सारंग के अनेक अर्थ कौन-कौन है?
सारंग नयन बयन पुनि सारंग, सारंग तसु समधाने । सारंग उपर उगल दस सारंग, केलि करथि मधुपाने ।।विद्यापतिजी की इन पंक्तियों में सारंग शब्द,अनेक
अर्थ दे रहा है और भाषा यमक अलंकार से अलंकृत
हो रही है। इस पद्य का अर्थ यो है------
मृग नयनी,कोकिल बयनी,कामदेव के कमान सी
टेढ़ी भौहें वाली, कमल मुखी नायिका के केश
रुपी भौरे उसके सौंदर्य का रस पान कर रहे हैं।
आइये हम इस अनेकार्थी शब्द के लगभग
जितने अर्थ होते हैं उन सभी को आज इन चार
दोहों में जान लेते हैं----
पपीहा मोर कबूतर,विष्णुधनुष हाथी हल।
कौवा मेढक आकाश,तालाब सागर जल।।1।।
भौरा कमल कामदेव,केश कपूर काजल।
संगीत सारंगी हरिण(मृग), शंख शंकर बादल।।2।।
सोना चंद्रमा कोयल,सूर्य दीपक खंजन।
भूमि विभावरी(रात) नारी, बाज बिजली चंदन।।3।।
घोड़ा हंस सिंह भुजंग,शोभा हरि सारंग।
भगवान हाथ वस्त्र फूल, कुच(स्तन)रहे यमक संग।।4।।
इस प्रकार इन दोहों में हमें 4×12= 48 अर्थ
सारंग के प्राप्त हो रहे हैं जिनके कारण काव्य
में सारंग शब्द के बार-बार प्रयोग होते ही
यमक अलंकार हो जाता है।
।।।धन्यवाद।।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें