आपत्सु मित्रं जानीयाद् युद्धे शूरं धने शुचिम् ।
भार्या क्षीणेषु वित्तेषु, संकटेषु च बान्धवान् ।।
आपत्तिकाल में मित्र की, युद्ध काल में वीर की,धन लेन-देन में सत्यता की, निर्धन अवस्था में पत्नी की एवं संकटकाल में बान्धवों की परीक्षा होती है।
अब मानस का विचार आपके सामने--
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
सामान्य अर्थ-धैर्य धर्म मित्र और नारी इन चारों की परीक्षा आपद काल में होती है।लेकिन क्या इतनी सी बात---बिल्कुल नहीं यहाँ धैर्य बहादुरों के लिए धर्म धार्मिको के लिए मित्र व्यापार करने वालों के लिए और नारी सभी के लिए महत्वपूर्ण है।अरु नारी आपद काल में ही नहीं धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारी -इन चारों की प्राप्ति में और बड़े से बड़े आपत्ति काल आने पर भी आपका सहयोग करती रहती है तभी तो गोस्वामीजी ने धीरज धर्म मित्र और आपद काल की समस्याओं को हल करने में नारी को सर्वश्रेष्ठ माना है-क्योंकि इतनी सामान्य बात माँ अनुसुइया क्यों कहेगी और माँ सीता को उपदेश देगी जबकि यहाँ दोनों दिव्य नारियाँ हैं परम सती भी हैं ।हाँ पहले आयी आपद काल के कारण माँ सीता के साथ जो चल रहा है वह अब सामान्य सा प्रतीत हो रहा है लेकिन माँ अनुसुइया को भविष्य का पूर्ण ज्ञान है और माताजी जानती है कि निकट भविष्य बहुत बड़ी बिपत्ति माँ सीता के जीवन में आने वाली है और जहाँ आपत्ति के समय बड़े-बड़े धीर भी अधीर होने लगते हैं वहाँ एक पत्नी ही है जो अपने पति को आपत्सु मित्रं जानीयाद् आपत्ति में तो मित्र बनकर बल बनती है। स्पष्ट है--Calamity is the touchstone of a brave mind.अब brave mind किसका जबकि राम जैसे धीर-वीर,सर्वज्ञ की भी बुद्धि मलिन होने वाली है--
असम्भवं हेममृगस्य जन्मः
तथापि रामो लुलुभे मृगाय ।
प्रायः समापन्न विपत्तिकाले
धियोSपि पुंसां मलिनी भवन्ति।
अब बात एकदम स्पष्ट है कि यदि पुरूषों की बुद्धि मलिन हो जाय और परिणाम स्वरूप अनहोनी हो जाय तो भी यदि नारी धैर्य रखने वाली ,धर्म का पालन करने वाली और मित्रवत व्यवहार करने वाली है तो ऐसे आपद कालीन समय की परीक्षा को भी चतुराई से उत्तीर्ण किया जा सकता है।कहा भी गया है
न च भार्या समं किंचिद_विद्यते भिषजां मतम_।
औषधं सर्व दुःखेषु सत्यमेतद_ ब्रवीमिते।।
निःसन्देह आपत्ति के समय पत्नी की ही पहचान होती है और उसके समान पति का हितैषी दूसरा कोई है ही नहीं। जय श्रीराम जय हनुमान।
।। धन्यवाद।।
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