।। बताते हमारे ढंग,खास पन्द्रह छंद।।
अंगना की ज्योति फैल, अंगना स्वरुप देख!जिस तरह रवि ज्योति देख, फैलती अरुण रेख !!१!!
बौरौ का जैसे भ्रमर ,करे सदा रस पान!
वैसे ही नर रुपों की,करता है मधु पान !!२!!
जटाकटाह युक्त देव,भागिरथी धारिणी!
बाल शशांक युक्त भाल,हौं मोहि उद्धारिणी !!३!!
सत्यासत्य प्रियाप्रिय हि,क्रूराक्रूर संग्रहि!
व्यय अव्यय गुनावगुनी ,वेश्या व नृपनीति हि !!४!!
कर दो कान्ति युक्त मुझे,हे देवाधि महान!
मिले शुभ कंचन कामिनि,होवे नित सम्मान !!५!!
अचेतन दिनमणि जैसे,नहि सहे सूर्यपाद!
तो तपस्वी नर कैसे,सह सकता परमाद !!६!!
विजयी होय पुण्यात्मा,रस व्यक्त कवीश्वर!
भय नहीं जिनके यश में,जरा जरा मृत्युकर !!७!!
अज्ञानी ज्ञानी प्रसन्न, आसानी से होय!
प्रसन्न न होय ब्रह्म से, जो नर अल्पज्ञ गोय !!८!!
ब्रह्मकृत मौन आवरण, सदा मूर्खता गोय!
विद्वत समाज में सदा,मूर्खाभूूूषण होय !!९!!
कंचन बरन की बुलबुल, काहे को मनहीन!
मन में है यह सोचती,उल्लू से क्यो हीन !!१०!!
जॉत-पॉत की ऑच यह,करेगी कौन काम!
मानवता डुबोयेगी,तब होगी यह शान्त !!११!!
आचरण की दुहाइयॉ,उपदेशों तक लिप्त !
पुलिस पुतरिया पातकी,किसके है ये मित्त !!१२!!
जन जन की नीद हराम,यह किसका है काम!
कुर्सी तश्करी फेरी,नेता नमक हराम !!१३!!
शिक्षकों की अध्यापकी,छात्रों की पढाई!
खुल जाती है कल्लई,जब परीक्षा आई !!१४!!
खुद को धिक्कारे शिक्षा,प्रतिभा खङी हताश !
राजनीति पंगु होगी,ढोते-ढोते लाश !!१५!!
।।धन्यवाद।।
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