रविवार, 19 मार्च 2023

।।तुच्छ के पर्यायवाची।।

          ।।तुच्छ के पर्यायवाची।।
  (तीन दोहों में तैतीस पर्यायवाची शब्द)  
दो कौड़ी का निकम्मा,दुष्ट क्षुद्र सारहीन।
घृणास्पद नाचीज नीच, ओछा महत्त्वहीन।।
खोखला थोड़ा नगण्य, अधम हेय निःसार।
संकीर्ण घटिया अल्प, बेकार खाकसार।।
अल्पमूल्य टुच्चा हीन, हेठा अदना तुच्छ।
तृणवत त्याज्य बेकदर, छोटा जाली पोच।।
              ।।धन्यवाद।।

✓।।घोसला(nest)के पर्यायवाची।।

    ।।घोसला(nest)के पर्यायवाची।।
{एक ही दोहे में ग्यारह पर्यायवाची शब्द}
आशियाँ बसेरा नीड़, आशियाना द्विजालय।
झोंझ आलना अंकुरक, खोता पोटे निलय।।
              ।।धन्यवाद।।

मंगलवार, 7 मार्च 2023

मानस -चर्चा"आपत्ति के समय किनकी पहचान होती है"

    मानस-चर्चा"आपत्ति के समय किनकी पहचान होती है" 
जय श्री राम मानस चर्चा में आपका हृदय से स्वागत है,हमारे जीवन में कभी न कभी दुःख, परेशानी,विपत्ति, किसी न किसी प्रकार की आपदा न चाहते हुवे भी आ ही जाते हैं ऐसे दुखद समय में किनकी पहचान होती है और  वास्तव ऐसे समय में वह कौन एक है जो सबसे अधिक सहायक,विश्वसनीय और सब प्रकार से आपका है अपना है--- इस कठिन विषय को मानस की पंक्तियों के आधार पर  हम समझते है--हाँ यदि आपने अब तक चैनेल सब्सक्राइब नहीं किया है तो अपना प्रेम-प्रसाद देते हुवे चैनल सब्सक्राइब अवश्य कर लेवें -आइये हम मानस की पंक्तियों से पहले इस श्लोक को देखते हैं-- 

आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरं धने शुचिम् ।

भार्या क्षीणेषु वित्तेषु, संकटेषु च बान्धवान् ।।

आपत्तिकाल में मित्र की, युद्ध काल में वीर की,धन लेन-देन में सत्यता की, निर्धन अवस्था में पत्नी की एवं संकटकाल में बान्धवों की परीक्षा होती है।

अब मानस का विचार आपके सामने-- 

धीरज धर्म मित्र अरु नारी।

आपद काल परिखिअहिं चारी॥

सामान्य अर्थ-धैर्य धर्म मित्र और नारी इन चारों की परीक्षा आपद काल में होती है।लेकिन क्या इतनी सी बात---बिल्कुल नहीं  यहाँ धैर्य बहादुरों के लिए धर्म धार्मिको के लिए मित्र व्यापार करने वालों के लिए और नारी सभी के लिए महत्वपूर्ण है।अरु नारी आपद काल में ही नहीं धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारी -इन चारों की प्राप्ति में और बड़े से बड़े आपत्ति काल आने पर भी आपका सहयोग करती रहती है तभी तो गोस्वामीजी ने धीरज धर्म मित्र और आपद काल की समस्याओं को हल करने में नारी को सर्वश्रेष्ठ माना है-क्योंकि  इतनी सामान्य बात माँ अनुसुइया क्यों कहेगी और  माँ सीता को उपदेश देगी जबकि  यहाँ दोनों दिव्य नारियाँ हैं परम सती भी हैं ।हाँ पहले आयी आपद काल के कारण माँ सीता के साथ जो चल रहा है वह अब सामान्य सा प्रतीत हो रहा है लेकिन माँ अनुसुइया को भविष्य का पूर्ण ज्ञान है और माताजी जानती है कि निकट भविष्य बहुत बड़ी बिपत्ति माँ  सीता के  जीवन में आने वाली है और जहाँ आपत्ति के समय बड़े-बड़े धीर भी अधीर होने लगते हैं वहाँ एक पत्नी ही है जो अपने पति को आपत्सु मित्रं जानीयाद् आपत्ति में तो मित्र बनकर बल बनती है। स्पष्ट है--Calamity is the touchstone of a brave mind.अब brave mind किसका जबकि राम जैसे धीर-वीर,सर्वज्ञ की भी बुद्धि मलिन होने वाली है--

असम्भवं हेममृगस्य जन्मः 

तथापि रामो लुलुभे मृगाय ।

प्रायः समापन्न विपत्तिकाले 

धियोSपि पुंसां मलिनी भवन्ति।

अब बात एकदम स्पष्ट है कि यदि पुरूषों की बुद्धि मलिन हो जाय और परिणाम स्वरूप  अनहोनी हो जाय तो भी यदि  नारी धैर्य रखने वाली ,धर्म का पालन करने वाली और  मित्रवत व्यवहार करने वाली है तो ऐसे आपद कालीन समय की परीक्षा को भी चतुराई से उत्तीर्ण किया जा सकता है।कहा भी गया है

न च भार्या समं किंचिद_विद्यते भिषजां मतम_।

औषधं सर्व दुःखेषु सत्यमेतद_  ब्रवीमिते।।

निःसन्देह  आपत्ति के समय  पत्नी की ही पहचान होती है और उसके समान पति का हितैषी  दूसरा कोई है ही नहीं। जय श्रीराम जय हनुमान।

             ।। धन्यवाद।।

✓ ।।साँप के पर्यायवाची।।

        ।।साँप के पर्यायवाची।।
       ।।Paryayvachi sanp ke।।
   (दो ही दोहों में 26 पर्यायवाची शब्द)
दीर्घपृष्ठ सरीसृप अहि, फणी फणीश फणिधर।
विलेशय सर्प साँप हरि,द्विजि सारंग विषधर।।1।।
विलेशय(विल में रहने वाला)
काकोदर नाग मणिधर, द्विरसन पन्नग भुजग।
स्नेक व्याल तक्षक भुजंग,गरलधर चक्री उरग।।2।।
द्विरसन(दो जीभ वाला)
स्नेक(snake)
              ।।। धन्यवाद।।।

।। हरि अनेकार्थी शब्द।।

         ।। हरि अनेकार्थी शब्द।।
हरि बोले हरि ही सुने, हरि गये हरि के पास।
हरि हरि में कूद गये, हरि हो गए उदास।।
यहाँ लाजबाब ढंग से हरि के अनेक अर्थों द्वारा यमक अलंकार प्रगट किया गया है। पहले हम अर्थ जानते है--
मेढ़क ने बोला साँप ने सुना,साँप मेढ़क के पास गया,मेढ़क तालाब(पानी) में कूद गया,साँप उदास हो गया। यहाँ यह तो स्पष्ट हो ही गया कि हरि के अनेक अर्थ होते अब कितने अर्थ होते है उन सभी को इन दो ही दोहों में जान लेते हैं---
घोड़ा तोता शेर शशि, साँप पानी ईश्वर।
सूर्य इन्द्र गीदड़ मोर,कोयल विष्णु बन्दर।।1।।
अग्नि हंस वायु मेढ़क, हरि हैं सह सारंग।
सर्वदा हरि हरण हरति, रहते जन-जन संग।।2।।
             ।।। धन्यवाद।।।

√।।सारंग अनेकार्थी शब्द।।

     सारंग के अनेक अर्थ कौन-कौन है?
सारंग नयन बयन पुनि सारंग, सारंग तसु समधाने । सारंग उपर उगल दस सारंग, केलि करथि मधुपाने ।।
विद्यापतिजी की इन पंक्तियों में सारंग शब्द,अनेक
अर्थ  दे रहा है और भाषा यमक अलंकार से अलंकृत
हो रही है। इस पद्य का अर्थ यो है------
मृग नयनी,कोकिल बयनी,कामदेव के कमान सी
टेढ़ी भौहें वाली, कमल मुखी नायिका  के केश 
रुपी भौरे उसके सौंदर्य का रस पान कर रहे हैं। 
आइये  हम इस अनेकार्थी शब्द के लगभग 
जितने अर्थ होते हैं उन सभी को आज इन चार
दोहों में जान लेते हैं----
पपीहा मोर कबूतर,विष्णुधनुष हाथी हल।
कौवा मेढक आकाश,तालाब सागर जल।।1।।
भौरा कमल कामदेव,केश कपूर काजल।
संगीत सारंगी हरिण(मृग), शंख शंकर बादल।।2।।
सोना चंद्रमा कोयल,सूर्य दीपक खंजन।
भूमि विभावरी(रात) नारी, बाज बिजली चंदन।।3।।
घोड़ा हंस सिंह भुजंग,शोभा हरि सारंग।
भगवान हाथ वस्त्र फूल, कुच(स्तन)रहे यमक संग।।4।।
इस प्रकार इन दोहों में हमें 4×12= 48 अर्थ
सारंग के प्राप्त हो रहे हैं जिनके कारण काव्य
में सारंग शब्द के बार-बार प्रयोग होते ही 
यमक अलंकार हो जाता है।
।।।धन्यवाद।।।


सोमवार, 26 दिसंबर 2022

।।अन्योक्ति अलंकार।।

।।अन्योक्ति अलंकार।। 

               ।।अन्योक्ति अलंकार।। 
       जब काव्य में अप्रस्तुत का वर्णन करके प्रस्तुत का बोध कराया जाय तब  अन्योक्ति अलंकार होता है। 
अन्योक्ति में बात किसी दूसरे पर अर्थात अप्रस्तुत पर रखकर कही जाती है लेकिन कथन का लक्ष्य कोई दूसरा अर्थात् प्रस्तुत होता है।
अन्योक्ति' का अर्थ ही है "अन्य(अप्रस्तुत)को माध्यम बनाकर प्रस्तुत  के प्रति  उक्ति"।
 अर्थात्  इस अलंकार में कोई बात सीधे-सादे रूप में न कहकर किसी के माध्यम से कही जाती है। 
अन्योक्ति  का अन्य अर्थ यह  भी होता है कि वह कथन जिसका अर्थ साधर्म्य के विचार से कथित वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तु पर घटाया जाय ।
अतः जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। सीधी सी बात है इस अलंकार में  कथन कहीं,निशाना कहीं होता है।
अन्योक्ति अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार की"सारूप्य निबंधना" का पर्यायवाची शब्द भी कहा जा सकता है।
परिभाषा:- 
जहाँ उपमान(अप्रस्तुत,अप्रत्यक्ष) के वर्णन द्वारा उपमेय (प्रस्तुत,प्रत्यक्ष) की प्रतीति कराई जाती है, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सौ बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
यहाँ पर अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है। यहाँ उपमान ‘कली’ और ‘भौरे’ के वर्णन के बहाने उपमेय (राजा जय सिंह और उनकी नवोढ़ा नायिका) की ओर संकेत किया गया है।
2.दस दिन आदर पाइकै, करिले आपु बखान।
जौ लगि काग सराध पखु, तौ लगि तव सनमान ।
यहाँ थोड़े समय के लिए महत्त्व या सम्मान पाने वाला मनुष्य प्रस्तुत है तथा कौआ अप्रस्तुत है। कौए के माध्यम से आत्मप्रशंसा करने वाले व्यक्ति को घमण्ड से बचने तथा लोगों के साथ असम्मानजनक व्यवहार करने से रोका गया है।
3-स्वारथ  सुकृत न श्रम वृथा देखि विहंग विचारि।
   बाज पराये पानि परि , तू पच्छीनु न मारि॥
प्रस्तुत पद में बाज पक्षी के माध्यम से अन्य हिंदू राजाओं को जागृत करने का प्रयत्न किया गया है तथा अन्योक्ति के माध्यम से राजा जयसिंह और औरंगजेब की ओर संकेत किया गया है।
4-काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी
   तेरे ही नालि सरोवर पानी।
जल में उत्पति जल में वास ।
जल में नलिनी तोर निवास॥
इस पद में कबीर ने कमलिनी तथा उसके आसपास सरोवर के जल के वर्णन के द्वारा आत्मा तथा परमात्मा की एकता का बोध कराया है। कमलिनी की नाल सरोवर के जल में डूबी है अत: उसके मुरझाने का कोई कारण नहीं है। आत्मा परमात्मा का ही अंश है, यह जल और कमलिनी के सम्बन्ध द्वारा बताया गया है।
अन्य उदाहरण भी देखें:
5- इहै आस अटकै रहत,अलि गुलाब के मूल।
   अइहैं बहुरि बसंत रितु  इन डारन के फूल।
6-माली आवत देखकर कलियन करें पुकार ।
    फूले-फूले चुन लिये, काल हमारी बार।।
7-कर लै सँघि सराहि कै सबैं रहे गहि मौन।।
    रे गंधी मति मंद तू गंवई गाहक कौन ॥
                   ।।। धन्यवाद।।।