रविवार, 30 दिसंबर 2012

हनुमान वन्दना

जय जय जय हे राम भक्त बजरंग बली!
सदगति दायक कष्टनिवारक फैली है बात गली-गली!!
मनमोहक तन कंचन वरन वामकाध उपनयन धरी!
सुमिरत ही जन हो सनाथ जय जय जय हे गदाधरी!!
रुद्र अंश कपि रुप ले हरि सेवा दे सेवा ज्ञान भरी!
सुर रक्षक असुर विनाशक मुग्धकारी रुप धरी!!
योगी-यती पा साथ होते सनाथ थली-थली!!१!!जय------
छूटपन से ही मातु-पिता जन सेवा पावे खरी-खरी!
गुरु घर सब हित है निशाचरी माया हर पल हरी!!
ज्ञान पिपासु नवनिधि दायक लेवे सूर्य ज्ञान खरी-खरी!
सूर्य-शनी से जनहित में वरदान कोटिक है प्राप्त करी !!
सुमिरत ही नाथ तुम्हे कोटिन की है विपदा टली!!२!!जय------
विनती हमारी हर पल हरे हर भक्त की रोग व्याधि सगरी!
ध्यान धरे तेरा जो उसके परिजनो की है हर विपदा टरी !!
धन-मान बढे जन का नित हीजो है प्रभु की भक्ति करी !
हारी बाजी जीते ही वह जिसने है आस आप से करी!!
तोङते घमंड पल मे हर प्रिय का होवे जब अहंकार बली!!३!!जय------
धर्महित भीम भाई सारथी हरि के रथी का थामा ध्वज!
लो सौप दिया तुमको मैने भी है अपना युग ध्वज!!
पावे न मात ले ज्ञान संस्कार होवे आदर्श ये कुल ध्वज!
राष्ट्र हित रत सर्वदा फैलाये गर्व से राष्ट्रध्वज!!
राज्य प्रान्त शहर गाव सङक गली मे हो न कोई खलबली!!४!!जय------
                        

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

!!कथनी करनी!!


कथनी करनी देखो जग के,
पल-पल, छिन-छिन,नव-नव रुपों में!
एक हो जिनकी दोनो उनकी गणना मूर्खों में,
बदले दोनो पल-पल वो होशियार चालाको में!
भय रखना ही होगा परा शक्ति का अपने अपने मन में,
क्योकि शुभ नही ऐसी कथनी करनी कभी सभ्य समाजो में!
सोच बनी इसके प्रति अच्छी है जिनके जिनके मन में,
नहीं डरते वे किसी से किसी भांति इस जग में!
मूर्खों ने अच्छो को मूर्ख मान लिया है स्व मन में,
क्षणिक शान्ति सुख लाभ तुष्टि पाते पल-पल में!
ऐसो की स्थायित्व खोज पूर्ण न हो इस जग में,
पूर्ण होगी जो दोनो को एक करेगा तन- मन में!! 

!! शिव सोच !!

                                       शिव सोच की हो न कभी कमी,
                                       सकारात्मक नकारात्मक के बीच जो जमी!
                                      शिव अशिव शव सा हैसोच की है लत,
                                      जानते सब है सदा क्या सही क्या गलत!
                                      मान बढे बढाये बढ जाये इस जग में,
                                      जिनकी सोच सही हो निज तन में!
                                      दूषित दुर्गति दुर्निवार दोगली सोच,
                                      लाती है निश्चित जीवन मेंअकाट्य मोच!
                                      सत जानकर भी लाते क्यो मन में लोच,
                                     हर हाल हर हर हर सा कर लो शिव सोच!                        

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन

                                          पतित पावन जन भावन,हे अंजना नंदन!
                                          प्राण प्रण धन मान हित,स्वीकार हो वंदन!!१!!
                                          केसरी सुत तू रामदूत,लखन के प्राण रक्षक!
                                          संकट मोचक हर जन का,है तू मेरा संरक्षक!!२!!
                                          आप जिसके है संरक्षक,हे पवनसूत हनुमान!
                                          कभी खो न सके वह जन,स्व धन मान सम्मान!!३!!
                                          मानवों का दानवपन, मचा रहा क्रन्दन!
                                          मिटाये कालनेमिसा,हे असुर निकन्दन!!४!!
                                          इस धरा पर नारियो,हो रहा नित चिरहरन!
                                         सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन!!५!!

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

मै ईष्ट देव के चरणों में हूं नत-मस्तक

   
                       मैं ईष्ट देव के चरणों हूं नत-मस्तक,
                       करु प्रार्थना हो हर पल सुखो का दस्तक!!
                       तू एकादश रुद्र पवनतनय बजरंगबली!
                       तेरी ही हुंकार से भक्तो की विपदा टली!
                       हे रामदूत तू ही हो हर राम-भक्त की जान!
                       हे केसरीसुत हनुमान रखो किंकरो का मान!
                       आस लिए जनहित की निहारे जुगल छबि एकटक!!१!!
                       महावीर से हारे सब चाहे हो अतिकाय अकंपन कुंभकरन!
                       सब ओर दिखती आपकी कीर्ति जब हुआ राम-रावन का रन!
                       ज्ञान मान जन धन हेतु जन जन करे तेरा चरण- वन्दन!
                       अंजन सा ज्ञान सिखाये नित अंजनिसुत मारुति नन्दन!
                       है लालसा मन में देखू मैं आपकी चमकती छबि लकलक!!२!!
                       मंगल का व्रत मंगल लावे व्रती बने आपके लायक!
                       बनूं मैं तव चरण पायक हे बल बुद्धि विद्या दायक!
                       अष्ट सिद्धि नव निधि पूरित हो हे कलयुग के नायक!
                       तव सुमिरत भागे भूत पिशाच हे रोग शोक के नाशक!
                       भूलू न किसी पल आपको करे न कभी दिल धकधक!!३!!
                       सुग्रीव विभीषण जाम्बवान यूथपति अंगद बलवान!
                       सबकी सुन सबकी माने सेवक सच हे हनुमान!
                       कल्याण कर  भारत का करे इसे हसता चमन!
                       बने धरा ऐसी कि हो न किसी का चरित्र हनन!
                       जन जन रखे मान सम्मान हर नर-नारी का हर गली हर सङ्क!!४!!
                         





रविवार, 23 दिसंबर 2012

यह कैसा है लोकतन्त्र

यह कैसा है लोकतन्त्र,जिसमे हम है परतन्त्र,
सत्तासीन सफेदपोश, खो देते जब अपना होश!
खोखले वादे दावो से,वोट ले लेते शहर गाँवो से। 
विकास की गंगा की जगह होता विनाश का नृत्य नंगा।
अनाचार-अत्याचार खेल रहा खेल है द्वार-द्वार!
केन्द्र हो या रज्य अंधी गूंगी बहरी हो गयी है सरकार!
होता कभी भजन था सङको पर सार्वजनिक स्थानों पर!
हो गया है सीमित अब यह केवल सुजन मन मानस पर!!
नृत्यादि शोभित थे नृत्यशाला नाट्यशाला व कोठो पर!
नग्न-नृत्य हो रहा अब गली-गली सङ्को व जनस्थानों पर।। 
चिन्ता सुरक्षा की कर रही जहां सबको त्रस्त!
जहां सारी एजेसियां हो रही है पस्त!!
वादो तक सीमित हो जाय जहां जनतन्त्र!
तब सोचना जन-जन को होगा,यह कैसा है लोकतन्त्र !! 

इन्हे बताना क्या

सत्य- असत्य,ईमान- बेईमान का भेद बताना क्या?
जानकर बेईमानी करने व झूठ बोलने वालो को जताना क्या---
ज्ञान-अज्ञान,मान-सम्मान को समझाना क्या?
अज्ञानी बनने,अपमान करने वालो को सुनाना क्या-----
सचरित्र-दुस्चरित्र,कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के बारे में सिखाना क्या?
चरित्र च्युत कर्त्तव्य पतित को इसकी महत्ता बताना क्या---
जब जानकर मानकर गलत को अपनाये,
तब विचार करना ही होगा कि सत लोग ऐसे को कैसे भाये?
छोटे-बङे,अच्छे-भले के अन्तर को कहना क्या----
अरे ये तो सब कहते भी है,सब समझते भी है,
तब इन्हे बताना क्या तब इन्हे बताना क्या?
परहित परोपकार परमार्थ पर सेवा व पुण्य ज्ञान!
दे देवे स्वयं ही सब को सब प्रकार का धन-मान सम्मान!!

हे सिंहवाहिनी- खडगधारिणी तुम्हे नमामि


                हे सिंहवाहिनी-खडगधारिणी तुम्हे नमामि!
                नमामि नमामि शत-शत नमामि!!
                हो मातु-पिता तुम, तुम ही हो जग स्वामिनी!
                दुख निवारिणी देवो के तुम,तुम ही हो संतापहारिणी!!१!!
                दुरगति दूर निवारिणी मां,तुम ही हो भव भय भीति निस्तारिणी!
                महामया देवी भगवती तुम, तुम ही हो ज्ञान संचारिणी!!२!!
                दीनार्त हूं भयत्रस्त हूं,हे सर्व अर्थ की साधिके!
                हर अमंगल दे सुमंगल हे शिवे,हूं शरण में तेरी त्रयम्बके!!३!!
                हे वज्रधारिणी चामुण्डॅ,नमामि तवश्री पद युगले!
                हे जनरंजनी शुम्भ-निशुम्भ निकन्दनी,स्मरामि तव युग नयन कमले!!४!!

             

                

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुझे मालूम नहीं था

मुझे मालूम नहीं था कि हमारा नेतृत्व इतना महान होगा!
चरित्र से गिरकर भी अपनी प्रशंसा में लगा होगा!!
दिल्ली दिल वालो की इतनी भयावनी होगी!
सार्वजनिक वाहनो स्थानो की ऐसी कहानी होगी!!
जहां संरक्षा सुरक्षा का मिशाल होना चाहिए!
वहां पतन-चरित्र हनन की गन्दी कहानी होगी!!
जो थकते कभी न यह कहते कि हमे कब होगा यह स्वीकार!
उन्हीं के इर्द गिर्द हो रही है भारत की प्रतिष्ठा तार- तार!!
प्रतिष्ठा जिन्हें देश की बचानी चहिए!
देश-प्रतिष्ठा को मिट्टी मिलाना उनकी कारगुजारी होगी!!
जिन्हें उदाहरण प्रस्तुत कर आदर्श बनना चाहिए!
उनकी कारस्तानी जन-जन की जुबानी होगी!!

मंगलमूर्तये नमामि

भाल विशाल पै शोभित चंदन,
अखिल विश्व के दुख निकन्दन!
शंकर सुवन पार्वती नन्दन,
मंगलमूरत हे गज आनन!!

स्वसोच

कौन हो तुम,सोचो, कंस कृष्ण, राम रावण-----
वजूद सबका है इन जोङो में ,राम-कृष्ण,कंस-रावण में!
हो सकता है, चन्दन सा विष सा,
हमारा वजूद है कैसा? सोचो-----
राधा- कृष्ण,सीता- राम की जोङी,
सती उमा पार्वती ने शंकर से कभी नाता न तोङी!
परिवार भार सा आज का,क्या कहना है आज के समाज का!
पार्वती परिवार,स्वर्ग का द्वार,
जहां पति अवधूत, वेश से भूत,
पुत्र हैं विचित्र- दिखते सचित्र,
तो सेवको का क्या कहना,
सबका है रुप ढंग अपना- अपना!
संभालती सबको सब है मस्त,
नहींहै कोई किसी से पस्त,
चेला रावन महा अपावन,
यद्यपि पिता प्रसिद्ध पावन,
मनन चिन्तन दे समाधान,होना होगा सवधान!!
द्विचित्त विचार है संहारक मारक,
एकचित्त ही है हमारा तारक!
रावन पावन बन जाय,यह मां को नहीं सुहाय,
मां का दुलार मार प्यार,पाकर बार-बार,
पङता है बालक में उसी सा संस्कार!
कंस कृष्ण मामा-भांजा, भांजा देता है मामा को सजा,
कंस मामा शब्द को कर दिया कलंकित,
शकुनि ने भी इसी ओर कर दिया था चित्त!
ऐसे शकुनी-कंस मामा,करते है आज भी करिश्मा,
राम रावन के लिए, तो कृष्ण कंस के लिए,
लेकिन आज नहीं दिखते राम,
रावन तो बनाये गली गली में निज धाम!
कृष्ण की बासुरी शंख बजते नहीं,
दुर्योधन कंस सा अत्याचारी थमते नहीं!
क्यो न अपने अन्दर के राम-कृष्ण को जगाये,
स्व- पर को भूल अपने रावन-कंस को भगाये!
एक मर्यादा सहित संसकारित समाज को बनाये,
पूरे विश्व में भारत के संसकार ज्ञान-मान को बढाये!
जब सजोये ज्ञान-मान बूंद बूंद
बढ जाये खुद ब खुद वजूद,
बन जाये धरा सर्वदा हरा भरा
जब अपनाये राम कृष्ण को खरा-खरा!
हम सबके मन में हमेशा हो यह भाव भरा!
स्वर्ग सी शोभित हो हमारी धरा!!

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

स्वयं के मनन से

जीवन को जीना सदाचरन से,
        मानव बन मानवता का पालन हो तन-मन से!
ज्यो सूर्य करते कर्म अपना,
        अनवरत निज मार्ग चलते नहीं डरते राहु ग्रसन से!!
हर जन हो निमग्न निज कर्म में,
         मिल जाये तब राहत एक दूसरे के जलन से!
करे कर्म निज का तो हो भला सबका,
         आ जाये हम इस मार्ग पर स्वयं के मनन से!!

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

गणपति वंदना



गनपति गनों के नायक प्रथम नाम विनायक!
दो सदबुद्धि जन-जन को तुम हो बुद्धिदायक!!
शुभ्रता की सक्षात मूर्ति सोहैं मूसकासन!
आनन गज पाकर आप कहलाते गजानन!!
बचन पालक भक्त रक्षक कुमार के सहोदर!
उदर रेख त्रय शोभित दिखे आप लम्बोदर!!
विस्मरण न हो भक्तों से तू हे सिन्दूरबदन!
 जन कल्याण हित करुं मैं पद पद्मों का वन्दन!!
 सन्मानते हर गण को पूंजे मां- बाप को!
हरते है विघ्नो को जैसे सूर्य तम को!!
मोदक प्रिय सब भक्त हित बने कल्याण सोधक!
एक दन्त सुमुख गजकर्णक पाते है जब मोदक!!

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

दयामयी मातु शारदे वर दे



                                                     
                                                दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
हम पर अपनी दया दॄष्टि कर दे-- कर दे!!
तू महासरस्वती बुद्धिदायिनी ज्ञानदायिनी हो,
शुभ्रवसना कमल आसना हंसवाहिनी हो!
बुद्धि देकर मां मेरा तू,विद्या में अनुराग भर दे---
दयामयि मातु शारदे वर दे -वर दे------!!
सुर नर सेवित तू, पूजित वेदों से है,
करती कृपा पुत्रो पर,तू युगो युगो से है!
आज तू अज्ञानियो में ज्ञान का संचार कर दे---
 दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
कदाचारी स्वेच्छेचारी, है सभी ये बढ रहे,
सदाचारी है आतंक की, बेदियो पर चढ रहे!
दुराचारो का नाश कर, जन-जन में सदाचार भर दे----  
    दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!
है घङी ऐसी की सह पाना अब दुस्वार है,
हताश होकर हम खङे,अब तेरे द्वार है!
राष्ट्र का उद्धार कर मां, ममत्व का संचार कर दे-----
    दयामयी मातु शारदे वर दे -वर दे----!              



मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

√काव्यात्मक वर्णमाला

               काव्यात्मक वर्णमाला
               ।।    प्राक्कथन   ।।

    नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों के बहु विधि ज्ञान वर्धन के लिए किया गया यह प्रयास निश्चित ही समस्त हिन्दी भाषी के लिए एक गौरव का विषय है।
      बहु प्रचलित सरल चौपाई छन्द बच्चों को शीघ्रातिशीघ्र याद हों ही जाता है अतः इसका प्रयोग सभी वर्णों के लिए किया गया है।
        हिन्दी वर्णमाला के साथ ही साथ भारतीय संस्कृति का भी ज्ञान हो इसका अद्भुत प्रयास है।
       हिन्दी और हिन्दुस्तान की परिकल्पना साकार करने के प्रयास में  इन सबकी जानकारी  देने के लिए  हमारे अनेक आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, धार्मिक,पौराणिक पात्रों-कथाओं पर भी प्रकाश डाला गया  है।
आशा है यह ग्रंथ सभी के लिए लाभकारी होगा।

यह काव्यात्मक वर्णमाला ग्रन्थ सरल ढंग से हिन्दी वर्णमाला के सभी वर्णों/अक्षरों के बारे में नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों को ज्ञान देने की लालसा से लिखा गया है।बच्चों के साथ ही साथ हिन्दी सीखने-सिखाने वालों के लिये भी लाभकारी हो इसका भरसक प्रयास किया गया है।वर्णों के साथ सनातन संस्कृति से सम्बन्धित अनेक बिन्दु भी इसमें निहित हैं।देवी-देवताओं, लोकोक्तियों, मुहावरों, कथाओं आदि का भी ज्ञान मिले इसका भी ध्यान रखा गया है।
आशा है यह प्रयास निश्चित रुप से सभी के लिए उपयोगी होगा।अगर किसी एक को भी मेरे इस अल्प प्रयास का लाभ मिलता है तो मैं धन्य हो जाउँगा और अपने ईष्ट देव का आभारी रहूँगा।
आपका अपना
गिरिजा शंकर तिवारी "शांडिल्य"



  • अ                        अनार
  • अनार की है शान निराली ।
  • झुमता रहता डाली-डाली ।।
  • दाङिम नाम है यही पाया 
  • कवियों ने विशेषण बनाया ।।



  • आ                   आम


  • आम हम सब का दुलारा है ।
  • फल यह बसंत को प्यारा है ।।
  • सौरभ रसाल कमाल छाजा ।
  • यही तो है फलो का राजा ।।




  • इ                   इमली


  • इमली की है बात निराली ।
  • सूख जाय तो होवे लाली ।।
  • आये सदा मानव के काम ।
  • स्वाद है खट्टा फिर भी नाम ।।


  • ई                     ईख


  • ईख उत्तम काम की भाई ।
  • इससे बनती सभी मिठाई ।।
  • यह कृषकों में सुख भरती है ।
  • बिन चाखे रस ना देती है ।।



  • उल्लू रजनी में जब बोले ।
  • सुनने वाले का मन डोले ।।
  • कुछ लोग यह नाम हैं पाते।
  • जो किसी को नहीं है भाते ।।



  • ऊन बहुत ही उपयोगी है ।
  • यह तो कितनो की रोजी है ।।
  • इससे हम है ठंड से बचते ।
  • हम इसको भेड़ों से पाते ।।


  •    
  •      ॠ                              ॠषि


  •   ॠषि बहुत प्रकार के होते ।
  • नारद जी देवर्षि कहलाते ।।
  • ये हमें सद ज्ञान देते हैं ।
  • प्राणियों का शुभ चाहते है।।








  •     ए                            एकतारा

  • ए से हि एकतारा एड़ी ।
  • एड़ी पर हि है  दुनिया खङी ।।
  • एकतारा सुवाद्य यन्त्र है ।
  • इसमें बधता एक तन्त्र है ।।




  •                                                








  • ऐनक



  • ऐ करता ऐनक ऐरावत ।
  • इन्द्र ऐरावत के महावत ।।
  • होय जब नेत्र रोशनी छरण ।
  • तभी जाते ऐनक की शरण ।।






  • ओ                         ओखल

  • ओ ओंकार की है हथेली ।
  • इसकी एक ध्वनि है ओखली ।।
  • ओंकारेश्वर आशुतोष हैं ।
  • जो काशी में विश्वनाथ हैं ।।
  • औ                    औरत
  • औरत माता बहना नारी ।
  • यह दुनिया में सबको प्यारी ।।
  • बनाती है यह सृष्टि सारी ।
  • बरसाती नेह वृष्टि भारी ।।









  • अं               अंगूर 

  • अंगूर दिखता बहुत प्यारा ।
  • इसका रस है न्यारा-न्यारा ।।
  • जिसे नहीं यह मिल पाता है ।
  • वही इसे खट्टा कहता है ।।


  • अः





  •          क                                             कमल
  • क कर कमल कमलाकर कमला।
  • कमला कृपा  से हि मति सबला।।
  • जिन्ह पर कृपा कमलाकर के।
  • करतलगत सब होवे उनके।।







  • ख                  खरगोश

  • खरगोश होता बहुत प्यारा।
  • नहिं लेता यह कभी सहारा।।
  • घमंड कर कछुआ से हारा।
  • इस प्रकार सिख दे बेचारा।।




  • ग              गणेश
  • गणेश ही है आदि देवता ।
  • पूजा केवल माता व पिता ।।
  • माता व पिता की कर सेवा ।
  • पावोगे तुम   हरदम मेवा ।।



  • घ            घङी
  • घड़ी बड़े महत्त्व की मशीन।
  • समय बताये यह समीचीन।।
  • आराम नहीं यह करती है।
  • कर्म कीमती सिखलाती है ।।
[ङ]





  • च                          चरखा
  • चरखा बना बापू पहचान।
  • वे रहे  एक मानव महान।।
  • हथकरघा से हि बनाते वस्त्र।
  • फैले  मंत्र स्वदेशी सर्वत्र ।।
  •  



  • छ                     छड़ी
  • छड़ी साथ में है यह छाता ।
  • गर्मी वर्षा सबको भाता।।
  • दोनों मौसम इसे न छोङो।
  • इससे ही तुम नाता जोङो।


  • ज                  जहाज
  • जहाज देखो नभ को जाता।
  • एक है सदा  जल को भाता।।
  • वायु जहाज बना वायुयान।
  • जल जहाज का नाम जलयान ।।














  • झ                   झंडा
  • झंडा की है शान निराली।
  • लहरा तिरंगा बजा ताली।।
  • यही हमारे देश की शान।
  • रखना हमें है इसका मान।।


  • [ञ]


  • ट                   टमाटर
  • टमाटर भरा रस से सारा।
  • यह है न्यारा प्यारा प्यारा ।।
  • यह हर मानव को ही भाये।
  • पाचनक्रिया दुरुस्त बनाये।।





  • ठ                  ठठेरा
  • ठ से  ठठेरा औ ठग होते।
  • ठग लोगों को है ठग जाते।।
  • ठठेरा है काम का भाई।
  • काम करे यह पाई-पाई।।




  • ड                डलिया                                    
  • डलिया तो हर घर में मिलती।
  • यह बेकार नहीं है रहती ।।
  • इसकी देखो लीला भाई।
  • भाँति-भाँति सेवा में छाई ।।




  • ढ              ढोलक
  • ढोलक हर जग में बजती है।
  • झाल को यह साथ रखती है।।
  • जब देखो तुम अल्हा ताजा।
  • वहाँ मिलेगा ढोलक बाजा।।


[ण]



  • त             तलवार


  • तलवार रख म्यान में भाई।
  • आती है यह काम लङाई।।
  • कायर को यह कभी न भावै।
  • रणवीरों से शोभा पावै ।।




  • थ                  थरमस
  • थरमस होता बड़ा व छोटा ।
  • इसका काम न होता खोटा ।।
  • सभी  को है लाभ पहुँचाता ।
  • कई प्रकार काम में आता ।।




  • द                   दरवाजा
  • दरवाजा मकान की शोभा ।
  • यही है  घर की  एक आभा ।।
  • जाड़ा-गर्मी  दिन औ राती ।
  • रक्षा करता सदा बहु भाँती ।।





  • ध               धनुष
  • धनुष साथ जब होवे बाना।
  • डर जावे तब निच का प्राना।।
  • चढ़कर बान न वापस आवै।
  • तौल के बोल यह बतलावै।।





  • न                 नल
  • नल हम सबको पानी देता।
  • जल मानव का जीवन होता।।
  • बिना काम नल कभी न खोलो।
  • जल जीवन है इसको तौलो।।



  • प                  पतंग
  • पतंग अनन्त में उड़ जाता।
  • कितना बढ़िया शोभा पाता।।
  • कई कटते कई पड़ते हैं।
  • संक्रान्ति को सदा उड़ते हैं।।



  • फ                 फल
  • फल ताजा हम सब को भावे।
  • जन-जन को यह स्वस्थ बनावे।।
  • धनी ज्ञानी विनम्र हो जावे।
  • सभी फल बृक्ष हमको सिखावे।।




  • ब                    बकरी
  • बकार बकरी बतख बनावे।
  • बा बाजार बाजा बजावे।।
  • बरतन बनिया बन्धु बधाई।
  • ब बनावे बन्धन व सगाई।।






  • भ                भगत
  • भगत का बल भक्ति ही होती।
  • जो देवे हर जन को जोती।।
  • भगति ही है भगत की शोभा।
  • इसी पर भगवान भी लोभा।।




  • म              मछली
  • मछली जल में महल बनावे।
  • बिनु जल यह न कभी रह पावे।।
  • जल जीवन है सबका भाई।
  • रक्षा करो प्रानन की नाई।।







  • य                 यज्ञ
  • यज्ञ जब कभी हो जावे सफल।
  • मिला करता है इसका सुफल।।
  • सभी साध्य साधक का भरता।
  • यज्ञ कर्म को ईंगीत करता।।





  • र                     रथ
  • रथ से बनते रथी सारथी।
  • रथारुण हो वीर महारथी।।
  • होता था सम्राटों की शान।
  • रथ महावीरों का है आन।।





  • ल                लड़का
  • लड़का बड़का बाबू बनता।
  • खोटा काम न जब यह करता।।
  • होते सब खुश उससे भाई।
  • जो करता है खूब पढाई।।




  • व             वकील
  • वकील करे वकालत भाई।
  • करै इस हेतु कठिन पढाई।।
  • देखे भिन्न-भिन्न यह केशा।
  • वकालत हि है इसका पेशा।।



  • श               शलगम
  • शलगम है इक मीठी सब्जी।
  • हो न इससे किसी को कब्जी।।
  • यह सबको है स्वस्थ बनावे।
  • इसको जमीन से उपजावे।।



  • ष               षडानन
  • षडानन गजानन के भाई।
  • बनी उमाजी इनकी माई।।
  • करते रहते मोर सवारी।
  • ताड़कसुर को है संहारी।।





  • स                सड़क
  • सड़क जोड़ती है शहरों को।
  • गाँवों गलियोंऔर घरों को।।
  • इसका हर मानव से नाता।
  • जन-जन सदा लाभ है पाता।।

  • ह                      हल

  • हल होते किसानों की शान।
  • जिसका लिया अब ट्रक्टर स्थान।।
  • देखो ट्रक्टर है हल जोते।
  • फिर खेतों में अनाज बोते।।



  • क्ष                क्षत्रिय
  • क्षत्रिय है होते बड़े सपूत।
  • इनको कहते सब राजपूत।।
  • इस वंश का प्रतापी राणा।
  • त्यागा वीर  देश हित प्राणा।।



  • त्र               त्रिशूल
  • त्रिशूल महादेव को सोहै।
  • देख जिसे सबका मन मोहै।।
  • उनका अस्त्र है एक त्रिशूल।
  • नाश करै यह निशिचर समूल।।



  • ज्ञ              ज्ञानी
  • ज्ञानी सबको ज्ञान सिखाते।
  • सदा ज्ञान का पाठ पढाते।।
  • करते रहते ज्ञान की बृष्टि।
  • रखते हैं सब पर कृपा दृष्टि।।
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