवार, 13 जुलाई 2020

प्रकृति-पुरुष nature & human being hindi poem

 दोहा:-बंदउँ शंकर सुवन,कृपासिन्धु महावीर।
         प्रकृति-पुरुष गाथा,महके हर हर तीर।।
प्रकृति-पुरुष निर्माता,इनकी गाथा कौन कहे।
माया-जीव सब जाने,इन्हें न जाने कौन अहे।।
जगत तनय मेवाती नंदन,निज विचारों में बहे।
छोटे से छोटा है मोटा,निज कर्मों से सब लहे।।1।।
गज केहरि हरि हरि गुन गाहक हर चाल चले।
नर-मादा बचन बध हर जीवन सुबह शाम बने।।
नित नूतन नव रस ताल छ्न्द नव नव नमन करें।
 नद नदी नाद से रसमय सागर जीव जीवन भरें।।2।।
सावन मनभावन प्रकृति धरा का नित श्रृंगार करे।
भाँति भाँति अलौकिक आभा प्रकृति से खूब झरे।।
भादव भार भुवन भरका भर मन मह ललक भरे।
नदी-नाद सब ताल-तलैया उमगत है चहु ओर खरे।।3।।
कनक देह  प्रकृति गज गामिनी मन छोह छरे।
शुक-पिक सारंग मैना मधुर-मधुर स्वर गान करे।
ताल-तलैया नदी-नाल में सफरी बहु तरङ्ग भरे।
मन-मयूर नित नव-नव नाच-नाच नयन नीर धरे।।4।।


रविवार, 12 जुलाई 2020

।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है।
खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।।
ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है।
मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1
यह हकीकत है माया वश इंसान मानवेतर हो जाता है।
प्रकृति-नटी के रुप-जाल नर कठपुतली हो जाता है।।
आशा-रथ सवार निर्बल रथी भी महारथी हो जाता है।
कनक कामी कदाचार करने को कटिबद्ध हो जाता है।।2
यह हकीकत है जहां संघ में सामर्थ्य हर हाल रहता है।
दिखावा में उलझ केवल जन-सामान्य ही तड़पता है।।
असामान्य कायदा-कानून को निज दासी समझता है।
जो नर जैसा होत वैसा ही हर दूसरे को समझता है।।3।।




शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।
जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।
विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।
पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।
काया कंचन मिट्टी को आखिर क्यों इतना मान दिया।
पग-पग पर निज हित रह आखिर क्यों तू जान दिया।।
जनमेजय के नाग यज्ञ ने किसका है कल्याण किया।
शान्ति न माना जिसने उसने मानव को तबाह किया।।2।
आखिर क्यों दिन-रात सूर्य-चन्द्र निज पथ सजे रहें।
दे उपहार हमें सुख-शांति का कर्तव्य पथ पर बने रहें।।
नाकों चना चबाने शांति बनाने कर्म पथ पर अड़े रहें।
अपनी संवेदना को जगा हम शांति हेतु तो खड़े रहें।।3।।
आखिर क्यों हर काल काल शिर पर मंडराता है।
श्वाशों का आना-जाना जीवन राह चलना बताता है।।
जीवन हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन राग सुनाता है।
नित कर्म करो आगे बढ़ो अद्भुत मन्त्र सिखाता है।।4।।
आखिर क्यों मानव मानव ही नहीं रह पाता है।
मद मोह मत्सर मार मानव मन मही मर जाता है।।
सुबह से शाम तक एक सा नित काम पड़ जाता है।
अपनों से परायों सा परायों से अपने सा हो जाता है।।5।
आखिर क्यों कामना हीन भूत भूत बन जाता है।
जन्म कर्म के बन्धन से जन मुक्त नहीं हो पाता है।।
पी कर विष-वारूणी कदम नहीं भू पर रख पाता है।
सत्ता मद में चूर नर मानवता ताक पर रख देता है।।6।।
आखिर क्यों सब पाठ नर दूसरों को ही पढ़ाता है।
निज पर बात आते ही सब पाठ स्वयं भूल जाता है।। प्राणी प्रकृति प्रकृति संग भी खेल खेल जाती है।
दया माया ममता मधुरिमा मन मसोज रह जाती है।।7।।
आखिर क्यों हर जीव-जन्तु हमकों ज्ञान सिखाते हैं।
तोता-मैना कागला हंस बगुले कुत्ते पाठ पढ़ाते हैं।।
औरों की तो बात क्या बैल-गधे सिख दे जाते हैं।
कारण सच कहूँ जब मानव मानव नहीं हो पाते हैं।।8।।

 




गुरुवार, 9 जुलाई 2020

।।जिन्दगी।। life hindi poem

भाग-दौड़ है जिन्दगी,
सरस राग,
विराग की भावना 
राग की स्थापना।
आज में जीना
कल का त्यागना।।
अति को छोड़ना
सम्बन्ध जोड़ना।
सहज सदा रहना
सहन तो करना।।
आशा निज से पर से
पूरी भी अधूरी भी सही।
निराशा कहीं से
मिले स्वीकारो भी सही।।
पी पी को गले लगा
भेद को पहचानो तो सही।
आशा को गले लगा
निराशा को भगाओ तो सही।।
पी माँ का 
ढूध को पिलाता है।
पी गाड़ी का
राह को बनाता है।।
पी अपमान घूट
जीवन को सहज बनाता।
पी मान का घूट
जीवन को सदा उलझाता।।
पी कालकूट यहाँ।
बन जा सहज सरल शंकर।
पी अमृत इस जहाँ
न बन कभी कहीं प्रलयंकर।।
पी जीवन पथ-गरल
जीवन होगा पग-पग सरल।
पी राग-विराग-अनल
हो जाय सब सदा विमल।।
शब्दों के साथ
अपनापन का नित हाथ।
बिन शब्द नवा माथ
सबको अपना बना हाथों-हाथ।।
पत्ते से भी
तो जड़ से भी।
निज से भी
तो पर से भी।।
समान रहे
बैर भाव त्यागकर।
साथ-साथ रहे
सब कुछ भूलाकर।।
बन जाओ
जो भी बनाना पड़े।
हट जाओ
जहां से हटना पड़े।।
डट जाओ
जहाँ भी डटना पड़े।
सट जाओ
जहाँ बजी सटना पड़े।।
अंधा बनो
देखकर अनदेखा करो।
बहरा बनो
सुन कर अनसुना बनो।।
गूँगा बनो
बनते रहो जो-जो बनो।
साधु बनो
बनना है सद गृहस्थ बनो।
जिंदगी सहज है
जिंदगी असहज है।
जिंदगी अमृत है
जिंदगी माहुर है।।
पी पी कर जी
सब जीवन का है।
पिला पिला कर जी
सब इसी धरा का है।।
रुकना 
रुक-रुक कर चलना।
थकना
थक-थक कर सम्हलना।।
सावन सा
जीवन में फुहारे हैं।
वसंत सा
जीवन में बहारे हैं।।
रुकती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।
कटती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।।
कट रही जिन्दगी
कह देते सहज सब आज।
बनी रही जिंदगी
कट जाय सहज सब साज।।
जिंदगी है जीना
सिखाते यहाँ जीव हैं।
सरबस है पीना
पिलाते जहाँ शिव हैं।।
आशा अमर धन
जीवन के महा समर में।
रख आश विश्वाश
जीवन जीतेंगे हर रन में।।







सोमवार, 6 जुलाई 2020

।।बादल।।cloud hindi poem

हे बादल!गरज गरज तू बरस बरस।
नव जीवन प्रकृति-पुरुष का तू सर्वस।
धन-धान्य धरती धरती पा तेरा रस।
जल जीवन तू जन जीवन रस।।
प्रकृति नटी पल पल छिन छिन है सज रही।
तू धरती का पालक यह जन जन से कह रही।
नर-बादल छाए हुए हैं जो उन्हें मान है दे रही।
नर नरत्व मत छोड़ मेरे बादल से तू सिख सही।।
बादल तेरा गर्जन-तर्जन आशा-बीज धरा का।
तेरा हर दर्शन बहु रुप दिखाता है जन-मन का।
तू भूमि गगन तू वायु अनल तू प्राण हर प्राणी का।
तू मेघ नहीं तू दूत सही इस धरती के हर नर-नारी का।।
नीरद तू मानव जीवन दाता सुख-शान्ति भ्राता।
अद्भुतं तेरी माया अद्भुत तेरी काया जन त्राता।
सावन-भादो माह बिन कौन जहां है रह पाता।
इंद्र-धनुष की अद्भुत छठा तू ही है हमें दिखाता।।
महाकाल महाबली महारस महि मह महकाता।
मन-मयूर मतवाला हर जगत में तेरा गुन गाता।
हे नर-अम्बुद!वारिद से तू सहज सरल सिख पाता।
कथनी-करनी की तरनी तू सहज आज चढ़ जाता।।
जो गरजते हैं ओ बरसते नहीं है पुरानी रीति।
गरजते हैं बरसते हैं तोड़ कर सर्वदा भय-भीति।
नव नव बादल दिखाते आज यहाँ नव नव नीति।
नाश त्याग विकास का हाथ पकड़ कर नव प्रीति।।






रविवार, 5 जुलाई 2020

।।यहाँ-वहाँ की।।from here & there hindi poem

हमअब बात करें,
आज और कल की।
अपने भविष्य की।
भूत की वर्तमान की।।
घर वार,सरकार की।
अपनों की,परायों की।
जन-जन की जहां की।
हर थल की,यहाँ-वहाँ की।।
समाज की परिवार की।
राज राज की देश की।
स्वदेश की स्वदेशी की।
कथनी-करनी की।।
शुरू करें
जीवन से जीवन की।
सबके लिए सबकी।
अबके लिए अबकी।
तबके लिए तबकी।।
कथा मानव की।
सुख-दुःख की।
दिन-रात की।
सत और तम की।
सतयुग देखा नहीं।
त्रेता राम-रावन सही।
द्वापर की जाने मही।
कल की बखाने बही।।
युगों-युगों की गाथा।
है सब मानव गाता।
सुधी जन आज बताता।
पंडित कल को रिझाता।।
हम तो निज को भाते हैं।
निज पर ही इठलाते हैं।
पर पर पर रौब जमाते हैं।
औरों को खूब लुभाते हैं।।
संवेदना विहीन संववेदना अब।
कोरोना त्रस्त मन रोता कब।
शक्ति को हम पूजे जब।
भक्ति भगवान भवन तब।।
विचार तो आज-कल झाड़-फुस सा।
बरसती मेढ़क-कुकुरमुत्ते सा।
सकुन अपसकुन राज सा।
दुलारा दमदार दामाद सा।।
जो कल था ओ कल होगा।
जो आज है वह भी कल होगा।
कल आज आज कल होगा।
जगत रीति होगा जग प्रीति होगा। ।
सावन मन भावन ही होगा।
जब मानव मन पावन होगा।
दुःख-राका का जावन होगा।
सुख-दिवा का आवन होगा।।
कल काम आज आराम।
आज काम कल आराम।
तो फिर कब होंगे सब काम।
छोड़ दो फिर सब राम के नाम।।
राम-श्याम कल काल आज तिलक भाल।
मानवता की अद्भुत ढाल।
आज-कल के हैं मिसाल।
थर्ड आई हैं संसार ताल- जाल।।
तब जाति कर्म आधारित।
अब जाति जन्म धारित।
तब कर्म कर्म का मर्म।
बनाता सब युग धर्म।।
अब जन्म का सब काम।
काम का नाम हुवा तमाम।
रिश्ते नाते करते आराम।
नहीं हमें अपने से विश्राम।।